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Ahilyabai Holkar Punyatithi 2022: अहिल्याबाई होल्कर की पुण्यतिथि आज, पढ़ें मालवा की बहादुर और कूटनीतिज्ञ महारानी के शौर्य के अनसुने किस्से

locationमुंबईPublished: Aug 13, 2022 09:19:21 am

Submitted by:

Subhash Yadav

अहिल्याबाई होल्कर भारत की वह बेटी थी जिनके बहादुरी के किस्से सभी को पता हैं। अहिल्याबाई को न्याय की देवी कहा जाता था। होल्कर ने 28 सालों तक मालवा की रानी के रूप में शासन किया था। ओंकारेश्वर पास होने और नर्मदा के प्रति श्रद्धा होने के चलते उन्होंने महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया हुआ था।

Ahilyabai Holkar Punyatithi 2022

अहिल्याबाई होल्कर की पुण्यतिथि आज, पढ़ें मालवा की बहादुर और कूटनीतिज्ञ महारानी के अनसुने किस्से

Ahilyabai Holkar Punyatithi 2022: अहिल्याबाई होल्कर के बारे में कई किस्से इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। जिन्हें हम पढ़ते आए हैं। उनकी बहादुरी और शौर्य की गाथाएं आज भी बच्चों-बच्चों की जुबान पर है। अहिल्याबाई शिंदे का जन्म 31 मई 1725 को मुंबई के अहमदनगर स्थित जामखेड़ के चोंडी नामक गांव में हुआ था।
अहिल्याबाई के पिता जनकोजी राव शिंदे ने समाज की धारा से अलग जाकर उन्हें शिक्षा दिलाई थी। आठ साल की अहिल्याबाई जब बच्चों को खाना खिला रही थी तो मालवा के पेशवा मल्हार राव ने उन्हें देखा और उनके स्वभाव से प्रसन्न हो गए। फिर उन्होंने शिंदे से अपने बेटे खांडेराव की पुत्रवधू के रूप में अहिल्याबाई की मांग कर दी। जिसके बाद छोटी से उम्र में ही वह दुल्हन बनकर मराठा परिवार से होल्कर राजघराने चली गईं।
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होल्कर घराने आने ने बाद अहिल्याबाई के भाग्य में अधिक समय तक सुहागन होना नहीं था। जब वह 29 साल की थीं तो पति खांडेराव की कुंभेर के युद्ध में मौत हो गई। उन दिनों सती प्रथा प्रचलित थी। जिसके करण अहिल्याबाई होल्कर ने भी पति खांडेराव के मृत शरीर के साथ सती होने का निर्णय लिया। सारी तैयारियां हो गई थी लेकिन उससे पहले ही उनके ससुर ने अपने वृद्धावस्था का वास्ता और राजघराने परिवार की जिम्मेदारी और सूबे की कमान संभालने का आग्रह किया। फिर क्या था मालवा का सियासी माहौल देखते हुए महारानी होल्कर ने पिता समान ससुर की बात मां ली और सती होने का फैसला रद्द कर दिया।
वर्ष 1766 में ससुर मल्हार राव के निधन के बाद उनके बेटे की भी मौत हो गई। जिसके बाद अहिल्याबाई के सियासी कामों को देखते हुए उन्हें मालवा की महारानी घोषित कर कमान दी गई। पुरुष प्रधान समाज में एक महिला के सिहांसन पर बैठते ही कुछ शासकों को यह बात अच्छी नहीं लगी। जिसके बाद इन लोगों की तरफ से मालवा पर कब्जा करने की तमाम कोशिशें की गई।
इसी बीच अहिल्याबाई को कमजोर आंकते हुए पेशवा राघोबा एक विशाल सेना के साथ इंदौर पहुंच गए। साथ ही महारानी अहिल्याबाई को आत्मसमर्पण नहीं तो युद्ध का संदेश भी भेज दिया। लेकिन सेनापति को महारानी ने कहा कि हम आत्मसमर्पण नहीं युद्ध करेंगे। इस साहस को देख पेशवा अपनी सेना के साथ वापस चला गया।
महारानी अहिल्याबाई ने वर्ष 1766 में सत्ता की कमान अपने हाथों में ली। जिसके बाद कई युद्ध की अगुवाई भी की। वह हाथी पर सवार होकर लड़ती थी। उनकी साहस देखकर शत्रु उनके पास आने से डरते थे। महारानी ने देश के कई मंदिरों अयोध्या, सोमनाथ, जगन्नाथ पुरी सहित कई का जीर्णोद्धार कराया था। लेकिन 13 अगस्त 1795 में उनकी मृत्यु हो गई।

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