विदित हो कि अगस्त 2018 में रिलायंस इंफ्रा ने बिजली वितरण का काम अदानी कंपनी को हस्तांतरित कर दिया गया था। फिर मैन पॉवर की कमी को देखते हुए कंपनी को मीटर रीडिंग लेने के लिए अतिरिक्त कर्मचारी नियुक्त करने की उम्मीद थी, जबकि कम मैन पॉवर से ही लोगों के मीटर रीडिंग का काम किया गया। मई में गर्मी अधिक होती है, जबकि जून के महीने में बारिश शुरू हो जाती है। इसलिए इन दो महीनों में बिजली की खपत अधिक रहती है। वहीं अगस्त के महीने में बिजली की खपत कम हो जाती है। कंपनी ने अगस्त से तीन महीने पहले बिल लेने का काम किया। बेशक कई उपभोक्ताओं को 100 से अधिक यूनिट बिजली भेजी गई है, जिसके चलते बिल दर में वृद्धि हुई। इन मामले पर समिति ने निष्कर्ष निकाला है कि बिजली खरीद के लिए उचित योजना बनाने में कंपनी विफल रही। अब वहीं समिति की इस रिपोर्ट पर उपभोक्ताओं को आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है।
विदर्भ इंडस्ट्रीज पावर लिमिटेड ने अनुबंध के मुकाबले कंपनी को 46 प्रतिशत कम बिजली देने के बाद कंपनी को बिजली खरीदनी पड़ी। समिति ने सिफारिश की कि कंपनी को कम बिजली की आपूर्ति पर एक समाधान तय करना चाहिए, बिजली की खरीद की योजना बनाना चाहिए और बिजली के उपयोग का अध्ययन करना चाहिए।
आयोग के अनुसार, गर्मियों में बिजली का उपयोग बढ़ जाता है, इसलिए बिजली के बिल में वृद्धि होती है। जिन ग्राहकों की ओर से शिकायत की गई, उनके मीटरों की वास्तविक रीडिंग ली गई थी और बढ़ी बिल की राशि को अगले बिल से हटा दिया गया था। कंपनी की ओर से पावर बैंकिंग शुरू करने से बिजली खरीद की लागत कम होगी और इसका ग्राहकों को फायदा होगा।