scriptप्रेरणाास्रोत बन महिलाओं का जीवन रोशन कर रहीं दीपाली | Deepali of Hingoli in Maharashtra lightening women life | Patrika News

प्रेरणाास्रोत बन महिलाओं का जीवन रोशन कर रहीं दीपाली

locationमुंबईPublished: Mar 23, 2019 09:44:20 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

महिलाओं का जीवन बेहतर बनाने में जुटी हिंगोली की पहली महिला इंजीनियर दीपिका को उम्मीद है कि समाज में खत्म होगा बेटी-बेटे के बीच भेद, महिलाओं के जीवन में रोशनी भरने के लिए चला रहीं जागरुकता अभियान, कहा- बेटी ही मेरे वंश को आगे बढ़ाएगी, बेटों से कम नहीं

प्रेरणाास्रोत बन महिलाओं का जीवन रोशन कर रहीं दीपाली

प्रेरणाास्रोत बन महिलाओं का जीवन रोशन कर रहीं दीपाली

मुंबई. महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में पहली महिला कंप्यूटर इंजीनियर बन हजारों महिलाओं का प्रेरणास्रोत बनीं दीपाली सासने आज आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। आजकल वे समाज में बेटे-बेटी के बीच के भेद को मिटाने की मुहिम चला रही हैं। वे लोगों को समझाने का प्रयास कर रही हैं कि बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं। दीपाली लोगों को बेहिचक बताती हैं कि उनके पास भी एक ही बेटी है और यही बेटी हमारे वंश को भी आगे बढ़ाएगी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद दीपाली चाहतीं तो अच्छी नौकरी पा सकती थीं। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपना करियर संवार सकती थीं। पर, उन्होंने चुना अपनी बहनों के जीवन में रोशनी भरने का कठिन काम। वे जिले की हजारों युवतियों के जीवन को बेहतर दिशा में ले जाने का कार्य कर रही हैं। एक खाते-पीते परिवार में पली-बढ़ीं दीपाली के दिल में लोगों के लिए प्रेम बहता है।
जमा कर रहीं लड़कियों की फीस

उनतीस साल की दीपाली अपने जेब खर्च से लड़कियों की फीस जमा करती हैं। धीरे-धीरे एक समूह की जिम्मेदारी उन पर बढ़ती जा रही है। वे महिलाओं के स्वास्थ्य की चिंता करती हैं। शहरों से बड़े डॉक्टर बुलाकर महिलाओं की जांच करवाती हैं। वे गांव-गांव घूम कर बेटियों की शिक्षा-स्वास्थ्य के लिए जनजागरण करती हैं।
महिलाओं को नौकरी का सहारा

परिवार की टेक्सटाइल कंपनी के जरिए भी वे महिलाओं की मदद कर रही हैं। उन्होंने गांवों की अशिक्षित लड़कियों, महिलाओं को ट्रेनिंग दी और उन्हें नौकरी देकर अपने पैर पर खड़ा किया। पिछले चार साल में वे दो हजार से ज्यादा महिलाओं के जीवन को सरल बना चुकी हैं।
गांव की लड़कियों को दिक्कत

वे बताती हैं, मैं एक छोटे से गांव में पली-बढ़ी एक साधारण लडक़ी हूं। अपने जिले में पहली महिला इंजीनियर हूं। मराठी माध्यम से पढऩेे-लिखने के बाद मुझे इंजीनियरिंग की पढ़ाई में काफी परेशानी हुई। जो लड़कियां गांव से आती थीं, उन्हें हॉस्टल की फीस भरने में परेशानी होती थी। उन पर बहुत-सी बंदिशें होती हैं। सोचा कि मैं इनके लिए कुछ करूं। शादी के बाद मैं अहमदनगर जिले में आ गई। मैंने अपने पति से अपने मन की बात कही। उन्होंने मेरा सपोर्ट किया।
श्रीशक्ति ग्रुप के जरिए मदद

दीपाली ने बताया, कुछ महिलाओं को साथ लेकर श्री शक्ति नाम से एक ग्रुप बनाया। हम 15 लोगों ने बेटी बचाओ के लिए कार्य करना शुरू किया। हमने लोगों को समझाना शुरू किया कि आप अपनी बेटियों को पढ़ाइए, उन पर बंदिसें कम कीजिए। हम कुछ अस्पतालों में भी गए। हमने डॉक्टरों से बेटी के जन्म पर फीस न लेने या कम से कम लेने की मांग की। धीरे-धीरे हमारी बात लोगों ने सुनी। आज बहुत से डॉक्टरों ने बेटियों के जन्म पर फीस कम कर दी है।
आपस में ही जुटाते हैं पैसे

धीरे-धीरे ग्रुप में सदस्यों की संख्या बढ़ती गई। हमारे ग्रुप में 50 सक्रिय सदस्य हैं। कुल 150 महिलाएं इससे जुड़ी हैं। जब भी किसी की मदद करनी होती है, हम लोग आपस में मिल कर पैसे का इंतजाम करते हैं। मैं यह जानती हूं कि अभी मैंने बहुत कम काम किया है। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में शहरों की तरह गांवों में भी बेटी-बेटे का भेद खत्म होगा।
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