दानवे 1999 से ही जालना के सांसद उल्लेखनीय है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दानवे 1999 से ही जालना के सांसद हैं। इस बार भी वे अपनी संसदीय सीट से ही लडऩा चाहते हैं। लेकिन राजनीतिक प्रतिद्वंदी खोतकर ने जालना से चुनाव लडऩे की घोषणा कर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को मुश्किल में डाल दिया। शनिवार तक खोतकर चुनाव लडऩे पर अड़े थे। खोतकर मैदान में उतरते तो दानवे की राह आसान नहीं होती। यही वजह है कि जालना के मौजूदा सांसद दानवे की सांस अटकी हुई थी।
खोतकर ने पहले ही दिए थे संकेत खोतकर पहले ही संकेत दे चुके थे कि उद्धव मना करेंगे तभी वे अपना फैसला बदल सकते हैं। कयास लगाए जा रहे थे कि मुख्यमंत्री शिवसेना अध्यक्ष के साथ बैठक कर कोई न कोई रास्ता निकालेंगे। रविवार को औरंगाबाद में मुख्यमंत्री और शिवसेना अध्यक्ष के बीच हुई रायशुमारी के बाद खोतकर ने उम्मीद के मुताबिक अपना फैसला सुनाया। जालना विधानसभा सीट से खोतकर चौथी बार चुनाव जीते हैं।
फरवरी में हो चुकी चुनाव की युति सत्ताधारी भाजपा और शिवसेना के बीच फरवरी में चुनाव के लिए युति हो चुकी है। इसके मुताबिक अप्रैल-मई का लोकसभा और इसके बाद होनेवाला विधानसभा चुनाव दोनों दल मिल कर लड़ेंगे। युति के दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो चुका है। बैठक में दोनों दलों के बीच चुनाव प्रचार अभियान पर भी चर्चा हुई।
युति का सिद्धांत मैं समझ गया हूं। मैं एक पक्का शिवसैनिक हूं, और पीठ पीछे कभी भी वार नहीं करूंगा। मुझे जो भी जिम्मेदारी पार्टी की ओर से मिलेगी, मैं उसे पूरी करूंगा।
– अर्जुन खोतकर
– अर्जुन खोतकर
खोतकर और मेरे बीच कभी कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं हुई है। हम दोनों अलग-अलग दल से हैं, इसलिए कुछ मद्दे पर मतभेद स्वाभाविक हैं। फिलहाल हम साथ हैं और पूरी ताकत से चुनाव लड़ेंगे।
– रावसाहेब दानवे