मुंबई

फाइव स्टॉर होटल की तरह है “गुड न्यूज”

डायरेक्शन — राज मेहताजोनर — कॉमेडीरनटाइम — 134 मिनटस्टारकास्ट — अक्षय कुमार Akshay Kumar, करीना कपूर खान Kareena Kapoor Khan , दिलजीत दोसांझ Diljit Dosanjh और कियारा आडवाणी Kiara Advani रेटिंग — तीन
 
 
 
 
 

मुंबईDec 26, 2019 / 03:39 pm

Arun lal Yadav

फाइव स्टॉर होटल की तरह है

मुंबई. यह सलीके से बनाई गई अच्छी कॉमेडी फिल्म है। यह किसी फाइव स्टार होटल की तरह है, जहां सब कुछ परफेक्ट है। जो आम आदमी को अच्छा तो लगता है पर जरूरी नहीं है कि वह उसके साथ सहज महसूस करे। फस्ट हाफ में कहानी भारतीय अपर मिडिल क्लास की है, जिससे आम आदमी कनेक्ट नहीं कर पाता है। सेकेंटड हाफ में कहानी सभी दर्शकों को पकड़ लेती है और खत्म हो जाती है। कुल मिलाकर अच्छी फिल्म है। पर यह कहना मुश्किल होगा कि लोग इससे कितना रिलेट कर पाते हैं।
कहानी

कहानी दो दंपतियों अक्षय कुमार ( Akshay Kumar ) वरुण बत्रा, उनकी पत्‍नी दीप्ति बत्रा, करीना कपूर खान, ( Kareena Kapoor Khan ) है। करियर के चक्कर में फंसे दोनों बच्चा नहीं करते हैं, शादी के सात साल बाद, जब समय मिलता है, तो लाख कोशिशों के बावजूद बच्चा नहीं होता। इसके बाद बहन के कहने पर वे आईवीएफ से माता-पिता बनने को जाते हैं। यहां पर एंट्री होती है, हनी, दलजीत दोसांझ ( Diljit Dosanjh ) और मोनी, कियारा आडवाणी ( Kiara Advani ) की। यहां एक जैसा नाम होने के चलते उनका स्पर्म बदल जाता है। इस बदली हुई स्थिति में वे समझ नहीं पाते कि क्या करें। कहानी में दो क्लॉस हैं, दोनों ही पैसे वाले हैं, पर एक इलीट है दूसरा आम। दोनों की अपनी झड़प है, और आगे कहानी कई मोड़ लेती है। कुल मिलाकर स्क्रिप्ट को अच्छी तरह से लिखा गया है।
डायलॉग पंच
‘तेरे जैसे च्वाईस की मैं आईस्क्रीम न रखूं’, जैसे कुछ डॉयलाग फिल्म को रोचक बनाते हैं। फिल्म के डायलाग अच्छे हैं, खासकर के दलजीत जितने पल फ्रेम में रहे हैं, उनके अंदाज ने दर्शकों को मजे से भरा है।
एक्टिंग
अक्षय ने वरुण और करीना दीप्ती के किरदार में जान डाल दी है। हनी के रोल में दिलजीत दर्शकों का दिल जीतने में सफल हुए हैं। कियारा ने भी अपनी बेहतर अदाकारी की झलक दर्शकों को दिखाई है। इन चार लोगों को केंद्र में रखकर बनाई गई इस फिल्म में हर किसी ने अपना रोल बखूबी निभाया है। हर फ्रेम में लोग बेहतर लगे हैं। फिल्म के दूसरे भाग में सभी कलाकारों ने दर्शकों के मन को छूने में सफलता पाई है।
डायरेक्शन
कहानी इंट्रेस्टिंग है और डायरेक्टर ने कहानी के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। फर्स्‍ट हाफ एंटरटेनिंग है, यह हर किसी को पसंद आएगी, पर रिलेट कितने कर पाएंगे कहा नहीं जा सकता। ऐसा नहीं है कि इसे बनाने में कहीं चूक हुई है। डायरेक्शन बहुत अच्छा है। पहले हाफ में कहानी आम दर्शकों को पकड़ नहीं पाती, यह एक अलग वर्ग को ही लुभाती है। दूसरे हाफ में डायरेक्टर ने कहानी में से आम और खास को बाहर कर दिया है, जिससे कहानी हर तरह के दर्शकों को पकड़ लेती है। अंत के लगभग 25 मिनट के इमोशनल सीन बहुत अच्छे से प्रजेंट किए हैं। संवाद बढिय़ां हैं और गीत-संगीत औसत है।
सिनेमैटोग्राफी — आकर्षक है। साथ ही लोकेशंस भी परफेक्ट हैं।

क्यों देखें
मूवी में समाज में बच्चे की अहमियत से शुरू होती है। इसमें अजन्में और जन्में बच्चे से माता-पिता का प्रेम, जुड़ाव दिखाया गया है। इसमें साथी कैसे हों, यह बिना कहे भी कहा गया है। अच्छी कहानी, मजेदार संवाद और बेहतर अदाकारी के चलते यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है।
टोटल रिजल्ट — हर किसी को अच्छी लगेगी, जुड़ाव महसूस करना मुश्किल है
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