आर्यन शर्मा . जयपुर
अगर दिलचस्प कहानी को सधे हुए अभिनय और ब्रिलिएंट डायरेक्शन का साथ मिल जाए, तो वह फिल्म दर्शकों का दिल जीत लेती है। ‘आमिर’, ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी फिल्मों को निर्देशित कर चुके राज कुमार गुप्ता की इस हफ्ते रिलीज हुई फिल्म ‘रेड’ एक शानदार पेशकश है। सच्ची घटना से प्रेरित यह फिल्म अपने स्मार्ट थ्रिलर और कसे हुए स्क्रीनप्ले के दम पर अंत तक एंगेजिंग और एंटरटेनिंग बनी रहती है। साथ ही अपनी टैगलाइन ‘हीरो हमेशा यूनिफॉर्म में नहीं आते!’ को सार्थक साबित करती है।
स्क्रिप्ट
फिल्म १९८१ में लखनऊ में पड़ी हाई प्रोफाइल इनकम टैक्स रेड की सच्ची घटना पर आधारित है। फिल्म की कहानी इंडियन रेवेन्यू सर्विस के ईमानदार ऑफिसर अमय पटनायक (अजय देवगन) की है, जिसका अपनी ईमानदारी के चलते सात साल में 49 बार ट्रांसफर हो चुका है और इस बार वह ट्रांसफर होकर पत्नी मालिनी (इलियाना डिक्रूज) के साथ लखनऊ आता है। यहां आते ही मुखबिर से टिप मिलती है कि इलाके के सांसद और बाहुबली रामेश्वर सिंह उर्फ ताऊजी (सौरभ शुक्ला) के पास ४२० करोड़ रुपए का बिना टैक्स वाला यानी काला धन जमा है। अमय सूचना के आधार पर सबूत जुटाता है। इसके बाद वह हायर अथॉरिटी से रामेश्वर सिंह के घर रेड डालने का वारंट ले आता है और एक सुबह अपनी टीम के साथ रेड डाल देता है। रामेश्वर सिंह अपनी दबंगई से उसे डराने की कोशिश करता है, पर अमय का विश्वास और हौसला नहीं डगमगाता। इधर, रामेश्वर रेड रुकवाने की कोशिश में लगा रहता है। इसके बाद ट्विस्ट्स व टन्र्स के साथ कहानी अंजाम तक पहुंचती है।
एक्टिंग
अजय ने एक बार फिर शिद्दत के साथ दमदार अभिनय किया है। वहीं, भ्रष्ट और बाहुबली सांसद के किरदार में सौरभ शुक्ला ने चौंकाया है। वह किरदार में पूरी तरह घुस गए और फिल्म की जान बन गए। इलियाना के हिस्से ज्यादा काम नहीं है, लेकिन उनका जितना रोल है, उसमें वह परफेक्ट हैं। रामेश्वर सिंह की मां की भूमिका में पुष्पा जोशी की इंटरेस्टिंग परफॉर्मेंस है। सपोर्टिंग कास्ट में अमित सियाल, अमित बिमरोट, गायत्री अय्यर, सानंद वर्मा और शीबा चड्ढा ने अच्छा काम किया है।
डायरेक्शन
राज कुमार का निर्देशन वाकई काबिले-तारीफ है। वह दर्शकों को सीट से उठने का मौका ही नहीं देते। यही नहीं, रितेश शाह की राइटिंग भी गजब की है। उन्होंने न सिर्फ सच्ची घटना को आधार बनाकर काल्पनिक किरदारों के साथ दिलचस्प स्क्रिप्ट रची, बल्कि स्क्रीनप्ले को भी इस मुस्तैदी से गढ़ा कि आखिर तक कौतुहल बना रहता है। उनके लिखे डायलॉग्स भी असरदार हैं। म्यूजिक ठीक-ठाक है, वहीं सिनेमैटोग्राफी अट्रैक्टिव और एडिटिंग शार्प है।
क्यों देखें
ब्लैक मनी और करप्शन के इश्यू के इर्द-गिर्द घूमती फिल्म ‘रेड में स्मार्ट स्क्रीनराइटिंग, सॉलिड परफॉर्मेंस, सुपर्ब डायरेक्शन और पावरफुल डायलॉगबाजी प्लस पॉइंट हैं। फिल्म शुरू से अंत तक रोमांचित करती है। लिहाजा मनोरंजन के लिए आप सिनेमाघरों में ‘रेड’ डाल सकते हैं।