scriptभगवान महावीर अहिंसा के प्रखर प्रवक्ता थे | Lord Mahavir was the intense spokesman of non-violence | Patrika News

भगवान महावीर अहिंसा के प्रखर प्रवक्ता थे

locationमुंबईPublished: Apr 17, 2019 06:17:55 pm

Submitted by:

Devkumar Singodiya

महावीर को पूजने की नहीं, समझने की जरूरत: सोमलता

महावीर को पूजने की नहीं, समझने की जरूरत

महावीर को पूजने की नहीं, समझने की जरूरत

मुंबई. भारत वर्ष में दो संस्कृतियां समानांतर रूप से प्रवाहमान हो रही हैं। वैदिक संस्कृति और श्रमण संस्कृति। श्रमण संस्कृति कालक्रम से जैन संस्कृति के रूप में प्रख्यात हुई। जिसके जनक के रूप में भगवान महावीर का नाम श्रद्धा और गौरव से लिया जाता है।
महावीर का जीवन अथ से इति तक सत्य की अविच्छिन्न कड़ी से जुड़ा है। उन्होंने सत्य को सबसे अधिक महत्व दिया। उनके लिए जप-तप-साध्य-आराध्य सब कुछ सत्य में समाविष्ट था। महावीर यानी सत्य और सत्य यानी महावीर। उनका एक ही मंतव्य मंत्र था-यदि सत्य को पा लिया तो सब कुछ पा लिया। यदि सत्य को नहीं पाया तो कुछ भी नहीं पाया। उनका घोष था-सच्चं भयवं। सच्चं लोयम्मि सारभूयं। अर्थात सत्य ही भगवान है और यही लोक में सारभूत तत्व है। सत्य के अनुसंधान के लिए उनका माध्यम था-अनेकांतवाद।
उन्होंने कहा-सत्य को सम्प्रदाय, जाति, वर्ग और राष्ट्र की सीमाओं में मत बांधो। क्योंकि सत्य विराट है। विशाल है। उसे व्यापक दृष्टिकोण से देखोगे तो समझ जाओगे। संकीर्ण दृष्टि से देखोगे तो उलझ जाओगे। अधिकांश सभी समस्याओं का सही समाधान अनेकांत दर्शन में निहित है। महान आचार्य समन्तभद्र ने लिखा-महावीर के अनेकांत में सर्वोदय सन्निहित है। इसमें सबका उदय करने की क्षमता है। महावीर द्वारा प्रतिपादित इस पद्धति को विश्व धर्म कहना ज्यादा समीचीन होगा। क्योंकि जहां अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, साक्षर-निरक्षर, बाल-वृद्ध सबके कल्याण के बीज जहां विकसित, पुष्पित-फलित हो सकते हैं, वहीं तो जन जन का धर्म यानी विश्व धर्म है।
भगवान महावीर, आये तुले पयासुं की साकार प्रतिमा थे। उन्होंने अपनी आत्मा और एक सूक्ष्म प्राणि की आत्मा में कोई भेद नहीं देखा। सारे प्राणियों में समान प्राणधारा है। इसे व्यवहारिक धरातल पर जाने में अहिंसा की बात कही। अहिंसा सबके लिए कल्याणकारी है। अपेक्षा है भगवान को समझने की, न केवल पूजने की। भगवान महावीर अहिंसा के प्रखर प्रवक्ता थे, उन्हें हिंसा व परिग्रह की गुत्थियों को अहिंसा से सुलझाना अभीष्ट था। इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े युद्धों से उपजी हिंसा की ज्वालाओं को अहिंसा के शीतल नीर को शमित किया गया था। परिग्रह के पर्वत पर आरूढ शहंशाह भी अपरिग्रह के आसन पर बैठकर ही परमानंद का स्वाद ले सके थे। जरूरत है आज अहिंसा के प्रशिक्षण की। हिंसा हमेशा अहिंसा से ही पराजित हुई है। कल भी, आज भी और कल भी होगी।
भगवान महावीर के 2618वें जन्मोत्सव पर जुलूस, झांकियां, नारे, प्रभवना आदि अनेक आयोजनों के बावजूद यदि महावीर वाणी को आचरण में नहीं ला सके तो सब कूल अलूणा रह जाएगा। समय का तकाजा है कि परस्परोपग्रहों जीवानाम को जुबान से उतारकर जीवन में लाए। सदभावना, सामन्जस्य, सौहाद्र, समन्वय और समरसता का शरबत पीएं और पिलाएं। मानवता के अकाल को सुकाल में बदलने का पुरुषार्थी संकल्प करें। कबीर जी ने बड़े भारी मन से कहा होगा-कबिरा मैं कोसां फिरयो, मिनखां तणो सुकाल। जिनको देख्यां दिल उरै, उनका बड़ा अकाल। अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर की जयंती पर प्रत्येक भाई-बहन यदि एक संकल्प करें कि वह पानी और वाणी का उपयोग संयम से करेगा, तो उस महामानव को प्राणवाण पुष्प अर्पित करने का सौभाग्य हासिल कर सकेंगे। धरती पर अनंत प्राणी आए और गए। पर महावीर जैसे तो महावीर ही थे। कहा है- लाखों आते लाखों जाते, कोई नहीं निशानी है। जिसने कुछ करके दिखलाया उसकी अमर कहानी है।

भगवान महावीर ने जिओ और जीने दो का मूलमंत्र दिया है। अहिंसा के मार्ग पर सभी को चलना चाहिए, बड़े ही पुण्य के बाद मनुष्य जीवन मिलता है। हमें सिर्फ अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी जीना चाहिए। सभी में जीवदया की भावना होनी चाहिए और देश हित सर्वोपरि होना चाहिए। महावीर ने कई महत्वपूर्ण वचन दिए हैं, जिसमें सभी प्राणियों के प्रति सम्मान व अहिंसा का मंत्र है।
नरेंद्र मेहता, विधायक मीरा भायंदर

मीरा भायंदर जैन समाज के सभी भाई बहनों को भगवान महावीर की जयंती पर शुभकामनाएं। महावीर ने सभी को सत्य अहिंसा की राह दिखाई। भगवान महावीर ने जीओ और जीने दो का नारा दिया है। उसका पालन सभी को करना चाहिए। भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं, हम सभी को उनके बताए हुए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
डिंपल मेहता, महापौर मीरा भायंदर मनपा

भगवान महावीर के संदेश है कि दूसरे मनुष्यों की किसी वस्तु को जान बूझकर या धोखे से छिपा कर ले लेना ही चोरी है। यह समझना कि केवल रात में दूसरों के घर जाकर उनके ताले तोडऩे वाला, सेंध लगाने वाला चोर है, ठीक नहीं है। जीवन के हर मोड़ पर उनके संदेश व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण हैं। स्त्री हो या पुरुष दोनों पर यह समान रूप से लागू होता है।
वनीता नवलखा, ठाणे

जीव बलवान है या कर्म, इस जिज्ञासा के समाधान में भगवान महावीर ने कहा कि अप्रमत्तता की साधना से जीव बलवान बना रहता है और प्रमाद से कर्म। इस प्रकार भगवान महावीर ने साधना का सम्पूर्ण हार्द प्रस्तुत कर दिया। साधना से जीवन को जीता जा सकता है। यह साधना निष्कलंक होनी चाहिए। सतत चिंतनशील व्यक्ति सही मार्ग अपना सकता है।
साक्षी जैन, ठाणे

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