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रातोंरात बदली किस्मत: जाल में फंसीं सोने के भाव बिकने वाली मछली

करोड़पति बना पालघर का मछुआरा, 157 घोल फिश 1.33 करोड़ में बिकींमहीने भर बाद मछली पकडऩे गए थे समंदर में

मुंबईSep 01, 2021 / 06:37 pm

Chandra Prakash sain

रातोंरात बदली किस्मत: जाल में फंसीं सोने के भाव बिकने वाली मछली

रातोंरात बदली किस्मत: जाल में फंसीं सोने के भाव बिकने वाली मछली

मुंबई. कहावत है कि भगवान जिसे देता है, छप्पर फाड़ कर देता है। पालघर के मछुआरे चंद्रकांत तरे पर यह सोलहों आने फिट बैठती है। बिना लॉटरी टिकट खरीदे चंद्रकांत रातोंरात करोड़पति बन गए। महीने भर बाद 28 अगस्त को चंद्रकांत अपने आठ साथियों के साथ मछली पकडऩे गए थे। उन्होंने समंदर में जाल फेंका, जिसमें एक-दो नहीं बल्कि 157 घोल मछली फंस गईं। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कीमती मछली मिलने पर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। स्थानीय मंडी में इनकी नीलामी की गई। उत्तर प्रदेश और बिहार के व्यापारियों ने ऊंची कीमत पर इन्हें खरीद लिया। चंद्रकांत को 1.33 करोड़ रुपए मिले। प्रत्येक घोल मछली औसतन 85 हजार में बिकी। पोषक तत्वों से भरपूर घोल मछली का स्वाद लाजवाब होता है। चिकित्सा क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल होता है। दवा और कास्मेटिक्स भी बनाए जाते हैं।

नाम के अनुरूप दाम
सफेद-सुनहरे रंग वाली घोल मछली को गोल्ड फिश या सी गोल्ड भी कहते हैं। नाम के अनुरूप मछलियों में यह सोने के भाव बिकती है। हांगकांग, मलेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया और जापान जैसे कई देशों में इनकी भारी मांग होती है। इनके हर अंग की ऊंची कीमत मिलती है। एक भी हिस्सा बेकार नहीं जाता।

सर्जरी के लिए टांका
घोल मछली से कई पारंपरिक दवाएं बनाई जाती हैं। सर्जरी के बाद लगाए जाने वाले टांके भी इनसे बनाए जाते हैं। विशेषता यह कि घोल फिश का टांका शरीर में गल जाता है। इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। महंगे सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए भी इनकी डिमांड है।

किनारे नहीं आतीं
चंद्रकांत के बेटे सोमनाथ ने बताया कि हम आठ लोग नाव लेकर अरब सागर में वधावन की तरफ 20 से 25 नॉटिकल मील दूर गए थे। वहां पानी साफ है। वहीं हमारे जाल में ये मछलियां फंसीं। सोमनाथ ने बताया कि घोल मछली साफ गहरे पानी में मिलती हैं। प्रदूषण के कारण ये किनारे नहीं आती हैं।

मॉनसून में प्रजनन
मॉनसून के दौरान मछलियां प्रजनन करती हैं। इसीलिए मछुआरे महीने भर समंदर में नहीं जाते। रक्षा बंधन के बाद मछली पकडऩे का काम शुरू होता है। वर्षों पुरानी यह परंपरा मछुआरे आज भी निभा रहे हैं।

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