साथ ही उनका यह भी मानना है कि कोई भी अग्रिम घटना घटने से पहले ही उन्हें आभास हो जाता था, ऐसा कई बार संकेत मिला, जिसके बाद से गांव के रहवासियों ने पूजा पाठ शुरू कर दिया। इस बीच 1960 के आसपास वाशी खाड़ी पुल का निर्माण करने आई गैमन इंडिया नामक कंपनी ने मंदिर का निर्माण किया था।
धीरे-धीरे मंदिर में लोगों की भीड़ बढऩे लगी, इसी बीच 1967 के आसपास जागृतेश्वर मंदिर ट्रस्ट का गठन किया गया। प्रथम टीम गठन के दौरान आत्माराम अंबाजी पाटिल, मारुति पाटिल (पुलिस पाटिल) मोहन नाशिकेत भोईर, वासुदेव भोईर, शांताराम पाटिल, कृष्णा बुआ पाटिल सहित अन्य लोग टीम में शामिल होकर मंदिर की देखरेख शुरू की गई। अध्यक्ष शांताराम पाटिल व तुलसीराम पाटिल की अगुवाई में अन्य लोग मंदिर के कामकाज को संभाल रहे हैं। इस मंदिर परिसर में शिव मंदिर के साथ शीतला माता (गांवदेवी) व शिवकालीन हनुमान मंदिर को भव्य तरीके से तैयार किया गया है। इस मंदिर का जब निर्माण हुआ था उस समय वाशी गांव के अलावा चारों तरफ समुद्र था, इसलिए इस मंदिर में वाशी गांव के अलावा तुर्भे, नेरुल व बेलापुर गांव के लोग आते थे।
118 साल पुराना है बालराजेश्वर महादेव मंदिर
मुंबई. हमारा देश, हमारी संस्कृति ईश्वरीय शक्तियों और उनके बताए गए सत्मार्ग में आस्था विश्वास रखने वाला है,। अवघड़दानी बाबा भोलेनाथ के भक्तों की संख्या बहुतायत है। मुलुंड उपनगर में स्थित शंकर के स्वरूप बालराजेश्वर भगवान की महिमा सबसे अलग है।
मुंबई शहर के अंतिम छोर पर रिहायशी क्षेत्र मुलुंड पश्चिम में स्थित भगवान शिवशंकर के मंदिर के गर्भ में विरजमान प्रतिमा शिव बाबा जिन्हें यहां बालराजेश्वर जी के नाम से पुकारा जाता है। यह मंदिर वर्षों से भगवान भोले के भक्तों के आस्था का केंद्र बना हुआ है। मुंबई शहर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित संजय गांधी उद्यान की तलहटी में बसा मुलुंड उपनगर में बालराजेश्वर मन्दिर 118 वर्ष पुराना मन्दिर है। कहा जाता है कि देश के प्रसिद्ध उद्योगपति खटाउ घराने के पूर्वज तुलसी राम खटाउ ने इस मंदिर की स्थापना सन 1901 में की थी। किवदंती है कि तुलसी बाल्यावस्था से ही भगवान शंकर के परम भक्त थे। बाल काल में ही उन्हें स्वप्न में भगवान शंकर ने मंदिर बनवाने को कहा था। जिसे वे साकार करते हुए मन्दिर की स्थापना की और मन्दिर का नाम बालराजेश्वर भगवान पड़ गया। हर वर्ष बाबा बर्फानी अमरनाथ जी की झांकी के बालराजेश्वर मन्दिर में बनाई जाती है। लेकिन इस बार पूरे महानगर में सबसे बड़ा बाबा का बर्फ से बनाया गया है।
श्रीकोपनेश्वर मंदिर के महादेव हैं शहर के पुराण पुरुष, ग्राम देवता की मान्यता
ठाणे. ठाणे का श्रीकोपनेश्वर मंदिर लगभग 250 साल पुराना है। इस मंदिर के महादेव को शहर के पुराण पुरुष या ग्रामदेवता के रूप में जाना जाता है। इ. स. 1760 में सर सुभेदार रामजी महादेव बिवलकर ने इस मंदिर का निर्माण किया था। मंदिर मासुंदा झील के पूर्व के किनारे स्थित है। मासुंदा झील को ठाणे का गौरव माना जाता है।
अब इस झील का छोटा रूप ही दिखाई देता है। लेकिन मुंबई गैजेट में मिली जानकारी के अनुसार कभी ये झील करीब 34 एकड़ में फैली हुई थी। उसके आसपास का क्षेत्र लगभग 220 फीट लंबा और साठ फीट चौड़ा था। यह पूरी जमीन कोपनेश्वर मंदिर के देवस्थान के नाम से जानी जाती थी। मुख्य मंदिर के पीछे एक पीपल का पेड़ था। वहां पर मारुति की एक पत्थर की मूर्ति थी। समय के साथ पीपल का पेड़ लुप्त हो गया।
मारुति की मूर्ति को प्रांगण के उत्तरी कोने में स्थापित किया गया है। मंदिर के पीछे उत्तरेश्वरा का एक छोटा सा मंदिर था।
भगवान राम निर्मित है बालुकेश्वर शिवलिंग
मुंबई. मलबार क्षेत्र में अरब सागर से कुछ ही दूरी पर स्थित श्री बालुकेश्वर मंदिर शिवभक्तों के लिए श्रद्धा का स्थान रखता है। बाण गंगा तालाब के किनारे निर्मित यह मंदिर रामायण कालीन है। कवले मठ, काशी मठ व परशुराम मंदिर का इस क्षेत्र में विशेष धार्मिक महत्व है।
श्री बालुकेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग भगवान राम निर्मित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम, सीता व लक्ष्मण वनवास यात्रा के दौरान जब यहां आए तो भगवान राम ने शिव पूजा के लिए यहां पर बालू (रेत) से एक शिवलिंग का निर्माण किया और उसकी आराधना किए। बालू से बना शिवलिंग बाद में पत्थर का रूप ले लिया।
इस शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए जमीन में बाण मारकर भगवान राम ने मीठे जल का अवतरण किया जो तालाब का आकार ले लिया जिसे बाण गंगा कहा जाता है। श्री बालुकेश्वर मंदिर का स्वामित्व गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों की सबसे पुरानी संस्था गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट मुंबई के पास है।
गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी शशांक गुलगुले ने बताया की राम कालीन इस मंदिर में मुंबई ही नहीं बल्कि पर्यटक भी दर्शन करने आते हैं। विशाल आयताकार बाणगंगा तालाब का मालिकाना अधिकार गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट के पास है, मगर इस तालाब को हेरिटेज का दर्जा दे देने के बाद अब इसकी देख-रेख भारतीय पुरातत्व विभाग व मनपा करती है।