scriptनहीं कोई हमदर्द, कौन समझे किसानों का दर्द | Farmers Suicide In Maharashtra: 13 Thousand Died In Last 3 Years | Patrika News

नहीं कोई हमदर्द, कौन समझे किसानों का दर्द

locationमुंबईPublished: Jul 22, 2019 07:37:11 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

Farmers Suicide In Maharashtra: महाराष्ट्र ( Maharashtra ) के यवतमाल जिले के एक किसान ( Farmer ) करपे ने 33 साल पहले और चार बच्चों के साथ आत्महत्या (Suicide) की थी। उसने सुसाइड नोट में कहा था, “किसान के रूप में जीवित रहना असंभव है।” 3 साल में 13 हजार से अधिक किसान मौत को गले लगा चुके हैं।

Farmers Suicides

Farmers Suicides

( मुंबई ): महाराष्ट्र ( Maharashtra ) के सूखाग्रस्त ( drought ) यवतमाल जिले के एक किसान ( Farmer ) करपे ने 19 मार्च 1986 को अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ आत्महत्या ( Suicide ) कर ली थी। उसने अपने पीछे छोड़ा एक सुसाइड नोट में कहा था, “किसान के रूप में जीवित रहना असंभव है।” करपे की मौत के करीब 33 साल बाद भी किसानों के दर्द को कोई नहीं समझ पाया। आज भी किसानों के लिए खेती पर जीवित रहना मुश्किल बना हुआ है। विगत छह महीनों में ही 1300 किसान अपनी इहलीला समाप्त कर चुके हैं।

महाराष्ट्र में पिछले तीन साल के दौरान 13 हजार से अधिक किसान सूखे और कर्जे की मार से परेशान होकर मौत को गले लगा चुके हैं। इनमें अमरावती संभाग में किसानों की मौत के सर्वाधिक मामले दर्ज किए गए हैं। विदर्भ के तौर पर पहचाने जाने वाले इस संभाग में 5 हजार से अधिक अन्नदाताओं ने खुदकुशी की है। इसके बाद मरने वालों में औरंगाबाद संभाग का आकंडा सर्वाधिक है।

मराठवाड़ा के तौर पर पहचाने जाने वाले इस संभाग में 4 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लिखे एक पत्र में महाराष्ट्र सरकार ने बताया कि वर्ष 2011 से 2014 तक 6228 किसानों ने आत्महत्या की। जबकि वर्ष 2015 से 2018 तक 11995 किसानों ने ऐसा कदम उठाया। इस अवधि में किसानों की 91 प्रतिशत मौत अधिक हुई।

हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने जून 2017 में राज्य के लिए एक कृषि ऋण माफी की घोषणा की है। सरकार जलयुक्त शिवहर के माध्यम से महाराष्ट्र को 2019 तक सूखा मुक्त बनाने की दिशा में भी काम कर रही है। इसके बावजूद किसानों की आत्महत्याओं के मामले में कमी नहीं आ रही है। किसानों के जीवन समाप्त करने के निर्णय के लिए साहूकारों से लिया गया ऋण ज्यादा जिम्मेदार है। इस पर नियंत्रण के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं।

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