scriptनदी-नालों से लाशें निकाल खुद क्रियाकर्म करते हैं बच्चू सिंह | Bacchu singh Do corpses from rivers and streams | Patrika News

नदी-नालों से लाशें निकाल खुद क्रियाकर्म करते हैं बच्चू सिंह

locationमुंबईPublished: Dec 31, 2018 11:33:57 pm

Submitted by:

arun Kumar

जन सेवा: २० साल में २५०० शवों को परिजनों तक पहुंचाया

Bacchu singh Do corpses from rivers and streams

Bacchu singh Do corpses from rivers and streams

अरुण लाल

मुंबई. लाश शब्द सुनते ही हमारा मन पीछे हटने लगता है। भय हमारे दिलोदिमाग पर छा जाता है। पर यह जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे कि एक ऐसा व्यक्ति भी है, जिसने लाशों की दुर्दशा नहीं होने देने को ही अपने जीवन का मकसद बना लिया। यहां तक की सड़ी गली लाशों से भी उन्हें घिन नहीं आती। आज हम बात कर रहे हैं पुणे में रहने वाले बच्चू सिंह गुरूमुख सिंह टाक (39) की। इन्होंने पिछले 20 वर्ष में ढाई हजार लाशें नदी, नालों से निकाली और ट्रेन की पटरियों से उठाई है। इसके लिए ये किसी से पैसे नहीं लेते। गाडिय़ों की धुलाई और फेब्रिकेशन के काम से जीवन यापन करने वाले बच्चू सिंह ने आत्महत्या के लिए नदी में कूदने वाले और ट्रेन के सामने कूदने वाले 150 लोगों की जानें बचाई है। उनका काम यहीं नहीं खत्म होता वे लावारिस लाशों का क्रियाकर्म भी करते हैं। बात उन दिनों की है जब बच्चू सिहं 14 वर्ष के थे। उनके चाचा की मुआ मुठा नदी में गिरकर मौत हो गई थी। पांच दिन तक चाचा की लाश ढूंढी जाती रही, पांचवे दिन लाश मिली। इन पांच दिनों में पूरा परिवार पूरी तरह से टूट गया। बच्चू के बालमन पर इस घटना ने बहुत असर डाला। उन्होंने तय किया कि जैसे उनका परिवार दु:खी हुआ ऐसे कोई और दु:खी न हो इसलिए वे कार्य करेंगे। 14 वर्ष की उम्र से उन्होंने लाशों को निकालने का कार्य शुरू किया।
बहुत कठिन थी डगर

बच्चू बताते हैं, ”शुरूआती दिन बहुत कठिन थे। उन दिनों मेरे परिवार और आसपास के लोगों को लगा कि मेरा दिमाग खराब हो गया है। पर धीरे-धीरे लोगों को मेरी बात समझ में आने लगी। आज मेरे दोनों बेटे सहित परिवार के दूसरे नौ बच्चे और मेरे दूसरे साथी मेरे काम में मेरा हाथ बंटाते हैं। ‘शहीद भगतसिंह जीव रक्षक फाऊंडेशनÓÓ में कुल मिलाकर 30 लोग इस कार्य में लगे हुए हैं।ÓÓबच्चू अनवरत लाश उठाते रहे। तभी उन्हें परेशानी आई कि लोग लाशों को अपनी एंबुलेंस में लेकर नहीं जाते। ऐसे में उन्होंने भारत धागे से बात की। भारत ने उनके काम को देखा और उनकी मदद को तैयार हो गए। उन्होंने अस्पताल की नौकरी छोड़ी और अपनी जमा पूजी से एंबुलेंस खरीद ली। इसके बाद इन दोनों ने मिलकर हजारों लाशों को उनके परिजनों को सौंपने का कार्य किया है।
बहुत सुकून मिलता है

भारत कहते हैं, हो सकता है कि किसी को लगे यह बहुत छोटा काम है, पर मैं समझता हूं कि मेरा सौभाग्य है कि मैं रोते हुए लोगों के लिए कुछ कर रहा हूं। मेरे बेटे को मेरे काम पर फक्र है, वह 12वीं में पढ़ता है। इसके साथ ही जब भी मौका मिलता है, वह मेरे साथ जाकर लाशें निकालने में मेरी और बच्चू सिंह की मदद करता है। ‘ बच्चू सिंह यहीं नहीं रुकते वे समय-समय पर रक्तदान शिविर चलाते हैं। शहर के आसपास उन्होंने हजारों वृक्ष लगाएं हैं। अपने इलाके में एक वाचनालय बनाया है। अपने व्यस्त जीवन से समय निकाल कर वे बेटी बचाओ अभियान के लिए घर-घर जाकर काम करते हैं। वे लोगों को स्वच्छता के लिए जागरूक करते हैं। वे कहते हैं, ‘हमें अपने काम के लिए दुआएं नहीं मिलती, क्योंकि वह व्यक्ति दर्द में डूबा होता है। सच यह है कि हमें दुआएं चाहिए भी नहीं, किसी की मदद करने के बाद हमें आत्मसंतुष्टि मिलती है कि आज एक अच्छा काम किया।ÓÓ
सड़ी-गली लाशों से भी घिन नहीं आती

जब सभी अपनी नाक पर रुमाल रखकर लाश को दूर से देखते हैं, तब बच्चू सिंह उस लाश को संभाल कर पानी से बाहर निकालते हैं। फांसी पर लटकी लाश को संभाल कर उतारते हैं, जले हुए शरीर को अस्पताल तक पहुंचाते हैं। ट्रेन की पटरियों से मानव शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े उठाकर पुलिस और मृतक के परिजनों को सौंपते हैं। यह बच्चू सिंह का काम नहीं है, इससे कोई आमदनी नहीं मिलती। इसके बावजूद फोन बजते ही वे वहां पहुंचते हैं, और लोगों की मदद करते हैं। वे कहते हैं, ”मुझे कभी किसी लाश से घिन नहीं हुई। क्योंकि मैं जानता हूं कि कुछ समय पहले यह जीता जागता इंसान था। और कभी न कभी हम भी यूं ही बेजान पड़े होंगें।ÓÓ
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो