scriptआदिकालीन भित्तिचित्र लिखीछाज के लिए सुगम रास्ता भी नहीं | There is no easy way for the original graffiti writing | Patrika News

आदिकालीन भित्तिचित्र लिखीछाज के लिए सुगम रास्ता भी नहीं

locationमोरेनाPublished: Nov 26, 2020 08:28:25 pm

तीन साल पहले मुख्यमंत्री ने की थी मार्ग निर्माण की घोषणा

आदिकालीन भित्तिचित्र लिखीछाज के लिए सुगम रास्ता भी नहीं

आदिकालीन भित्तिचित्र लिखीछाज के लिए सुगम रास्ता भी नहीं

मुरैना. पुरा संपदा से समृद्ध जिले आदि कालीन भित्तिचित्रों की उपेक्षा हो रही है। बियावान जंगल में आसन नदी के किनारे निर्मित इन कंदराओं में आदि मानवों द्वारा खडिय़ा व गेरू के मिश्रण से बने भित्तिचित्र पुरातात्विक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन संरक्षण के प्रयास विभागीय स्तर पर नहीं हो पा रहे हैं। इसकी अहम वजह वहां तक पहुंच मार्ग न होना है।
भोपाल के पास रायसेन जिले में उपलब्ध भीम बैठका के समकालीन माने जाने वाले यह भित्तिचित्र वहां तक सुगम रास्ता न होने के कारण ही अब तक सुरक्षित हैं। विकासखंड मुख्यालय पहाडगढ़़ से दक्षिण-पूर्व में पहाडगढ़़ से करीब 18 किमी दूर आसन नदी के किनारे करीब 86 कंदराएं हैं। ऐसी मान्यता है कि मानव सभ्यता की शुरुआत में लोगों को इन कंदराओं में में शरण मिली। पुरुषों और महिलाओं, पक्षियों और जानवरों के दृश्य यहां गेरू और खडिय़ा के मिश्रण से बनाए गए हैं। माना जाता है कि जमीन के नीचे दबी यह कंदराएं बाद में नदी के पानी के बहाव से निकलकर आईं, लेकिन भित्तिचित्र सुरक्षित बने रहे। शिकार और नृत्य करते हुए गुफा चित्रों से ऐसा प्रतीत होता है मानो मानव कला पूर्व ऐतिहासिक काल में चंबल की घाटी में फली-फूली हो। इसकी अभिव्यक्ति के लिए इन रंगों की खोज की हो। खंभों रहित बालकनीनुमा इन कंदराओं का आकार किसी छज्जेनुमा होने से ही इनका नाम लिखीछाज पड़ा है।
लोग पहुंचना चाहते हैं पर रास्ता नहीं बन पा रहा है। तीन साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जौरा विधायक सूबेदार सिंह रजौधा के गांव में आयोजित धार्मिक आयोजन के समापन समारोह में आए थे। वहां पुरा संपदा को जोडऩे वाले टूरिस्ट सर्किट की मांग उठी थी। मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इसके लिए उचित पहल करने की बात कही थी। बाद में जिला प्रशासन ने आरईएस को प्राक्कलन बनाने को कहा था, लेकिन इसके बाद की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चल गई।
सबसे प्राचीन धरोहर है जिले में

आदि मानव कालीन लिखीछाज के भित्तिचित्र जिले में सबसे प्राचीन पुरा संपदा मानी जाती है। बटेश्वरा, मितावली, पढ़ावली और ककनमठ की पुरा संपदा छठवीं से 13वीं सदी तक की हैं। लिखीछाज गर्मियों के दिनों में जाया तो जा सकता है, लेकिन पैदल और और खाने-पीने व सुरक्षा की व्यवस्था के साथ। दूर तक पैदल चलने और पानी का इंतजाम न होने से लोग थक जाते हैं।
लिखीछाज के लिए सुगम रास्ता बनाने की कवायद चल रही है। तीन साल पहले मुख्यमंत्री ने मार्ग निर्माण की जो घोषणा की थी, उस पर प्राक्कलन बनाने के निर्देश तो हुए थे। उसके बाद की प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं मिल पाई है।
अशोक शर्मा, जिला पुरातत्व अधिकारी, मुरैना
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