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महाशिवरात्रि: शिव मंदिरों में उमड़ें भक्त, दिन भर चला शिव मंदिरों में जलाभिषेक व धार्मिक आयोजन

locationमुंबईPublished: Mar 04, 2019 10:05:34 pm

Submitted by:

Devkumar Singodiya

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्…

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Mahashivratri: Devotees in Shiva temples

मुंबई. त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥ तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं। देवाधिदेव महादेव की महारात्रि के उपलक्ष में सोमवार को शिव मंदिरों में विशेष पूजन अर्चन का दौर चलेगा। श्मशानविहारी, सर्पों की मालाधारी शिव को मनाना यंू ही संभव नहीं होगा।
जगत के कल्याण के लिए हलाहल को धारण करने वाले नीलकंड को मनाने के लिए श्रद्धालु शिव प्रिय वस्तु भांग, धतूरे, विल्व पत्र, फूल-फल अर्पित करेंगे। विशेष पूजन में रुद्राभिषेक व शिव प्रिय मंत्र ऊं नम: शिवाय के जाप किया जाएगा। मुंबई और आसपास के तमाम शिव मंदिरों में सुबह से देर रात भक्ति का दौर चलता रहेगा।

पौराणिक जागृतेश्वर शिवमंदिर की महिमा अपार

नवी मुंबई. पौराणिक मंदिरों में वाशी का जागृतेश्वर मंदिर का नाम शामिल है। लगभग दो सौ वर्ष पुराना यह विशाल शिव मंदिर करीब ढाई एकड़ जमीन पर फैला हुआ है। यहां की मान्यता है कि जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर भोले की दरबार में आया वो खाली हांथ लौटकर नहीं गया, इसलिए इस शिव मंदिर की महिमा सबसे अलग है। यहां पर शिवरात्रि, गोकुल अष्टमी, राम जन्म, हनुमान जयंती एवं गांवदेवी यात्रा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

वाशी सेक्टर-7 में समुद्र के तट पर एक पांच फीट का शिवलिंग के आकार में ग्रामीणों को पत्थर नजर आया, ग्राम वासियों ने यह देखना चाहा कि यह शिवलिंग ही है या फिर सामान्य पत्थर इस कौतुहल को लेकर वर्ष 1959 में खुदाई शुरू कर दी, जैसे-जैसे खुदाई करते गए वैसे-वैसे शिवलिंग के आकार का वह पत्थर नीचे जा रहा था।
स्थानीय रहवासी व सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा पंडित ने बताया कि खुदाई के दौरान यह नजारा देख लोग स्तब्ध रह गए, तब एक वृद्ध व्यक्ति ने खुदाई पर यह कहते हुए रोक लगा दिया कि अगर और खुदाई की गई तो यह बचा हुआ आकार भी गायब हो सकता है। एक फीट शेष रह गया था, ग्रामीणों को जब एहसास हो गया कि यह शिवलिंग ही है तब जाकर उक्त शिवलिंग के अगल-बगल छोटी दिवार खड़ी कर दी गई। ग्रामीणों का यह कहना है कि उस समय चारों तरफ जलजला ही था, लेकिन समुद्र का पानी कभी शिवलिंग तक नहीं पहुंच पाता था।


साथ ही उनका यह भी मानना है कि कोई भी अग्रिम घटना घटने से पहले ही उन्हें आभास हो जाता था, ऐसा कई बार संकेत मिला, जिसके बाद से गांव के रहवासियों ने पूजा पाठ शुरू कर दिया। इस बीच 1960 के आसपास वाशी खाड़ी पुल का निर्माण करने आई गैमन इंडिया नामक कंपनी ने मंदिर का निर्माण किया था।
धीरे-धीरे मंदिर में लोगों की भीड़ बढऩे लगी, इसी बीच 1967 के आसपास जागृतेश्वर मंदिर ट्रस्ट का गठन किया गया। प्रथम टीम गठन के दौरान आत्माराम अंबाजी पाटिल, मारुति पाटिल (पुलिस पाटिल) मोहन नाशिकेत भोईर, वासुदेव भोईर, शांताराम पाटिल, कृष्णा बुआ पाटिल सहित अन्य लोग टीम में शामिल होकर मंदिर की देखरेख शुरू की गई। अध्यक्ष शांताराम पाटिल व तुलसीराम पाटिल की अगुवाई में अन्य लोग मंदिर के कामकाज को संभाल रहे हैं। इस मंदिर परिसर में शिव मंदिर के साथ शीतला माता (गांवदेवी) व शिवकालीन हनुमान मंदिर को भव्य तरीके से तैयार किया गया है। इस मंदिर का जब निर्माण हुआ था उस समय वाशी गांव के अलावा चारों तरफ समुद्र था, इसलिए इस मंदिर में वाशी गांव के अलावा तुर्भे, नेरुल व बेलापुर गांव के लोग आते थे।

118 साल पुराना है बालराजेश्वर महादेव मंदिर

मुंबई. हमारा देश, हमारी संस्कृति ईश्वरीय शक्तियों और उनके बताए गए सत्मार्ग में आस्था विश्वास रखने वाला है,। अवघड़दानी बाबा भोलेनाथ के भक्तों की संख्या बहुतायत है। मुलुंड उपनगर में स्थित शंकर के स्वरूप बालराजेश्वर भगवान की महिमा सबसे अलग है।


मुंबई शहर के अंतिम छोर पर रिहायशी क्षेत्र मुलुंड पश्चिम में स्थित भगवान शिवशंकर के मंदिर के गर्भ में विरजमान प्रतिमा शिव बाबा जिन्हें यहां बालराजेश्वर जी के नाम से पुकारा जाता है। यह मंदिर वर्षों से भगवान भोले के भक्तों के आस्था का केंद्र बना हुआ है। मुंबई शहर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित संजय गांधी उद्यान की तलहटी में बसा मुलुंड उपनगर में बालराजेश्वर मन्दिर 118 वर्ष पुराना मन्दिर है। कहा जाता है कि देश के प्रसिद्ध उद्योगपति खटाउ घराने के पूर्वज तुलसी राम खटाउ ने इस मंदिर की स्थापना सन 1901 में की थी। किवदंती है कि तुलसी बाल्यावस्था से ही भगवान शंकर के परम भक्त थे। बाल काल में ही उन्हें स्वप्न में भगवान शंकर ने मंदिर बनवाने को कहा था। जिसे वे साकार करते हुए मन्दिर की स्थापना की और मन्दिर का नाम बालराजेश्वर भगवान पड़ गया। हर वर्ष बाबा बर्फानी अमरनाथ जी की झांकी के बालराजेश्वर मन्दिर में बनाई जाती है। लेकिन इस बार पूरे महानगर में सबसे बड़ा बाबा का बर्फ से बनाया गया है।

श्रीकोपनेश्वर मंदिर के महादेव हैं शहर के पुराण पुरुष, ग्राम देवता की मान्यता


ठाणे. ठाणे का श्रीकोपनेश्वर मंदिर लगभग 250 साल पुराना है। इस मंदिर के महादेव को शहर के पुराण पुरुष या ग्रामदेवता के रूप में जाना जाता है। इ. स. 1760 में सर सुभेदार रामजी महादेव बिवलकर ने इस मंदिर का निर्माण किया था। मंदिर मासुंदा झील के पूर्व के किनारे स्थित है। मासुंदा झील को ठाणे का गौरव माना जाता है।

अब इस झील का छोटा रूप ही दिखाई देता है। लेकिन मुंबई गैजेट में मिली जानकारी के अनुसार कभी ये झील करीब 34 एकड़ में फैली हुई थी। उसके आसपास का क्षेत्र लगभग 220 फीट लंबा और साठ फीट चौड़ा था। यह पूरी जमीन कोपनेश्वर मंदिर के देवस्थान के नाम से जानी जाती थी। मुख्य मंदिर के पीछे एक पीपल का पेड़ था। वहां पर मारुति की एक पत्थर की मूर्ति थी। समय के साथ पीपल का पेड़ लुप्त हो गया।
मारुति की मूर्ति को प्रांगण के उत्तरी कोने में स्थापित किया गया है। मंदिर के पीछे उत्तरेश्वरा का एक छोटा सा मंदिर था।

भगवान राम निर्मित है बालुकेश्वर शिवलिंग

मुंबई. मलबार क्षेत्र में अरब सागर से कुछ ही दूरी पर स्थित श्री बालुकेश्वर मंदिर शिवभक्तों के लिए श्रद्धा का स्थान रखता है। बाण गंगा तालाब के किनारे निर्मित यह मंदिर रामायण कालीन है। कवले मठ, काशी मठ व परशुराम मंदिर का इस क्षेत्र में विशेष धार्मिक महत्व है।
श्री बालुकेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग भगवान राम निर्मित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम, सीता व लक्ष्मण वनवास यात्रा के दौरान जब यहां आए तो भगवान राम ने शिव पूजा के लिए यहां पर बालू (रेत) से एक शिवलिंग का निर्माण किया और उसकी आराधना किए। बालू से बना शिवलिंग बाद में पत्थर का रूप ले लिया।
इस शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए जमीन में बाण मारकर भगवान राम ने मीठे जल का अवतरण किया जो तालाब का आकार ले लिया जिसे बाण गंगा कहा जाता है। श्री बालुकेश्वर मंदिर का स्वामित्व गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों की सबसे पुरानी संस्था गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट मुंबई के पास है।

गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी शशांक गुलगुले ने बताया की राम कालीन इस मंदिर में मुंबई ही नहीं बल्कि पर्यटक भी दर्शन करने आते हैं। विशाल आयताकार बाणगंगा तालाब का मालिकाना अधिकार गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट के पास है, मगर इस तालाब को हेरिटेज का दर्जा दे देने के बाद अब इसकी देख-रेख भारतीय पुरातत्व विभाग व मनपा करती है।

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