देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 10 जनवरी 1966 के ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटों बाद 11 जनवरी को रहस्यमय मौत हो गई थी। उनकी मौत एक अबूझ पहेली बनकर रह गई, जो कि इतिहास के सबसे कंट्रोवर्शियल चैप्टर्स में से एक है। अब निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ के जरिए उनकी मिस्टीरियस डेथ की फाइल दर्शकों के सामने रिओपन की है। फिल्म इस सवाल के इर्द-गिर्द घूमती है कि शास्त्री की मौत के पीछे सच क्या है? कहानी में रागिनी फुले (श्वेता बसु) पॉलिटिकल जर्नलिस्ट है। उसके बॉस ने अल्टीमेटम दिया है कि जल्द से जल्द वह कोई स्कूप लेकर नहीं आई तो उसको आर्ट एंड कल्चर बीट दे दी जाएगी। अपने बर्थडे पर रागिनी के पास अननोन पर्सन का फोन आता है, जो उसे बर्थडे गिफ्ट के तौर पर एक लिफाफा भेजता है, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री की मौत से जुड़े कुछ दस्तावेज होते हैं। इस लीड के बाद वह शास्त्री की रहस्यमय मौत पर सवाल उठाती स्टोरी पब्लिश करती है, जिससे सियासी गलियारों में तहलका मच जाता है। इस मामले पर गृहमंत्री नटराजन (नसीरुद्दीन शाह) एक कमेटी गठित करते हैं। इसके बाद कहानी में कई ट्विस्ट्स व टन्र्स आने लगते हैं।
एक्टिंग-डायरेक्शन
शास्त्री की मौत हार्ट अटैक से हुई या फिर उन्हें पॉइजन दिया गया था? इस सवाल को उठाती कहानी में राइटर-डायरेक्टर विवेक ने सिनेमैटिक लिबर्टी ली है। लचर स्क्रीनप्ले के कारण पहला हाफ खिंचा हुआ लगता है। कहानी में न्यूज स्टोरी, ऐतिहासिक पुस्तकों, दस्तावेजों आदि को सनसनीखेज तरीके से तथ्यों की डोर से पिरोने की कोशिश की है, जो रोमांच बढ़ाते हैं। जर्नलिस्ट की भूमिका में श्वेता ने सराहनीय काम किया है, पर कुछ दृश्यों में ओवरएक्टिंग भी की है। पॉलिटिशियन व कमेटी अध्यक्ष श्याम सुंदर त्रिपाठी के रोल में मिथुन चक्रवर्ती की परफॉर्मेंस अच्छी है। नसीर के लिए करने को कुछ खास नहीं है। पंकज त्रिपाठी बॉलीवुड के वो एक्टर हैं, जो छोटे से कैरेक्टर में भी छाप छोड़ जाते हैं। मंदिरा बेदी की एक्टिंग ठीक है, वहीं पल्लवी जोशी को एक अंतराल के बाद पर्दे पर देखकर अच्छा लगता है। विनय पाठक, राजेश शर्मा, प्रकाश बेलवाडी समेत अन्य सपोर्टिंग कास्ट का काम ठीक है। बैकग्राउंड म्यूजिक लाउड है। ‘सब चलता है’ गाना यहां नहीं चलता है। सिनेमैटोग्राफी लाजवाब है। कमजोर लिखावट की तरह संपादन भी सुस्त है
क्यों देखें
‘द ताशकंद फाइल्स’ की कहानी में शास्त्री की रहस्यमय मौत के संबंध में अलग-अलग पहलू प्रस्तुत किए हैं, जो इतिहास के पन्ने पलटने को मजबूर करते हैं। ऐसे में अगर आप सच्ची घटना से प्रेरित फिल्में देखने के शौकीन हैं, तो ‘द ताशकंद…’ देख सकते हैं, पर तथ्यों की विश्वसनीयता के लिए खुद रिसर्च करें तो बेहतर होगा।