बच्चों के आत्मसम्मान को बढ़ाने में प्राण-प्रण से जुटा एक दंपती
मुंबईPublished: Aug 12, 2019 04:12:07 pm
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “ब्रह्माड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। वो हमीं हैं, जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!”
बच्चों के आत्मसम्मान को बढ़ाने में प्राण-प्रण से जुटा एक दंपती
अरुण लाल
मुंबई. स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “ब्रह्माड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। वो हमीं हैं, जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!” आज जब बहुत से लोग अपनी आंखों पर हाथ रखें अंधेरे का रोना रो रहे हैं, ऐसे में मुंबई के अंधेरी इलाके में रहने वाले एक पति-पत्नी सुरेश और पूनम समेल सरकारी स्कूल के बच्चों को जूडो सिखाने का कार्य कर रहे हैं। ये वे बच्चे हैं, जिनके प्रति दया के भाव जगते हैं… जिन्हें देखकर लोगों के मन में वडा-पाव खिलाकर आगे बढ़ जाने की चाहत जन्मती है। इन बच्चों में इस दंपती ने प्रतिभा का भंडार देखा… और जुटे हुए हैं उनको आत्मसम्मान से जीना सिखाने में… ये 40 बच्चे उनके अपने बच्चे जैसे ही नजर आते हैं। ये उनके साथ मस्ती करते हैं, उनकी तकलीफों में उनका मनोबल बनकर साथ देते हैं। ये उन बच्चों का आदर्श हैं। आईआरएस ऑफिसर के पद से रिटायर होने के बाद सुरेश समेल बीएमसी स्कूलों के गरीब बच्चों, जिनकी प्रतिभा की तरफ कोई ध्यान नहीं देता, उन्हें जूडो सिखाने का कार्य कर हैं। अभी वर्ष भर भी नहीं हुए “विलेपार्ले सेंटर” को शुरू होकर, इतने कम समय में एक बच्ची ने नेशनल लेवल पर ब्रांज जीता और उसका चयन “खेलो इंडिया” के तहत केंद्रीय विद्यालय में हुआ है। जहां उसकी सारी जिम्मेदार केंद्र सरकार उठाएगी। आठ बच्चे ऐसे हैं, जिनके स्टेट और नेशनल खेलने की संभावनाएं बनी हैं।
समेल कहते हैं, “सच कहूं तो हम कुछ नहीं कर रहे। अगर आप इन बच्चों को देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि इनकी क्षमताएं बहुत ज्यादा हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि ईश्वर ने इतनी प्रतिभाओं को मौका दिया। ये बच्चे बहुत गरीब हैं, छोटे-छोटे घरों में रहते हैं। आपको यकीन नहीं होगा कि इनमें से ज्यादातर बच्चों की स्थिति ऐसी है कि बीमार होने पर दवाई भी नहीं ले पाते। हो सकता है कि इन्हें सरकार की तरफ से फ्री दवाइयों की व्यवस्था है, पर वहां इस तरह का व्यवहार है कि ये बच्चे वहां जाने से बचते हैं। इतनी गरीबी से आने वाले इन बच्चों की प्रतिभा देखेंगे, तो आप चौंक जाएंगे। इन्हें जो भी समझाता हूं, ये बहुत ध्यान से सुनते-समझते हैं। शायद परिस्थितियों ने इन्हें इतना समझदार और मजबूत बना दिया है। मुझे इन बच्चों में दूसरे आम बच्चों से ज्यादा प्रतिभा नजर आती है।” समेल की नाम की चर्चा करते ही इन बच्चों के चेहरे पर चमक आ जाती है, उनके मनों में उनके लिए सम्मान के भाव जाग जाते हैं। ये भाव हमें बताते हैं कि समेल ने इनके जीवन को बदल कर रख दिया है। पूनम समेल कहतीं हैं, “सुरेश के रिटायरमेंट के बाद हम समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। तब हमने तय किया कि उसी फील्ड में काम करते हैं, जिसमें हम मास्टर हैं। हम दोनों ने इन बच्चों के लिए यह कार्य शुरू किया। हमें हर तरफ से लोगों का सपोर्ट मिला, पर कुछ समस्याएं तो हैं यहां। जूडो के लिए कपड़े, गादी, और डायट जैसी चीजों की जरूरत होती है। जिन्हें इकट्टा करने में थोड़ी परेशानी हो रही है। हमने कई स्तरों पर लोगों से मदद भी ली। दुनिया का दस्तूर अजीब है, जब कोई बच्चा अच्छा करने लगता है, तो बहुत से लोग मदद को आगे आते हैं, पर हमें ऐसे बच्चों की मदद करनी चाहिए, जिनमें अच्छा करने की उम्मीद है। गावस्कर, सचिन और विराट को नाम बनने के बाद किसी तरह की मदद की जरूरत नहीं होती, जरूरत इससे पहले होती है। इन बच्चों को तो ठीक से डाइट भी नहीं मिलती। क्या ये बच्चे हमारी जिम्मेदारी नहीं है?” समेल दम्पति ने जुडो के माध्यम से कुछ मासूम बच्चों के जीवन में आशा भरी, वे कहते हैं, हम अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, अगर हम चंद बच्चों की मुस्कान भी बन सकें तो हमारे लिए गर्व की बात होगी।