परिजन ही थमाते हैं मोबाइल
रोते हुए छोटे बच्चों को चुप कराने के लिए परिजन अक्सर मोबाइल पकड़ा देते हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार यह ठीक नहीं हैं। मासूमों को गैजेट्स की आदत लग जाती है। आगे उन्हें इससे बाहर निकालना मुश्किल होता है। उनका सुझाव है कि बच्चों के सामने माता-पिता को फोन पर लंबी बातचीत नहीं करनी चाहिए।
बढ़ रहे केस
मनोरोग चिकित्सक डॉ. स्वप्निल एस. देशमुख ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग का बच्चों के दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ रहा है। खेल-कूद से दूर होने के कारण मोटापे की समस्या बढ़ रही है। कुछ बच्चे याददाश्त कमजोर होने तो कुछ आंख से जुड़ी समस्या से परेशान हैं। गेमिंग से दूरी बनाए बिना ऐसे बच्चों की सेहत ठीक नहीं होगी। आदत सुधारने के लिए हम बच्चों की काउंसिलिंग करते हैं।
ख्वाबों में खोए
डॉ. रोशिता खरे ने कहा कि बच्चे गेमिंग कैरेक्टर (चरित्र) को वास्तविक मानते हैं। वास्तविक दुनिया से परे वे ख्वाबों में खाए रहते हैं। दोस्तों, परिवार, नात-रिश्तेदारों से वे कट जाते हैं। इस कारण कई बच्चे चिंता-अवसाद ग्रस्त हैं। उनके लिए यह ज्यादा खतरनाक है। माता-पिता को संयम से काम लेने की जरूरत है।
संभालने की जरूरत
जागृति पुनवर्सन केंद्र के डॉ. अमर शिंदे ने कहा कि बच्चों को गेमिंग की लत से बाहर निकालने की जरूरत है। कुछ बच्चे तो खुदकुशी भी कर चुके हैं। झल्लाने-चिल्लाने के बजाय माता-पिता को संयम से काम लेना चाहिए। समय रहते हम नहीं संभले तो नतीजे गंभीर हो सकते हैं।