बागी विधायक एकनाथ शिंदे भले ही शिवसेना के ज्यादातर विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं लेकिन शिवसेना पर हक जमाना और चुनाव चिन्ह को हथियाना इतना आसान नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है चुनाव आयोग के नियम और कानून। किसी भी पार्टी को मान्यता देना और उससे जुड़े चुनाव चिन्ह को आवंटित करना ये सब चुनाव आयोग के हाथ में ही है।
चुनाव आयोग के नियम:- किसी भी राजनीतिक पार्टी को मान्यता देना और चुनाव चिन्ह को आवंटित करने का काम इलेक्शन कमिशन साल 1968 के चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) के आदेश के तहत करता है। जब भी किसी दल में विधायिका के बाहर विभाजन का मुद्दा उठता है तो ऐसे में 1968 के सिंबल ऑर्डर के पैरा 15 का अनुच्छेद लागू हो जाता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, जब इलेक्शन कमिशन संतुष्ट हो जाए कि किसी पार्टी में विरोधी गुट या समूह हैं, जो दावा कर रहे हों कि ये पार्टी उनकी है तब इलेक्शन कमिशन मामले से जुड़े सबूतों को ध्यान में रखते हुए सुनवाई करेगा। इसके बाद ही इलेक्शन कमिशन तय करेगा कि कौनसी पार्टी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है। अगर इलेक्शन कमिशन चाहे तो दो पार्टियों के बीच की लड़ाई में किसी को भी मान्यता न दे।
महाराष्ट्र में शिवसेना के मामले में शिंदे गुट 41 विधायकों के समर्थन का दावा पेश कर रहा है। शिवसेना के चुनाव चिह्न को लेने के लिए शिंदे गुट इलेक्शन कमीशन का दरवाजा खटखटा सकता हैं। बता दें कि गुवाहाटी के होटल में मौजूद बागी विधायकों की बैठक जारी है।
बता दें कि शनिवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इस बैठक में उद्धव ठाकरे समेत कई दिग्गज नेता भी शामिल थे। इस दौरान बैठक में कई बड़े प्रस्ताव पारित किए गए। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बागियों पर कठोर निर्णय लेने का प्रस्ताव पास किया है। इसके अलावा बागी विधायकों के परिवार के सदस्यों और करीबियों को शिवसेना के पदों से हटा दिया जाएगा। बागी विधायक एकनाथ शिंदे को पार्टी ने अपने पद से नहीं हटाया है।