मुंबई। सिद्धार्थ मल्हात्रा, फवाद खान और आलिया भट्ट अभिनीत बहुचर्चित फिल्म कपूर एंड संस शुक्रवार को रिलीज हुई। धर्मा प्रोडक् शन के बैनर तले निर्मित यह फिल्म ऋषि कपूर के बेजोड़ अभिनय के लिए याद की जाएगी। शकुन बत्रा के निर्देशन में कसावट नजर आती है, लेकिन कुछ जगह बेवजह फिल्म को बढ़ाया गया है, जो फिल्म को कमजोर बनाती है।
कहानी
कपूर एंड संस एक परिवार की कहानी कहती है, जिसका हर सदस्य अपने-अपने तरीके से जीवन जीने में यकीन रखता है। किसी भी सदस्य का दूसरे सदस्य से विचार नहीं मिलते। अकसर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। कभी माता-पिता के बीच तो कभी भाई-भाई के बीच…कह सकते हैं कि यह बिखरे हुए परिवार की तरह है। कपूर खानदान के सबसे बड़े मेंबर (ऋषि कपूर) एक मस्तमौला इंसान हैं। वो करीब 90 साल के हैं, लेकिन मन से वो जवान हैं। मरने के पहले उनकी आखिरी इच्छा है कि वो अपने पूरे परिवार के साथ एक फैमिली फोटो खिंचवाएं।
वो हिंदुस्तान में अपने बेटे (रजत कपूर) और बहू (रत्ना पाठक) के साथ रहते हैं, जबकि उनके दोनों पोते राहुल (फवाद खान) और अर्जुन (सिद्धार्थ मल्होत्रा) काम के चलते विदेश में रहते हैं। अचानक एक दिन दादाजी को हार्ट अटैक आ जाता है। ये खबर जब उनके दोनों पोते राहुल और अर्जुन को पता चलती है, तो वो घर वापस आ जाते हैं। सालों बाद दोनों दोनों भाई अर्जुन और राहुल मिलते हैं, लेकिन फिर भी दोनों खुश नहीं नजर आते। इस परिवार में हर कोई आपस में लड़ता रहता है। कभी दोनों भाई अर्जुन और राहुल तो कभी उनके माता-पिता। अर्जुन को लगता है कि उसके माता-पिता उससे ज्यादा उनके भाई को पसंद करते हैं, क्योंकि वो अपने कॅरियर में कामयाब नहीं है और उसका भाई राहुल एक अच्छा नॉवेलिस्ट है।
इसी बीच एंट्री होती है टीया (आलिया भट्ट) की, जो एक पार्टी में अर्जुन से मिलती है। दोनों अच्छे दोस्त बन जाते हैं। इसके बाद टीया की मुलाकात एक प्रॉपर्टी के चलते राहुल से भी होती है और दोनों में अच्छा कनेक्शन बन जाता है और दोनों के बीच एक दिन किस हो जाता है। इस फैमिली के हर मेंबर के मन में कुछ न कुछ बात छिपी हुई है, जो एक दिन बाहर आ जाती है और घर में एक बड़ी लड़ाई हो जाती है। सब एक-दूसरे से हर्ट हैं।
फिल्म की खासियत…
इस फिल्म की अच्छी बात यह है कि यह एक मॉडर्न फैमिली ड्रामा है, जो लंबे समय बाद पर्दे में ढाला गया है। शकुन बत्रा ने आज के जमाने के परिवार को दिखाने की कोशिश की है, जिसमें वो कुछ हद तक कामयाब भी हुए हैं। उन्होंने दिखाया है कि कैसे आज के दौर में एक भाई अपने दूसरे भाई की ख़ुशी के लिए अपना प्यार अपना कॅरियर
कुर्बान नहीं करता… जैसे पुराने जमाने की फिल्मों में हुआ करता था। आज लोग अपने हक के लिए लडऩा जानते हैं।
कमजोर कड़ी…
फिल्म का कमजोर कड़ी यह है कि इसे बेवजह खींचा गया है। इंटरवल तक फिल्म बांधे रखती है, लेकिन उसके बाद फिल्म बहुत बोरिंग और स्लो हो जाती है और इमोशन और रिश्तों की खिचड़ी पका दी जाती है। ट्रेलर देखकर ऐसा लगा था कि या तो ये दो भाइयों के बीच के रिश्ते की कहानी होगी या फिर लव ट्रायंगल होगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। ये सिर्फ एक बिखरे हुए परिवार की कहानी है।
अभिनय…
जहां तक अभिनय की बात है, तो फिल्म में यदि किसी ने दिल जीता है, तो वो हैं ऋषि कपूर। पूरी फिल्म में वो लोगों को खुद से बांधे रहते हैं। फिल्म का मेन हीरो उन्हें कहें, तो गलत नहीं होगा। फवाद खान का अभिनय प्रभावित करता है। सिद्धार्थ मल्होत्रा ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। आलिया भट्ट फिल्म में सपोर्टिंग रोल में हैं। उनके सीन्स भी काफी कम हैं। रत्ना पाठक और रजत शर्मा भी दिल जीतने में कामयाब हुए हैं।
क्लाइमेक्स…
कुल मिलाकर फिल्म औसत दर्जे की है, जिसे आप वीकेंड पर टाइम पास के तौर देख सकते हैं।
रेटिंग: 3/5