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चीनी पारंपरिक दवाओं पर मान्यता ने वन्यजीव प्रेमियों की चिंता बढ़ाई

locationमुंबईPublished: May 23, 2019 06:13:28 pm

Submitted by:

Devkumar Singodiya

डब्ल्यूएचओ ने दवा निर्माण में वन्य जीवों के अंगों के इस्तेमाल पर मंजूरी

चीनी पारंपरिक दवाओं पर मान्यता ने वन्यजीव प्रेमियों की चिंता बढ़ाई

चीनी पारंपरिक दवाओं पर मान्यता ने वन्यजीव प्रेमियों की चिंता बढ़ाई

मुंबई. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहली बार पारंपरिक चीनी दवा (टीसीएम) को औपचारिक रूप से मान्यता देने पर सहमति जताई है। इससे कई वन्य जीवों के अंगों का दवाओं में इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। संगठन के इस फैसले पर मुंबई स्थित वन्यजीव संरक्षणवादियों ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए वन्य जीवों के संरक्षण पर गहरी चिंता जताई है। बाघ, पैंगोलिन और भालू के अंगों का चीनी परंपरागत दवाओं में इस्तेमाल होता है। वाइल्डलाइफ कंसर्वेशन ट्रस्ट और पैंथर ए ग्लोबल वाइल्ड कैट ऑर्गनाइजेशन ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बाघ, पैंगोलिन, भालू, राइनो और अन्य प्रजातियों के वन्य जीवों के अंगों का इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। इनके अंगों का टीसीएम पद्धति के इलाज में गठिया से लेकर मिर्गी तक की बीमारियों में उपयोग किया जाता है। वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. अनीश अंधेरिया ने आरोप लगाया कि डब्ल्यूएचओ ने उस डेटा को अनदेखा किया है, जो वन्यजीवों के अवैध व्यापार की व्यापकता को बताता है।


कन्वेंशन को लागू करने की सिफारिश
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि टीसीएम को अपने वैश्विक चिकित्सा संग्रह में शामिल करने का मतलब यह नहीं था कि यह जानवरों के अंगों के उपयोग को दर्शाता है या अभ्यास की वैज्ञानिक वैधता का समर्थन किया जाता है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि इसने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर वन्य प्राणियों और वनस्पतियों (सीआईटीईएस) की लुप्तप्राय प्रजातियों में कन्वेंशन को लागू करने की सिफारिश है।

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