निर्देशक मिलन लूथरिया की पहचान ‘वन्स अपॉन अ टाइम इन मुम्बई’ और ‘द डर्टी पिक्चर’ सरीखी फिल्में हैं। अब उन्होंने हाइस्ट थ्रिलर फिल्म ‘बादशाहो’ के साथ बॉक्स ऑफिस पर दस्तक दी है, जो कि इमरजेंसी की पृष्ठभूमि पर है। अजय देवगन, इलियाना डिक्रूज, इमरान हाशमी, विद्युत जामवाल, ईशा गुप्ता स्टारर इस फिल्म में रोमांस, हाई वोल्टेज एक्शन सीक्वेंस, ह्यूमर, ग्लैमर और ड्रामा का कॉकटेल बनाकर परोसा गया है, लेकिन फस्र्ट हाफ जिस पेस से आगे बढ़ता है, वह दूसरे हाफ में बरकरार नहीं रहता। फिल्म का प्लॉट अच्छा है, पर स्क्रिप्ट व स्क्रीनप्ले क्रिस्प नहीं है। इस मामले में राइटर रजत अरोड़ा पूरी वफादारी नहीं दिखा पाए। राइटिंग में कमजोरी इसको मनोरंजन का ‘बादशाहो’ बनने में आड़े आ गई।
स्क्रिप्ट
कहानी 1975 के इमरजेंसी के दौर की है जब रॉयल फैमिली की सम्पत्ति सरकार अपने कब्जे में ले रही थी। महारानी गीतांजलि देवी (इलियाना) के महल से भी सारा सोना जब्त कर लिया जाता है और गीतांजलि को जेल में डाल दिया जाता है। इस सोने को ट्रक से दिल्ली भेजा जाना है, जिसको सुरक्षित ले जाने की जिम्मेदारी आर्मी ऑफिसर सहर सिंह (विद्युत) को दी जाती है। इधर गीतांजलि जेल में अपने वफादार और पर्सनल सिक्योरिटी इंचार्ज भवानी सिंह (अजय) से कहती है कि उसे वह सोना वापस चाहिए, इसलिए वह उसे दिल्ली जाने से पहले लूट ले। फिर भवानी लॉक तोडऩे में एक्सपर्ट गुरुजी (संजय मिश्रा), दिलेर चोर दलिया (इमरान) और संजना (ईशा) के साथ मिलकर प्लान बनाता है। आगे कुछ ट्विस्ट और थ्रिलिंग मोमेंट्स के साथ कहानी अंजाम तक पहुंचती है।
एक्टिंग
भवानी के रोल में अजय ने पूरी इंटेंसिटी दिखाई है। उनके वन लाइनर्स दमदार हैं। इलियाना ने अपने कैरेक्टर की डिफरेंट लेयर्स बखूबी पर्दे पर प्रस्तुत किया है। इमरान अपने मस्त अंदाज से असर छोड़ते हैं। वर्सेटाइल एक्टर संजय मिश्रा अपनी कॉमिक टाइमिंग से खूब हंसाते हैं। ईशा ने भी अपना काम बखूबी किया है। आर्मी ऑफिसर के किरदार में विद्युत जमे हैं। सपोर्टिंग कास्ट ने भी अच्छा काम किया है।
डायरेक्शन
मिलन का निर्देशन अच्छा है, लेकिन कमजोर राइटिंग ने फिल्म की लय तोड़ दी। वहीं, क्लाइमैक्स भी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता। हालांकि रजत ने डायलॉग्स और वन लाइनर्स अच्छे लिखे हैं। सिनेमैटोग्राफी इम्प्रेसिव है, राजस्थान के डेजर्ट को आकर्षक ढंग से फिल्माया है। गीत-संगीत अच्छा है। मेरे ‘मेरे रश्के कमर’ और सनी लियोनी पर फिल्माया ‘पिया मोरे’ हिट सॉन्ग हैं। बैकग्राउंड स्कोर दमदार है। संपादन चुस्त नहीं है।
जब बात एंटरटेनमेंट की होती है तो सिनेमा के हर ऑस्पेक्ट्स पर फोकस करना जरूरी है। ‘बादशाहो’ भी उम्दा राइटिंग के अभाव में औसत फिल्म बन कर रह गई। अगर आप एक्शन-थ्रिलर पसंद करते हैं और अजय व इमरान के फैन हैं तो ‘बादशाहो’ के लिए सिनेमा का रुख कर सकते हैं, लेकिन ज्यादा एक्सपेक्टेशंस न रखें।