रमजान महीने में बुराई से बचें
मुंबईPublished: May 21, 2019 06:25:28 pm
नेक काम करने और बुराई से बचने का अभ्यास है रोजा
अल्लाह ने बंदों के लिए हर साल में एक महीना रमजान का अता किया
रमजान महीने में बुराई से बचें
भिवंडी. अल्लाह ने अपने बंदों के लिए दुनिया में हर साल में एक महीना रमज़ान का अता किया है। जिसमें वह बाकी ग्यारह महीनों में नेक काम करने और बुराई से बचने का अभ्यास करता है। तकवा के बगैर रोज़ा यानि रोज़ेदार अगर बुरे कामों और बुरी बातों जैसे- झूठ, गीबत, चुगली और गाली-गलौज आदि से परहेज न करे और नेक काम जैसे- इबादत, तिलावत, सदका व खैरात वगैरह न करे तो फिर वह रोज़ा नहीं होगा। बल्कि उसे फाकाकशी कहेंगे। हदीस-ए-नबवी में कहा गया है कि जो शख्स रोज़े की हालत में भी बुरे कामों को न छोड़े तो खुदा को ऐसे रोज़ेदार की भूख-प्यास से कुछ लेना देना नहीं है।
पीठ पीछे बुराई न करें
अल्लाह तआला फरमाता है कि मेरा मकसद तुम्हे भूखा-प्यासा रखना नहीं है। पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. एक जगह फरमाते हैं कि कितने रोज़ेदार ऐसे हैं जिनको भूख व प्यास के सिवा कुछ हासिल नहीं, कितने तहज्जुदगुजार ऐसे हैं जिन्हें बेदारी (रातों को जागना) के अलावा कुछ हासिल नहीं। पैगम्बरे इस्लाम का यह इशारा उन्हीं लोगों की तरफ है जो रोज़े की हालत में भी बुराई से परहेज नहीं करते। इस सिलसिले में एक और हदीस है कि रोज़ेदार सुबह से शाम तक खुदा की इबादत में रहता है, जब तक किसी की गीबत (पीठ पीछे बुराई) न करे, जब वह गीबत करता है तो अपने रोज़े को फाड़ डालता है। लिहाजा इससे साफ जाहिर है कि रोज़े का मकसद इंसान को जिस्मानी और रूहानी दोनों तौर पर बिल्कुल पाक-साफ कर देना है। इस एक महीने में बुराई से बचने और नेक काम करने की ऐसी ट्रेनिंग दे देना है। जिसकी रोशनी में वह पूरे साल की जिन्दगी गुजार सके।