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Maha Election : नवी मुंबई में राजनीतिक समीकरण क्या बदला, प्रत्याशियों के होश उड़े, लेकिन कैसे

locationमुंबईPublished: Oct 18, 2019 12:30:04 am

Submitted by:

Binod Pandey

मराठा बनाम ग्रामीणों के बीच हुई जंग का उठा मुद्दा, यहां की दोनों विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशियों के सामने भले ही कोई कद्दावर उम्मीदवार नहीं है, लेकिन इन दोनों प्रत्याशियों की नींद जरूर गायब हो गई है। मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे पासा पलटता हुआ दिखाई दे रहा है। एक तरफ जहां बेलापुर विधानसभा क्षेत्र से मंदा म्हात्रे को मतदाताओं की नाराजगी की आहट अब सुनाई देने लगी है, तो शिवसेना कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी उन्हें परेशान कर रहा है।

Maha Election : नवी मुंबई में राजनीतिक समीकरण क्या बदला, प्रत्याशियों के होश उड़े, लेकिन कैसे

Maha Election : नवी मुंबई में राजनीतिक समीकरण क्या बदला, प्रत्याशियों के होश उड़े, लेकिन कैसे

रमाकांत पांडेय
नवी मुंबई. यहां की दोनों विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशियों के सामने भले ही कोई कद्दावर उम्मीदवार नहीं है, लेकिन इन दोनों प्रत्याशियों की नींद जरूर गायब हो गई है। मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे पासा पलटता हुआ दिखाई दे रहा है। एक तरफ जहां बेलापुर विधानसभा क्षेत्र से मंदा म्हात्रे को मतदाताओं की नाराजगी की आहट अब सुनाई देने लगी है, तो शिवसेना कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी उन्हें परेशान कर रहा है। हिंदी भाषियों का रुख भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। चुनाव का समय नजदीक आते देख एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के चाहने वालों के खुलकर सामने आने से भाजपा प्रत्याशी की बेचैनी बढऩे लगी है। उनकी लड़ाई एनसीपी प्रत्याशी अशोक गावड़े के साथ है। जबकि एरोली क्षेत्र से गणेश नाईक के सामने भी कोई कद्दावर प्रत्याशी नही है, लेकिन अब यह लड़ाई मराठा और ग्रामीणों के बीच उलझ गई है, मराठा समाज के लोगों का रुख एनसीपी उम्मीदवार गणेश शिंदे के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। पिछले साल मराठा आंदोलन के दौरान ग्रामीणों और मराठा आंदोलनकारियों के बीच जो धमाल हुई थी उसका असर इस चुनाव में देखने को मिलेगा।

अभी तक एरोली विधानसभा सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार एनसीपी की राह उतनी आसान नहीं है। इसी बीच चुनावी रणक्षेत्र में ग्रामीणों व मराठा का मुद्दा उठाकर चुनावी गणित बिगाडऩे का माहौल तैयार कर दिया गया है। महायुति के प्रत्याशी गणेश नाईक के खिलाफ कोई कद्दावर उम्मीदवार तो नही है, एनसीपी ने गणेश शिंदे को चुनाव मैदान में उतार तो दिया है, परंतु अब मतदाताओं के रुख पर सबकुछ निर्भर है। शिवसैनिक दो धड़े में बंटे हुए हैं, एक गुट गणेश नाईक के समर्थन में है तो दूसरा ग्रुप उनके विरोध में खड़ा है। ऐसे में शरद पवार के प्रति सहानुभूति दिखाने वालों की भी तादात बढ़ रही है, और ऐन मौके पर मराठा बनाम ग्रामीण का मुद्दा उठाकर चुनावी समीकरण ही बदलने की कवायद तेज हो गई है।

कई मुद्दों पर हो रहा चुनाव
इस चुनाव में आर्थिक मुद्दे के साथ बिजली विभाग की आंख मिचौली का खेल, बिजली विभाग का उपभोक्ताओं को मनमाना बिल भेजने और पीएमसी बैंक खाताधारकों की नाराजगी भी सत्तारुढ दल के लिए चुनौती बनी है। धीरे-धीरे अब हवा का रुख बदल रहा है। इस रणक्षेत्र में कौन किसके साथ है, कौन किसकी खेल बिगाडऩे की भूमिका निभा रहा है, मतदाताओं की मंशा क्या है, किसके सिर पर जीत का सेहरा बंधेगा, यह सब अभी भविष्य तय करेगा।

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