दरअसल, चंद्रपुर जिले के वरोरा में रहने वाले किसान मुस्तफा बोहरा की जमीन प्रशासन की तरफ से एमआईडीसी के लिए अधिग्रहित की गई थी। जमीन के बदले किसान मुस्तफा को मुआवजे के तौर पर करीब 9 लाख रुपए मिलने थे, लेकिन सात साल बीत जाने पर भी प्रशासन की तरफ से किसान को मुआवजा नहीं मिला। हर बार किसान को कोई न कोई बहाना बताकर वापस भेज दिया जाता था। इसके बाद इस मामले को लेकर किसान मुस्तफा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और प्रशासन के खिलाफ कोर्ट में केस दाखिल कर दिया। किसान का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने जिलाधिकारी कार्यालय के सामान को जब्त करने का आदेश जारी कर दिया।
बता दें कि जैसे ही किसान को कोर्ट का आदेश मिला तो वह अपने साथ कुछ मजदूर, इलेक्ट्रीशियन और ट्रक लेकर जिलाधिकारी ऑफिस पहुंच गया और जिलाधिकारी को कोर्ट का आदेश दिखाया। किसान ने कहा कि या तो मुआवजे की रकम दो, नहीं तो कोर्ट के आदेश के मुताबिक सब सामान जब्त करने दो।
पुलिस ने मजदूरों को गेट के अंदर नहीं घुसने दिया: अपनी कुर्सी खतरे में देख जिलाधिकारी विनय गौड़ ने किसान को समझाते हुए कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा और कोर्ट के आदेश पर स्टे लाने में जुट गए। इस दौरान पुलिस ने किसान और उसके साथ आए मजदूरों को ऑफिस के गेट के अंदर ही नहीं घुसने दिया। देर शाम तक किसान जिलाधिकारी ऑफिस के बाहर इंतजार करता रहा। शाम होते ही जिलाधिकारी ऑफिस की तरफ से इस आदेश पर 12 दिसंबर तक के लिए स्टे ले लिया गया। इसके बाद किसान को खाली हाथ लौटना पड़ा।
इस मामले में जिलाधिकारी विनय गौड़ ने बताया कि 3 से 4 दिन में राशि कोर्ट में जमा कर दिया जाएगा। कोर्ट के माध्यम से ये राशि किसान तक पहुंच जाएगी। किसान मुस्तफा बोहरा ने कहा कि एमआईडीसी में मेरी जमीन गई थी। साल 2015 में जजमेंट आया था। मैंने कई बार एमआईडीसी को बोला कि जजमेंट आ गया है, हमारी राशि हमें दे दो, लेकिन अभी तक हमें राशि नहीं दी गई। इसके बाद साल 2018-2019 में गुहार लगाई, लेकिन अभी तक मुआवजा नहीं मिला।