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14 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा, जानें क्यों सिख और हिन्दुओं के लिए है खास

Published: Nov 12, 2016 05:39:00 pm

Submitted by:

Manish Gite

mp.patrika.com आपको बताने जा रहा है कार्तिक पूर्णिमा का महत्व। मध्यप्रदेश से बहने वाली जीवनरेखा नर्मदा, ताप्ती, क्षिप्रा और बेतवा नदी में लोग स्नान करने के बाद गंगा की तरह स्नान का महत्व महससू करते हैं…।

kartik poornima

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हिन्दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह पूर्णिमा 14 नवंबर को आ रही है। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन गंगा स्नान, नर्मदा स्नान, दीपदान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक साल का 8वां माह कार्तिक माह होता है।

इस माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। हर साल 15 पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास अथवा मलमास आता है, तब इनकी संख्या 16 भी हो जाती है। सृष्टि के आरंभ से ही यह दिन बड़ा ही खास माना गया है। पुराणों में भी इस दिन स्नान, व्रत और तप, मोक्ष प्राप्त करने के लिए विशेष तिथि है।

mp.patrika.com आपको बताने जा रहा है कार्तिक पूर्णिमा का महत्व। मध्यप्रदेश से बहने वाली जीवनरेखा नर्मदा, ताप्ती, क्षिप्रा और बेतवा नदी में लोग स्नान करने के बाद गंगा की तरह स्नान का महत्व महससू करते हैं…।


सिख धर्म के लिए भी है अहम
कार्तिक पूर्णिमा का का महत्व वैष्णव, शैव और सिख धर्म के लिए भी बढ़ा ही खास है। क्योंकि इस दिन सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इसी दिन को प्रकाशोत्सव भी कहते हैं। इस तिथि को सिख सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं।

इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। भगवान विष्णु का प्रथम अवतार इसी तिथि को हुआ था। पहले अवतार में विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में प्रकट हुए थे। विष्णु को यह अवतार वेदों की रक्षा, संसार में प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों,अनाज और राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इसी के बाद सृष्टि का निर्माण फिर से आसान हो पाया था।


त्रिपुरासुर का संहार किया था शिव ने
पुराणों के मुताबिक इस तिथि को भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का वध किया था। इसके बाद देवगण भी बेहद प्रसन्न हो गए और वे शिवजी को त्रिपुरारी नाम से भी पुकारने लगे। यह नाम भोले के अनेक नामों में से एक है। इसलिए यह’त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी हैं।


दान का है महत्व
कार्तिक पूर्णिमा का दिन कई वजहों से खास है। इस दिन गंगा स्नान, दीप दान और अन्य प्रकार के दान करने का समय होता है। इसी दिन क्षीरसागर का दान करने का भी महत्व है। इसके लिए 24 उंगल के बर्तन में दूध भरकर उसमें सोने या चांदी की मछली छोड़ी जाती है। यह उत्सव दीपोत्सव की तरह ही दीप जलाकर मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन कृतिका में शिवजी के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान रहता है।


यह है पूजन विधि
1. हो सके तो इस दिन गंगा स्नान करना चाहिए। यह संभव नहीं हो पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। मध्यप्रदेश में नर्मदा, ताप्ति और क्षिप्रा पवित्र नदियों में प्रमुख हैं।
2.स्नान के बाद व्यक्ति को भगवान विष्णु की आराधना करना चाहिए।
3. इसी दिन व्यक्ति को उपवास भी रखना चाहिए अथवा एक समय ही भोजन करना चाहिए।
4. नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन और हो सके तो ब्राह्मणों को दान दें और उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराना चाहिए।
5. शाम को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। तभी व्रत पूर्ण माना जाता है।


होशंगाबाद में लगा भक्तों का मेला
होशंगाबाद में नर्मदा नदी और तवा नदी का संगम है। इसी स्थान पर कार्तिक मेला का आयोजन हर साल किया जाता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु स्नान और दीपदान करने पहुंचते हैं। इस मेले में दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों समेत कई संस्थाओं के लोग भी पहुंचते हैं। यहां आकर्षक प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। इसके अलावा नर्मदा नदी जहां जहां से भी गुजरती है उसके तटीय शहरों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। अमरकंटक, जबलपुर, होशंगाबाद, ओंकारेश्वर के घाटों पर भक्तों का मेला लग जाता है।


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