नरेश मुनि के मुताबिक जिस तरह बरसात आने पर किसान खुश हो जाते हैं। उसी प्रकार चातुर्मास के आगमन पर श्रावक और श्राविका प्रफुल्लित हो उठते हैं। शालिभद्र म.सा. ने कहा कि संत तो प्रहरी की तरह लोगों को जगाकर अंधकार को दूर भगाते हैं। इसलिए यदि आप जिनवाणी सुनने आते हैं तो खाली होकर आएं तभी ज्ञान का भरपूर भंडार लेकर जा पाओगे। साध्वी डा. दर्शन प्रभा ने कहा कि आज वक्त के तकाजा के मुताबिक गुरू का प्रवचन और सत्संग नितांत जरूरी है। क्योंकि गुरू के उपकार के बिना शिष्य और समाज कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकता। साध्वी डा. मेघाश्री ने कहा कि सांसारिक रिश्ते शीशे की तरह नाजुक होते हैं, जो एक झटके में ही चकनाचूर हो जाते हैं। लेकिन गुरू-शिष्य का नाता सच्चा और अटूट होता है। साध्वी समृद्धि ने कहा कि गुरू बने बिना बहुतों को मोक्ष की प्राप्ति हुई है। लेकिन शिष्य बने बिना मोक्ष सर्वथा असंभव है। अशोक बाफना ने परिषद का संचालन किया। प्रचार समिति के लक्ष्मीदास दोशी ने कहा नरेश मुनि म.सा. की प्रेरणा और चंद्रकला बाफना के सौजन्य से धर्म चक्र की आराधना हुई।
औरंगाबाद श्री संघ के ताराचंद, मुंबई से पारसमल छाजेड़, भायंदर से सुरेश छाजेड़ सहित श्री राजस्थान स्थानकवासी जैन संघ और श्री राजस्थान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के पदाधिकारी और सदस्यों के अलावा जैन समाज के काफी संख्या में श्रावक और श्राविकाएं मौजूद रहे।