धुले ग्रामीण को छोड़ दें तो पांच में से चार सीटों पर बागी या दलबदलू मुख्य उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव से कांग्रेस में मची भगदड़ का असर और शिवसेना-भाजपा के गठबंधन ने भी बागी तैयार किए हैं। भाजपा विधायक अनिल गोटे ने शहर में विकास के काम कराए और जनता में लोकप्रिय भी हैं, लेेकिन युति के तहत यह सीट शिवसेना को मिल गई। तीन बार विधायक रहे गोटे यूं तो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, पर कांग्रेस-एनसीपी ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। उनके समर्थक बताते हैं कि शहर में हाइवे के दोनों ओर कॉलोनियों के लिए पांच किमी की सडक़ इनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि है। फडणवीस सरकार का किया यह काम, व्यक्तिगत रूप से अन्ना और उनके समर्थक भुना रहे हैं। वहीं शिवसेना के हिलाल माड़ी की चुनावी तैयारी धुले ग्रामीण से थी, लेकिन टिकट दावेदारों को देखते हुए टिकट ज्ञानज्योति को दिया। हिलाल अपेक्षाकृत कम लोकप्रियता वाले इलाके में किस्मत आजमा रहे हैं। उनके परंपरागत प्रतिद्वंद्वी राज्यवर्धन कदंब पांडे को अंदरखाने भाजपा का समर्थन है। धुले के इंजीनियर हर्षित चौधरी ने बताया कि नौकरी के लिए पुणे का चक्कर लगाना पड़ता है। भले रेल नेटवर्क केंद्र का मसला हो पर इतने बड़े जिला मुख्यालय को रेल नेटवर्क से नहीं जोड़ पाए।
धूले ग्रामीण से विधायक कुणाल पाटिल के सामने अनुभवी ज्ञान ज्योति को उतारा गया है। कोई बड़ा मुद्दा नहीं मिलने पर भाजपा ने उनके बयान को महिला असम्मान के रूप में प्रचारित कर रही है। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी चुनावी सभा का आधा समय इसी पर फोकस रखा। दोनों प्रत्याशी तीन पीढिय़ों से परंपरागत प्रतिद्वंदी हैं। वैसे जिले में कांग्रेस-एनसीपी सबसे सेफ सीट धुले ग्रामीण ही मान रही है।
किंगमेकर की प्रतिष्ठा पर दांव पर शिरपुर से दो बार कांग्रेस विधायक रहे काशिराम पावरा अपने किंगमेकर और विधान परिषद् सदस्य अंबरीश पटेल के साथ भाजपा में आ गए। ऐसे में पावरा के साथ अंबरीश की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। पिछली बार भाजपा टिकट पर लड़े जितेंद्र ठाकुर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। हार के बाद लगातार पांच साल तक क्षेत्र में सक्रियता के बावजूद पार्टी से टिकट नहीं मिलने से इलाके में उनके लिए सहानूभूति है।
तीन चुनाव, हर बार नई पार्टी महाराष्ट्र में दलबदल अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है। इस चुनाव से पहले कांग्रेस में बड़ी हलचल हुई। शिरपुर से कांग्रेस टिकट पर लड़ रहे रंजीत पावरा तीन विधानसभा चुनाव अलग-अलग टिकट पर लड़े हैं। 2014 में शिवसेना और 2009 में भाजपा के टिकट पर लड़े। यही हाल धुले शहर से लड़ रहे पूर्व पत्रकार अनिल अन्ना गोटे का है। उन्होंने पहला चुनाव 1999 में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार के रूप में लड़ा। तेलगी स्टाम्प पेपर घोटाले के बाद 4 साल तक जेल में रहे। आरोप साबित नहीं हुए। 2009 में अपनी पार्टी लोकसंग्राम के प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। 2014 में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते।
मंत्री के घर में किसानों की समस्या गंभीर जिले की सबसे वीआइपी सीट शिंदखेड़ा गुजरात सीमा से लगी है। पर्यटन मंत्री जयकुमार रावल यहां से भाजपा प्रत्याशी हैं। इस इलाके में सिंचाई सबसे बड़ा मुद्दा है। शिवसेना से गठबंधन के बाद की परिस्थितियों का खमियाजा उठाना पड़ रहा है। शिवसेना के बागी शानाभऊ कोली उनको चुनौती दे रहे हैं।
किसानों के मुद्दे सभाओं और संकल्प पत्रों तक सीमित एससी सीट साक्री में पांजरा की शक्कर मिल और दूसरी एससी सीट शिरपुर में दइवद की शुगर मिल को चालू कराना बड़ा मुद्दा है। आने वाली राज्य सरकार बीमार और कर्ज में डूबी चीनी मिलों को चालू करा पाएं, इसमें स्थानीय मतदाताओं को शंका है। मध्यप्रदेश सीमा से सटे पलसनेर गांव के नीलेश दुबे ने बताया कि किसानों की समस्या गंभीर है, पर धरातल पर जातीय मुद्दों को ज्यादा तवज्जो मिली हुई है।