मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता (Dipankar Datta) और न्यायमूर्ति अभय आहूजा (Abhay Ahuja) की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की तारीख 12 जनवरी 2023 तय की है।
बता दें कि इसी साल 13 अप्रैल को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन या उसमें भाग लेने वाले व्यक्तियों के खिलाफ दायर अपराधों को वापस लेने की मंजूरी देते हुए जीआर जारी किया था।
याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार का आदेश कानून का उल्लंघन करता है और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा तय मापदंडों के खिलाफ है। याचिका के अनुसार, अभियोजन पक्ष को मुकदमे वापस लेने का निर्णय लेने से पहले अपराध की गंभीरता और समाज पर इसके प्रभाव जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर मामला-दर-मामला आधार पर फैसला लेना चाहिए।
2011 में राज्य सरकार ने महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़, खेल, प्रशिक्षण और प्रदर्शनी पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना जारी की थी। राज्य सरकार ने बाद में स्पष्ट किया था कि बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध केवल गैर-नपुंसक सांडों पर लागू होता है और बधिया किए गए सांडों को बैलगाड़ी दौड़ के लिए उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। हालांकि 2012 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर इसे रद्द कर दिया था।
देश की शीर्ष कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में कहा था कि बैलगाड़ी दौड़ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (पीसीए अधिनियम) के बराबर है। बीते साल दिसंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता को बहाल करने की अनुमति दी थी, जिस पर 2017 से प्रतिबंध लगा था। जिसके बाद पशुपालन विभाग ने एक सरकारी आदेश जारी करते हुए बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी।
कोर्ट ने 16 दिसंबर 2021 को दिए आदेश में कहा था कि पशुओं के प्रति क्रूरता निरोधक अधिनियम, 1960 के संशोधित प्रावधानों और महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के तहत बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता तब तक संचालित होगी, जब तक संविधान पीठ इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय नहीं दे देती। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।