जानवरों से फैलता है संक्रमण
मंकीपॉक्स को लेकर बीएमसी ने सोमवार को एडवायजरी जारी की। आम लोगों को इससे बचने की हिदायत दी गई है। इसमें बताया गया है कि मंकीपॉक्स वायरस जानवरों (बंदर आदि) से इंसानों में फैलता है। संक्रमित शख्स दूसरे को भी संक्रमित कर सकता है। जंगली जानवरों का मांस (बुशमीट) खाने से भी संक्रमण हो सकता है। संक्रमित जानवरों से दूरी बनाए रखने की नसीहत दी गई है।
मंकीपॉक्स को लेकर बीएमसी ने सोमवार को एडवायजरी जारी की। आम लोगों को इससे बचने की हिदायत दी गई है। इसमें बताया गया है कि मंकीपॉक्स वायरस जानवरों (बंदर आदि) से इंसानों में फैलता है। संक्रमित शख्स दूसरे को भी संक्रमित कर सकता है। जंगली जानवरों का मांस (बुशमीट) खाने से भी संक्रमण हो सकता है। संक्रमित जानवरों से दूरी बनाए रखने की नसीहत दी गई है।
संक्रमण के लक्षण
मंकीपॉक्स वायरस संक्रमित व्यक्ति को बुखार हो सकता है। शरीर पर दाने-सूजन भी इसके लक्षण हैं। संक्रमण के 7 से 14 दिन में व्यक्ति बीमार पड़ सकता है। कुछ मामलों में यह उभरने में पांच से 21 दिन तक का समय लेता है। जब तक शरीर पर दाने नजर नहीं आते हैं, वायरस प्रभावित व्यक्ति संपर्क में आए अन्य लोगों को संक्रमित कर सकता है। दाने मुरझाने तक संक्रमण फैलने का जोखिम होता है। संक्रमित व्यक्ति के कपड़े-बिस्तर का इस्तेमाल अन्य लोगों को नहीं करना चाहिए।
मंकीपॉक्स वायरस संक्रमित व्यक्ति को बुखार हो सकता है। शरीर पर दाने-सूजन भी इसके लक्षण हैं। संक्रमण के 7 से 14 दिन में व्यक्ति बीमार पड़ सकता है। कुछ मामलों में यह उभरने में पांच से 21 दिन तक का समय लेता है। जब तक शरीर पर दाने नजर नहीं आते हैं, वायरस प्रभावित व्यक्ति संपर्क में आए अन्य लोगों को संक्रमित कर सकता है। दाने मुरझाने तक संक्रमण फैलने का जोखिम होता है। संक्रमित व्यक्ति के कपड़े-बिस्तर का इस्तेमाल अन्य लोगों को नहीं करना चाहिए।
ज्यादा खरतनाक नहीं
चिकित्सकों के मुताबिक मंकीपॉक्स कोविड-19 से कम खतरनाक है। दो से चार सप्ताह में यह ठीक हो जाता है। अफ्रीका सहित अन्य देशों के अध्ययन के मुताबिक इस वायरस से संक्रमित एक से 10 प्रतिशत मरीजों की मौत हो सकती है। यह वायरस कटी-फटी त्वचा, श्वास नली या श्लेष्मा झिल्ली के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है।
चिकित्सकों के मुताबिक मंकीपॉक्स कोविड-19 से कम खतरनाक है। दो से चार सप्ताह में यह ठीक हो जाता है। अफ्रीका सहित अन्य देशों के अध्ययन के मुताबिक इस वायरस से संक्रमित एक से 10 प्रतिशत मरीजों की मौत हो सकती है। यह वायरस कटी-फटी त्वचा, श्वास नली या श्लेष्मा झिल्ली के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है।