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Mumbai News : स्मृति शेष : अन्याय के खिलाफ लड़ना था, बन गई मर्दानी !

locationमुंबईPublished: Aug 27, 2019 09:32:43 pm

Submitted by:

Binod Pandey

आइपीएस कंचन चौधरी की जीवनी पर बना था उड़ान सीरियल
कंचन ने महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने का किया काम

 

Mumbai News : स्मृति शेष : अन्याय के खिलाफ लड़ना था, बन गई मर्दानी !

Mumbai News : स्मृति शेष : अन्याय के खिलाफ लड़ना था, बन गई मर्दानी !

रामदिनेश यादव

मुंबई. देश की हर महिला सशक्त और आत्मनिर्भर बने, इसके लिए पहले खुद ही मजबूत बनना होगा। इसी सोच को आत्मसात कर साधारण से परिवार में जन्म लेने वाली आइपीएस कंचन चौधरी भट्टाचार्य लेडी सिंघम बन गईं। आयरन लेडी किरण बेदी के बाद देश की दूसरी महिला आइपीएस अधिकारी बनी कंचन चौधरी का मंगलवार को 72 वर्ष की उम्र में यहां मुंबई में निधन हो गया। कर्तव्य को सर्वोपरि रखने और समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की सोच को दिलोदिमाग में रखकर उन्होंने महिला सशक्तिकरण के कई कारगर कदम उठाए। कई महिलाओं के सपनों को पूरा करने में संबल दिया। यही कारण रहा कि देश की पहली महिला डीजीपी और 1973 बैच की महिला आइपीएस अफसर कंचन चौधरी के जीवन संघर्ष पर उन्‍हीं की बहन कविता चौधरी ने 80 के दशक में दूरदर्शन पर ‘उड़ान’ नाम का एक सीरियल भी प्रस्तु किया । सीरियल ने उस समय काफी सुर्खियां बटोरीं। धारवाहिक के सभी एपिसोड्स में कविता ने कंचन के बड़े फैसलों और कार्यों को आमजन तक पहुंचाने का काम किया । उस दशक की महिलाओं के लिए यह धारावाहिक मार्गदर्शक और मील का पत्थर भी साबित हुआ।
हमेशा याद रहा उड़ान

दूरदर्शन पर धारावाहिक उड़ान 1989 से 1991 के बीच आया। धारावाहिक महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित था। कंचन का किरदार उनकी छोटी बहन कविता चौधरी ने निभाया था और वही सीरियल की निर्देशक और लेखक भी थीं। इसमें मशहूर अभिनेता और निर्देशक शेखर कपूर ने अहम भूमिका निभाई थी । इसमें दिखाया था कि कल्याणी सिंह हर स्तर पर लैंगिक भेदभाव से जूझते हुए आइपीएस अधिकारी बन जाती है। यह धारावाहिक ऐसे समय में आया जब महिलाओं को वर्दी में देखना असामान्य था । इसके बाद कई महिलाओं को सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरणा मिलीं ।
उत्तर प्रदेश में जन्मी, मुंबई में ली अंतिम सांस

वर्ष 1947 में उत्तर प्रदेश के देहरादून स्थित कृषाली गांव में जन्मी कंचन चौधरी ने भायखला स्थित सात रास्ता में अपने निवास पर अंतिम सांस ली। देश की आधी आबादी को सशक्त बनाने और महिलाओं की प्रेरणा के रूप में कंचन चौधरी भट्टाचार्य को याद किया जाएगा। स्कूली दिनों में लोगों को न्याय दिलाना और अन्याय के खिलाफ लड़ना उनके स्वाभाव में आ गया था। शारीरिक रूप से मजबूत, लम्बी चौड़ी होने के नाते लोग उन्हें पुलिस विभाग में जाने के लिए उत्साहित करते थे । उनकी इच्छा शिक्षा के क्षेत्र में जाने की थी। हालांकि उन्होंने आइपीएस परीक्षा दी और अच्छे अंक मिले। यही से ठान लिया कि मौका मिला है तो महिलाओं के लिए कुछ क्यों न किया जाए! सीबीआइ, आर्थिक अपराध विभाग, सीआइएसएफ में विभिन्न पदों पर रहीं लेकिन 2004 में उत्तराखंड की डीजीपी के रूप में उनकी नियुक्ति
हुई। कई वरिष्ठ अधिकारियों को पीछे छोड़ नयी उड़ान भर रही कंचन ने महिलाओं को आगे लाने की कोशिश की । आम महिला की तरह कंचन भी कोमल और मर्मस्पर्शी रहीं । परिवार, बच्चों और सम्बन्धियों के साथ उनके सम्बन्ध हमेशा कायम रहे। बच्चों ने कभी मां की कमी नहीं महसूस की। यह उनकी बेटी कनिका चौधरी ने पत्रिका को बताया। वर्ली स्थित शमशान बुधवार को उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी ।
इन कामों के लिए किए जाएगा याद

महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध को रोकने के लिए उन्होंने उस समय महिला हेल्पलाइन की शुरुआत की । महिलाओं के तमाम विषयों के लिए महिला अधिकारियों को ही नियुक्त किया। पुरुषों की तुलना में महिला कम नहीं, कमजोर नहीं, यह साबित करने के लिए उन्होंने पहली बार उत्तराखंड की तपती धूप में ट्रैफिक संभालने के
लिए महिला पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया। उनके काम को देखकर उत्तराखंड सरकार ने होनहार बेटी की उपाधि से सम्मानित भी किया ।
चुनौती पूर्ण रहा कंचन का जीवन

कंचन चौधरी ने अमृतसर के राजकीय महिला महाविद्यालय से पढ़ाई पूरी की। वहीं, पोस्ट-स्नातक स्तर की पढ़ाई अंग्रेजी साहित्य में दिल्ली-यूनिवर्सिटी से की। उन्हें मेक्सिको में 2004 में आयोजित इंटरपोल की बैठक में भारत की और से प्रतिनिधित्व करने के लिए चयनित किया गया था। 1997 में प्रतिष्ठित सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति पदक भी मिल चुका है।

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