कोवैक्सीन का टेस्ट दो चरणों में होगा। पहले चरण में 375 लोगों को टीका लगाया जाएगा। दूसरे चरण में 750 लोगों को वैक्सीन दी जाएगी। दोनों ही चरणों में वालिंटियर्स के दो ग्रुप बनाए जाएंगे। एक ग्रुप को असली टीका लगाया जाएगा, जबकि दूसरे ग्रुप को प्लेस्बो (डुप्लीकेट) वैक्सीन दी जाएगी। दोनों समूहों में शामिल वालिंटियर्स के स्वास्थ्य की निगरानी की जाएगी। अंत में आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलेगा कि टीका लगाने के बाद वालिंटियर्स के शरीर में कोविड-19 रोधी एंटीबॉडी बनी या नहीं।
डॉ. इला ने कहा कि हम कोवैक्सीन को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं कर रहे हैं। जानवरों पर कोवैक्सीन का परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा है। नतीजे देखने के बाद ही इस वैक्सीन के इंसानी परीक्षण के लिए आवेदन किया गया। अब तक वैक्सीन के जो भी परीक्षण किए गए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइंस के मुताबिक हैं। वैक्सीन कब तक उपलब्ध होगी? डॉ. इला ने कहा कि इस बारे में हम कुछ नहीं कह सकते। सरकार बेहतर जवाब दे सकती है।
डॉ. इला ने कहा कि वैक्सीन बनाने की भारतीय क्षमता पर किसी को शक नहीं करना चाहिए। आशंकाएं निर्मूल साबित होंगी। हम कोई क”ाी गोलियां नहीं खेल रहे। इस दौड़ में भारत किसी से पीछे नहीं है। दूसरे देशों को हम कमतर नहीं आंक रहे। विदेशी संस्थाओं ने वैक्सीन बनाने के लिए भारतीय कंपनियों से हाथ मिलाया है।
कोवैक्सीन तैयार करने में डॉ. इला ने आईसीएमआर की संस्था एनआईवी (पुणे) की सराहना की। बताया कि माइक्रोग्राम और इलेक्ट्रोग्राम इत्यादि का परीक्षण एनआईवी के वैज्ञानिकों ने किया है। एनआईवी ने ही कोविड-19 वायरस का स्ट्रेन आइसोलेट किया था। इसी पर रिसर्च के जरिए भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन तैयार की है।