शृंगी ऋषि की पूजा का विशेष महत्व
अनुष्ठान में शृंगी ऋषि की पूजा का विशेष महत्व है। शृंगी ऋषि के मस्तक पर जन्म से ही सींग था, जिसके कारण उनका नाम शृंगी ऋषि पड़ा। ऋषि के आह्वान से इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं। इस कारण उनकी प्रतिमा पर भी भगवान श्री महाकालेश्वर के साथ सतत सहस्त्र जलधारा से अभिषेक किया जा रहा है।
प्रतिदिन 11 से 3 बजे तक होगा अनुष्ठान
प्रशासक धाकड ने बताया मंदिर प्रबंध समिति द्वारा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी पांच दिन का अनुष्ठान किया जा रहा है। यह अनुष्ठान सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे किया जाएगा। आयोजन की आवश्यक व्यवस्थाओं के लिए स्वकार्य के साथ अधिकारियों व कर्मचारियों की ड्यूटी भी लगाई हैं।
सोला-धोती की अनिवार्यता को खत्म करने पर चल रहा विचार
महाकाल मंदिर में प्रतिदिन होने वाली त्रिकाल पूजा को छोडक़र बाकी अन्य समय में गर्भगृह में प्रवेश करने के दौरान जो ड्रेसकोड लागू किया जाता है, उसे खत्म करने पर विचार किया जा रहा है। धोती-सोला की अनिवार्यता खत्म होने के बाद श्रद्धालुओं को सीधे प्रवेश कर दर्शन-पूजन का लाभ मिलेगा। इसके लिए ड्रेसकोड की बाध्यता खत्म कर सकते हैं।
प्रशासक गणेश कुमार धाकड़ ने बताया कि बहुत जल्द धोती-सोला के बिना ही गर्भगृह में प्रवेश दिए जाने पर विचार चल रहा है। यह निर्णय सभी के हित में रहेगा। साथ ही बाहर से आने वाले दर्शनार्थी भी किसी प्रकार से भ्रमित नहीं होंगे। अभी इस पर मंथन किया जा रहा है। हो सकता है सावन मास के पहले ही इस व्यवस्था को लागू कर दिया जाए।
गर्भगृह में जाने के लिए पहनना पड़ता है धोती-सोला
वर्तमान में जो दर्शन-पूजन की व्यवस्था मंदिर में चल रही है, उसके अनुरूप अभी गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए ड्रेसकोड यानी धोती-सोला पहनना अनिवार्य होता है। लेकिन मंदिर समिति यदि निर्णय लेती है, तो आने वाले समय में इसकी अनिवार्यता पूर्णत: खत्म हो जाएगी। सिर्फ त्रिकाल पूजा-आरती के दौरान ही दर्शनार्थियों को इसे पहनना होगा।