फिल्म की कहानी
सन 1857 में आजादी की पहली लड़ाई पर आधारित इस फिल्म में नरसिंहा रेड्डी (चिरंजीवी) पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बेवाक तरीके से उठाते हैं। उनके गुरुजी (अमिताभ बच्चन) उनको इसके लिए युद्ध के सभी गुण सिखाते हैं। नरसिम्हा अंग्रेंजों के खिलाफ खुली बगावत पर उतर आते हैं। साथ ही इनमें उन्हें दूसरे पालेगर अवकु राजू (सुदीप), जगपति (वीरा रेड्डी), पापा खान (मुकेश ऋषि) का साथ मिलता है।
लेकिन अंग्रेज भी शांत नहीं रहते हैं वह नरसिम्हा को मारने के लिए पालेगरों को किसी तरह से अपनी तरफ कर लेते हैं। लेकिन नरसिम्हा 300 अंग्रेंजो का खात्मा 40 गांव वालों की मदद से कर देता है। पालेगर और नरसिम्हा फिर मिल जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ सिम्हा की प्रेमिका लक्ष्मी (तमन्ना) अपनी कला से युद्ध का संदेश हर जगह फैलाती हैं। जिस कारण नरसिम्हा का नाम पूरे देश मे गूंजता है। तेलुगू राजा पांडी (विजय सेतुपति) भी नरसिम्हा रेड्डी को आकार मिलते हैं। धीरे धीरे पूरे देश में आजादी की आग जलने लगती है। बौखलाए अंग्रेज नरसिम्हा के खिलाफ पूरी ताकत अपनी झोंकने लगते हैं। इसके बाद नरसिम्हा के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी होती हैं। क्या अंग्रेज नरसिम्हा को मार देते हैं या फिर नरसिम्हा अंग्रेंजो को पस्त कर देते हैं ये सब जानने के लिए फिल्म थिएटर में देखनी होगी।
पत्रिका रिव्यू
64 साल के चिरंजीवी की एक्टिंग शानदार रही।
तमन्ना भाटिया एक बार फिर से इस तरह से रोल में फैंस को खींचने में कामयाब हुईं।
अमिताभ बच्चन ने भी हमेशा की तरह से शानदार एक्टिंग की है।
फिल्म के ग्राफिक्स जबरदस्त हैं।
कुल मिलाकर इस फिल्म को पत्रिका एंटरटेंमेंट की ओर से 5 में से 3 स्टार्स दिए जा सकते हैं। हालांकि दर्शकों को फिल्म कितनी पसंद आती है यह तो आने वाले हफ्ते में ही पता चलेगा।