स्टारकास्ट : अक्षय कुमार, इलियाना डीक्रूज, अर्जन बाजवा, ईशा गुप्ता, ऊषा कुलकर्णी, सचिन खेडेकर, रेटिंग: 3.5/5
बैनर : जी स्टूडियो, केए एंटरटेनमेंट, प्लान स्टूडियोज, कैप ऑफ गुड फिल्म्स, पैनोरामा स्टूडियोज
निर्माता: अरुणा भाटिया, नितिन केनी, आकाश चावला, वीरेंद्र अरोड़ा, ईश्वर कपूर, शीतल भाटिया
निर्देशक : टीनू सुरेश देसाई
जोनर : क्राइम, थ्रिलर
संगीतकार : अंकित तिवारी, जीत गांगुली, राघव सचार, अरकू प्रावो मुखर्जी
रोहित तिवारी/मुंबई ब्यूरो। इंडस्ट्री को अपने अंदाज में फिल्में परोसते आए टीनू सुरेश देसाई इस बार ऑडियंश के लिए थ्रिलर से लबरेज फिल्म ‘रुस्तम’ लेकर आए हैं। अक्षय कुमार स्टारर फिल्म में उन्होंने क्राइम और थ्रिलर का तड़का लगाने के लिए हर संभव प्रयास किया है। साथ ही उन्हें इस फिल्म से काफी उम्मीदें भी हैं।
कहानी…
150:30 मिनट की कहानी उस दौर की है, जब जजमेंट के लिए कोर्ट की तरफ से ज्यूरी गठित की जाती थी। फिर नेवी के कमांडर रुस्तम पावरी (अक्षय कुमार) छह माह की लंदन में अपनी ड्यूटी करने के बाद घर लौटते हैं। घर में उनकी बीवी सिंथिया पावरी (इलियाना डीक्रूज) नहीं मिलती है। इस पर रुस्तम जमनाबाई (ऊषा कुलकर्णी) से पता करता है, तो उसे मालूम होता है कि वह 2 दिन से घर वापस ही नहीं आई। इस पर वह घर की तलाशी लेता है, तो उसके हाथ विक्रम माखीजा (अर्जन बाजवा) के लव लेटर और कई गिफ्ट्स उसकी पत्नी के नाम दिखते हैं। इस पर वह आक्रोश में आकर विक्रम को ढूंढ़कर उसे गोली मार देता है और खुद अपना गुनाह कबूल करते हुए पुलिस के हवाले कर देता है।
अब पुलिस छानबीन में जुट जाती है, तो माखीजा की बहन ईशा गुप्ता पुलिस को अपनी पहुंच के बारे में धमकी देते हुए केस की सही से जांच के हुकुम देती है। इस पर इंस्पेक्टर लोबो (पवन मल्होत्रा) उसे कानून की तहकीकात में अड़चन न डालने की सख्त हिदायत देता है। फिर उसे कोर्ट में पेश किया जाता है, जहां उसके नेवी के आलाकमान ऑफिसर्स उसे साथ में ले जाने के लिए कोर्ट से दरख्वास्त करते हैं। उन अधिकारियों की अर्जी को अदालत में भी जाती है, लेकिन रुस्तम जाने से मना कर देता है और खुद को पुलिस के पाया ही रहने को कहता है। इस पर कोर्ट में मौजूद जज समेत रुस्तम के फैसले को सुनकर सभी हैरान रह जाते हैं। अब पता चलता है कि रुस्तम और उसकी बीवी सिंथिया की मुलाकात पहुंच वाले व राईशजादे विक्रम और उसकी बहन से नेवी की एक सुक्सेस पार्टी के दौरान होती है। बस वहीं से विक्रम की गलत नजरें रुस्तम की पत्नी पर आ जाती हैं। फिर रुस्तम एक मिशन के तहत लंदन जाता है और तभी मौका का फायदा और अपनी बहन का साथ पाते हुए विक्रम उसकी पत्नी को प्यार के जाल में फंसाते हुए अपनी हवस का शिकार बना लेता है।
अब केस कोर्ट में शुरू होता है, लेकिन इस केस को जाति-विशेष से जोड़़ते हुए इराच बिलिमोरिया (कुमुद मिश्रा) विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके समाचार पत्र से इस केस को दिन पे दिन और दिलचस्प बनाता जाता है। कोर्ट में सुनवाई के लिए अब एक ज्यूरी का गठन होता है, जिसमें पब्लिक प्रोसिक्यूटर लक्ष्मण खांगनी (सचिन खेडेकर) विक्रम की तरफ से केस लड़ता है, लेकिन रुस्तम मौके की नजाकत को ध्यान में रखते हुए रुस्तम अपने केस की पैरवी के लिए किसी वकील नहीं, बल्कि खुद ही केस लडने का फैसला लेता है। इसी के साथ फिल्म तरह-तरह के मोड़ लेते हुए सस्पेंस के साथ आगे बढ़ती है और दर्शक अपनी सीट से चिपके रहते हैं।
अभिनय…
अक्षय कुमार ने अपने अभिनय से एक बार फिर कमाल कर दिया। इस फिल्म में वो एक जुदा अंदाज में नजर आए। उन्होंने रुस्तम की भूमिका निभाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। साथ ही वे किरदार के तह तक जाते दिखाई दिए। इसके अलावा इलियाना डीकू्रज ने अक्षय कुमार का बखूबी साथ देती नजर आईं। अर्जन बाजवा अपनी भूमिका में सटीक रहे। ऊषा कुलकर्णी ने जमनाबाई का रोल अलग अंदाज में निभाने की पूरी कोशिश की। पब्लिक प्राॅिसक्यूटर के किरदार में सचिन खेडेकर ने अच्छा काम किया है। कुमुद मिश्रा और ईशा गुप्ता ने अपने-अपने रोल को शत-प्रतिशत देने की पूरी कोशिश की है। इसके अलावा पवन मल्होत्रा इंस्पेक्टर लोबो के अभिनय में सटीक रहे। कुल मिलाकर फिल्म के सभी किरदार अपना असर छोड़ते हैं, लेकिन पूरी फिल्म अक्षय के कंधों पर है, जिसका बोझ उठाने में सफल रहे हैं।
निर्देशन…
टीनू सुरेश देसाई ने इस फिल्म में निर्देशन के लिहाज से हर संभव प्रयास किया है, जिसमें में काफी हद तक सफल भी रहे। साथ ही क्राइम और थ्रिलर का तड़का लगाने में भी उन्होंने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। खैर, उन्होंने थ्रिलर परोसने के लिहाज से उनकी कोशिश सही रही। उन्होंने निर्देशन में वाकई में कुछ अलग करने की कोशिश की है, जिसकी वजह से वे ऑडियंस की वाहवाही लूटने में सफल रहे। फस्र्ट हाफ में तो वे अपने निर्देशन के दम पर ऑडियंश को बांधे नजर आए, लेकिन सैकंड हाफ उनकी पकड़ थोड़ी ढाली पड़ जाती है, लेकिन कलाकारों के अभिनय कौशन के चलते वो निर्देशन की कमी खलती नहीं।
फिल्म देखते वक्त दिमाग साथ रखें…
अक्षय कुमार की जब कॉमेडी फिल्म आती थी, तो वो कहते थे कि दिमाग घर रखकर जाएं और भरपूर मनोरंजन करें, लेकिन रुस्तम के साथ ऐसा नहीं है। इसमें दर्शकों का जहां भरपूर मनोरंजन होगा, वहीं फिल्म की गुत्थी सुलझाने के लिए दिमाग पवर भी जोर डालना पड़ेगा। हो सकता है कि कुछ दर्शक ऐसे हों, जिनके समझ में भी न आए, लेकिन जब आप अपने दिमाग का इस्तेमाल करेंगे, तो मजा भी आएगा।
बहरहाल, ‘मतलब बाजी जीतने से है, फिर चाहे प्यादा कुर्बान हो या रानी…’ जैसे डायलॉग्स पर तालियां बजती हैं। जहां तक फिल्म की स्क्रिप्ट और गीत-संगीत का सवाल है, तो फिल्म की स्क्रिप्ट चुस्त-दुरुस्त है, लेकिन स्क्रिप्ट के मुताबिक गीत-संगीत की रचना नहीं की गई। गीत-संगीत फिल्म का कमजोर पहलू नजर आता है।
क्यों देखें…
अक्षय कुमार की बेहतरीन अदाकारी को भला कौन मिस करना चाहेगा। अक्षय के फैंस निराश नहीं होंगे। लेकिन जो दर्शक थ्रिलर के शौकीन हैं, उनके लिए रुस्तम एक बेहतरीन सिनेमा है। कुल मिलाकर वैसा वसूल एंटरटेनमेंट है ‘रुस्तम’।