एक वाकये ने झकझोर दिया मध्यमवर्गीय परिवार में पली-बढ़ीं संगीता कॉलेज के समय कुछ कैंपों में गईं, जहां उन्होंने लोगों के दुख को करीब से महसूस किया। वे बताती हैं, एक प्रीग्नेंट महिला अस्पताल आईं, जिनके पास पहले से तीन बेटियां थीं। चौथी बार भी उन्हें बेटी हुई, तो उसने बच्ची को साथ ले जाने से इंकार कर दिया। परिवार उस बच्ची को स्वीकारने को तैयार नहीं था। वह मां रोते-बिलखते बच्ची को अनाथ आश्रम छोड़ गई। इस घटना ने मेरे भीतर के इंसान को झकझोर दिया। क्या मां इतनी मजबूर हो सकती है? क्या इतना कठिन है बेटी को पालना? मैंने तय किया कि बेटी बचाने के लिए जो संभव होगा, करूंगी। उन्होंने आसपास के इलाके में बेटी बचाओ आंदोलन शुरू किया।
एचआईवी पॉजिटिव बच्चों की काउंसलिंग डॉ. संगीता एचआईवी पॉजिटिव बच्चों की काउंसलिंग करती हैं। वे बतातीं हैं, जब मैंने यह कार्य शुरू किया तो लोगों ने काफी विरोध किया। शुरू में परिवार का भी साथ नहीं मिला। पर, मैं पीछे नहीं मुड़ी। धीरे-धीरे लोगों की धारणा बदली। मेरे पति शीतल पाटील अब मेरे साथ हैं। यह देख कर मुझे बड़ा अफसोस होता है जब पढ़े-लिखे लोग भी एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के साथ दोहरा बर्ताव करते हैं।
गरीब बच्चों के लिए स्टडी सेंटर गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाने के लिए संगीता ने स्टडी सेंटर बनाए हैं। वे हर किसी की मदद करती हैं। उन्होंने बताया, मैंने देखा कि लोगों का जीवन बहुत कठिन है, जबकि ईश्वर ने हमें बहुत कुछ दिया है। जब मैंने अपनी जेब टटोली तो पाई कि मेरे पास जितना है, उसमें से थोड़ा देकर जरूरतमंदों का जीवन सरल बना सकती हैं। जरूरी नहीं कि सहायता पैसे देकर की ही जाए, मदद का हर रूप सुंदर होता है। मेरा मानना है कि हर किसी के पास कुछ न कुछ ऐसा होता है, जो देकर वह किसी का जीवन बेहतर कर सकता है।