script‘जवानी जानेमन’ देखने सिनेमाघर जाने से पहले यहां पढ़ें मूवी रिव्यू | Jawaani Jaaneman movie review:, Saif Ali khan and Alaya Furnicharwala | Patrika News

‘जवानी जानेमन’ देखने सिनेमाघर जाने से पहले यहां पढ़ें मूवी रिव्यू

locationमुंबईPublished: Jan 31, 2020 06:51:27 pm

शहरी दर्शकों को लुभाएगी पिता-पुत्री की यह कहानी…..Jawaani Jaaneman movie review

Jawaani Jaaneman movie review

Jawaani Jaaneman movie review

निर्देशक: नितिन कक्कड़
स्टार कास्ट: सैफ अली खान, तब्बू, अलाया फर्नीचरवाला, कुब्रा सेठ, चंकी पांडेय, कुमुद मिश्रा और अन्य
रेटिंग: 3/5

बदलते समय के साथ पिता और बेटी के रिश्ते में व्यापक परिवर्तन आए हैं। इस संबंध को लेकर बनी फिल्मों में ‘जवानी जानेमन’ अलग तरह की आधुनिक कहानी है, जो एक वर्ग के दर्शकों को लुभागी। ‍फिल्म अपने रोचक कंटेंट और किरदारों के चलते दर्शकों को गुदगुदाती है। यहां नए जमाने की बेटी है, जो अपनी मां को बताती है कि उसका पिता कौन है। फिल्म में ना केवल मनोरंजन है बल्कि फिल्म यह भी बताती है कि भले ही लोग जिम्मेदारी और परिवार से भागते हों, आखिर में हर कोई अकेलेपन से डरता है।

 

Jawaani Jaaneman movie review

कहानी
यह कहानी 40 की उम्र पार करते हुए एक अधेड़ व्यक्ति जैज उर्फ जस्सी (सैफ अली खान) की है। दुनिया भर की मस्तियों में चूर यह व्यक्ति शादी और परिवार की जिम्मेदारियों से भागता है। यह सोचता है कि जिंदगी का अर्थ पार्टी, वाइन और हर दिन एक नई लड़की के साथ मस्ती है। जीवन के सुख लूटता जस्सी का समय मजे में कट रहा है। तभी 21 वर्षीय टिया (अलाया) की उसकी जिंदगी में एंट्री होती है। अब जैज की दुनिया बदल गई। उसे पता चलता है कि अलाया उसकी बेटी है। इसके कुछ ही समय बाद जैज को पता चलता है कि वह नाना बनने वाला है। अब कहानी में शुरू होती है उठापटक। जिंदगी को मौज समझने वाला जैज अपनी प्रेग्नेंट बेटी का कैसे ख्याल रखता है? इसी को लेकर कहानी आगे बढ़ती है। आगे की कहानी के लिए फिल्म देखनी होगी।

डायरेक्शन
फिल्म का फर्स्ट हाफ स्लो है। कई जगहों पर दर्शक समझ नहीं पाते कि आखिर कहानी में यह क्यों है। दूसरे हाफ में कहानी रफ्तार पकड़ती है। कहानी का प्रस्तुतिकरण रोचक है, इसके चलते फिल्म दर्शकों को शुरुआत से अंत तक बांधे रखती है। निर्देशक फिल्म को आज के शहरी परिदृश्य में ढालने में सफल हुए हैं। फिल्म के माध्यम से प्यार, परिवार, भरोसे और जिम्मेदारी की बात बखूबी कही गई है। निर्देशन का कमजोर पहलू है इसका ट्रीटमेंट। इसकी वजह से फिल्म अर्बन दर्शकों तक सीमित रह सकती है।

 

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एक्टिंग
सैफ अली खान हर बार की तरह अपने किरदार में पूरी तरह से डूबे नजर आते हैं। ऐसा लगता है कि उनके पिता होने के अनुभव ने इस किरदार को निभाने में उनकी मदद की है। कह सकते हैं कि उन्होंने अपने पूरे स्वैग के साथ इस किरदार को जिया है। फिल्म से डेब्यू कर रही अलाया की तारीफ करनी होगी। अलाया को परदे पर देखकर एक बार भी नहीं लगता कि ये उनकी डेब्यू फिल्म है। दर्शकों को कई जगह उनके हिंदी उच्चारण अलग से सुनने को मिलेंगे। कुछ सीन में ही नजर आई तब्बू ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। कुब्रा, चंकी और कुमुद मिश्रा ने अच्छा काम किया है।

फिल्म में कई गाने हैं लेकिन दर्शकों को लुभाने में सफल नहीं होते। ऐसा लगता है जैसे गाने जल्दबाजी में खानापूर्ति करने के लिए भरे गए हों। फिल्म के संवाद काफी अच्छे बन पड़े हैं। पिता और बेटी के संवाद इस फिल्म की कहानी को मनोरंजक बनाते हैं। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है।

क्यों देखें: अगर आप शहरी ह्यूमर पसंद करनेवालों में हैं तो आपको यह फिल्म बेहद पसंद आएगी।

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