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सत्कर्म से श्राप भी बन जाता है वरदान

locationमुंबईPublished: Jan 29, 2020 06:14:32 pm

Submitted by:

Arun lal Yadav

जितने बुरे पात्र हैं, उन सबको किसी न किसी देवी-देवता का वरदान प्राप्त है
कई लोग वरदान को भी शाप बना लेते हैं और कई लोग कला में इतने निपुण होते हैं कि शाप को भी वरदान बना लेते हैं

सत्कर्म से श्राप भी बन जाता है वरदान

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मुंबई. हरिहर संत सेवा मंडल की ओर से वरली स्थित सेंचुरी मिल कामगार वसाहत गणेश मैदान में आयोजित 56 वें रामकथा महोत्सव के सप्तम दिवस पर कथा व्यास डॉ. स्वामी विनय स्वरूपानंद सरस्वती ने श्री रामचरित मानस पर कथा करते हुए कहा कि एक विचित्र बात रामायण में आती है कि जितने बुरे पात्र हैं, उन सबको किसी न किसी देवी-देवता का वरदान प्राप्त है, चाहे मेघनाथ हो, चाहे रावण हो, चाहे कुंभकर्ण हो, सबको वरदान मिला और जबकि दूसरी तरफ नारद ने विष्णु भगवान को शाप दे दिया, हनुमान को ऋ षियों ने शाप दे दिया, नल-नील को ऋषियों ने शाप दे दिया, लेकिन बात बिल्कुल उल्टी हो गई।
जिनको वरदान मिला, उनकी तो गिनती दुष्टों में हो गई और जिनको शाप मिला, उनकी पूजा होने लगी। यही जीवन की कला है। कई लोग वरदान को भी शाप बना लेते हैं और कई लोग कला में इतने निपुण होते हैं कि शाप को भी वरदान बना लेते हैं।
सत्कर्म के द्वारा कल्याण होता है यह कर्मयोग है और भक्तियोग की मान्यता यह है कि जो-जो कमी मानी जाती है, व्यक्ति उस कमी को भी यदि भगवान की ओर मोड़ दे तो हमारी कमी भी भगवान के पास पहुंच करके, दोष दोष न रह करके गुण बन जाता है।
भगवान शंकर की कला यह है कि वे दोषों को गुण बना देते हैं। अन्य देवता अमृत पीकर अमर होते हैं पर शंकर विष पीकर अमर होते हैं। वैद्य की कला यह है कि वह संखिया के विषत्व को मिटाकर उसमें भी अमृतत्व की सृष्टि कर देता है।
शंकरजी में दोष हैं नहीं, लेकिन वे दोषों को स्वीकार करते हैं, दोषों को गुण बनाने के लिए। शंकरजी टेढ़े चंद्रमा को भी ऊपर उठाकर उसे वन्दनीय बना देते हैं, विष को भी अमृत बना देते हैं, यही उनके जीवन की कला है । यदि कला ठीक नहीं है तो गुण भी दोष बन सकते हैं। रामायण के जो बुरे पात्र हैं, उनके जीवन में भी गुण हैं, परंतु उन्होंने गुण को दोष बना दिया ।

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