यह बातें हालही में मौत को मात देकर लौटे कोरोना के पेशंट रहे नीलेश (बदला हुआ नाम) ने पत्रिका संवाददाता रामदिनेश यादव को बताई । नीलेश ने कहा कि चीन और उससे सटे हुए देशों में कोरोना वायरस से लोग मर रहे थे। लेकिन इस महामारी के जाल में मैं भी फंस गया हूँ यह जानकर तो मैं खुद मर गया था। मेरे अलावा मेरे परिवार में किसे हुआ है । चिंताएं बढ़ा रही थी। 16 दिन तक इलाज के दौरान मेरा दिन बंद कमरे में गुजरा, वही दीवारें, वही लोग, वही बेड, मेरी आँखों के सामने थे। लेकिन जिंदगी को वापस पाकर मैं डॉक्टर्स का ऋणी हूँ।
जिन डॉक्टर्स को हम आम समझते हैं वे वास्तव में भगवान होते हैं , जब वे मेरा इलाज कर रहे थे , उनकी निगरानी में मैं था तब मुझे पता चला कि धरती पर ये ही भगवान है। मेरे कपड़े, खाने , रहने, सोने , मेडिसिन, समय समय पर चेकअप आदि को रूटीन की तरह बिना थके बिना रुके ये डॉक्टर्स कर रहे थे। जब मेरी बात होती तो मेरे हौसले को बढ़ाते, ठीक होने की बात करते, नर्सेस आती है। दिन में दो बार पूरे कमरे को सिनेटाइज करती है। हमे भी पूरा सिनेटाइज करते है। हाथ मे ग्लव्स, खाने के बाद हाथ धोने और सिनेटाइज करना जरूरी होता है।
जहां मुझे समझ मे आया कि दवाई तो कोई खास नही होती लेकिन मुझे जिंदगी देने के लिए डॉक्टरों के मोटीवेशन दवाई से ज्यादा काम आएं। उन्होंने मेरे भीतर जीने की उम्मीद को कभी मारने नही दिया, डॉक्टरों ने जो भरोसा दिलाया वही मुझे कोरोना को माड़ देने में कारगर साबित हुआ ।रात दिन जागकर जो ट्रीटमेंट दिया है । और मुझे मौत के मुह से बाहर निकाल कर लाया है ।
हमें दूसरी जिंदगी मिली है लेकिन अपने देश के उन डॉक्टरों को धन्यवाद देकर भी उनका कर्ज नहीं चुका सकता।
मुंबई के मीरा भायंदर रहने वाली सोनाली ने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया। दरअसल पिछले दिनों जापान के शिप में सोनाली दिनेश ठक्कर फंस गई थी। जापान में भी कोरोना का कहर है । उन्हें लाया गया और दिल्ली के आर्मी कैप में रखा गया । 15 दिनों के ट्रीटमेंट के बाद वे घर पहुची है। जापान में उनके साथियों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया ।लेकिन उनका भाग्य अच्छा था कि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई । पत्रिका के साथ उन्होंने खुलकर बात चीत की । कहा कि इसमें किसी प्रकार की दवाई तो नहीं दी जाती है। एतिहात ही इसकी सबसे बड़ी दवाई है। पूरी तरीके से। मुझे भी आर्मी कैम्प में एक कमरे में रखा। 15 दिनों तक पूरी साफ सफाई के साथ मेरे खयाल रखा गया । मेरी दूसरी रिपोर्ट भी नेगेटिव आई। और फिर में मुझे परिवार के साथ रहने की अनुमति दी गई ।
सोनाली मानती है कि कोरोना को लेकर लोगों में अलग नजरिया बन जाता है ।लेकिन उनकी सोसायटी में लोगों ने उनका मनोबल बढ़ाया ही । होम कोरेण्टाइन से आने के बाद मुझसे सोसाइटी में लोगों थोड़ा दूरी बनाकर बात किया। लेकिन बात चीत में कोई भेदभाव नही है । सभी लोगों ने मुझसे बात करते हैं जिस तरीके के भेदभाव की बातें आ रही है। वैसी बिल्कुल नहीं है। बल्कि मैं लोगों से कहती हूँ कि थोड़ा सा डिस्टेंस मेंटेन करें ।
सोनाली और नीलेश ने जनता से अपील किया है कि यह देश के हित की बात है। थोड़ा इसको समझे और खुद पर कंट्रोल रखें। कोरोना से बचने का एक ही इलाज है कि आप घर में रहे। जितने कम लोगों के संपर्क में आएंगे। उतना ही कोरोना को हम हरा पाएंगे।
पुणे के भारतीय विद्यापीठ अस्पताल में कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे डॉ जितेंद्र ओसवाल ने बताया कि यह बीमारी सबसे पहले फेफड़े पर अटैक करती है। फेफड़े में निमोनिया हो जाता है। सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। ऑक्सीजन की कमी को चलते ही पेशेंट को वेंटिलेटर पर रखते हैं । लेकिन इन सब में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि पेशेंट का हौसला , जो कभी पास्ट नही होने देने की हमारी जवाबदारी होती है ।
कोरोना इलाज तो बेसिक ट्रीटमेंट है । सावधानी और साफ सफाई के साथ लोगों से दूरी बनाये रखना ही आपको बीमारी से दूर रखती है। उन्होंने कहा कि डायबिटीज, बीपी, हार्ट प्रॉब्लम और हाइपरटेंशन वाले मरीज का रिस्क बढ़ जाता है। सीनियर सिटीजन के लिए या ज्यादा घातक होता है।
पेशेंट को ऑक्सीजन देने के लिए एक्सपरटाइज की आवश्यकता लगती है। गवर्नमेंट गाइडलाइन की तरफ से दो दवाइयां है। जरूरत पड़ने पर नियमित दी जा सकती है। बाकी उनकी अन्य बीमारियों के लिए उन्हें दवाइयां देना होता है। निर्धारित समय पर जांच करानी पड़ती है रिपोर्ट नेगेटिव होने के बाद भी उसे 14 से 15 दिन के लिए कोरेण्टाइन में रखा जाता है । चूंकि संभावना बनी रहती है। दूसरी रिपोर्ट के बाद ही उसे निकाला जाता है।