बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीएमसी से सीधा सवाल पूछा है। वकील नीलेश ओझा के के माध्यम से फिरोज मीठीबोरवाला द्वारा दायर एक याचिका में दावा किया गया है कि सरकार और बीएमसी का लोगों द्वारा अपने घरों से बाहर और सार्वजनिक स्थानों पर मास्क लगाने पर जोर देना सही नहीं था।
Bombay High Court
सोमवार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीएमसी से सीधा सवाल पूछा कि उसने किस कानून के तहत मास्क पहनने को अनिवार्य बनाया और कोरोना महामारी के दौरान इसका उल्लंघन करने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया? चीफ मजिस्ट्रेट दीपांकर दत्ता और जस्टिस माधव जामदार की पीठ दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अधिकारियों द्वारा मास्क संबंधी नियम का उल्लंघन करने वाले लोगों से पैसे वसूले गए जुर्माने की वापसी की मांग की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के खिलाफ कोरोना वैक्सीन खरीदने में सार्वजनिक धन के कथित अनुचित उपयोग और लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए मजबूर करने के संबंध में जांच कराए जाने की अपील की है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीएमसी से पूछा कि किस कानून के तहत मास्क लगाना अनिवार्य किया और जुर्माना वसूला गया। पीठ ने बीएमसी के वकील अनिल सखारे को कोरोना महामारी अधिनियम की धारा 2 के संबंध में अगली सुनवाई पर कोर्ट को बताने का भी आदेश दिया। इस कानून के तहत सरकार के पास कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए स्पेशल उपाय करने और विनियमों को निर्धारित करने की शक्ति है। इस मामले में पीठ दो सप्ताह बाद सुनवाई करेगी।
बता दें कि राज्य सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील एसयू कामदार ने बताया कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए वैक्सीनेशन अभियान में गलती नहीं की जा सकती और यह करोना महामारी को ध्यान में रखते हुए सही और उचित था। कामदार ने आगे बताया कि इसलिए, कोष की हेराफेरी के लिए (उद्धव ठाकरे के खिलाफ) मुकदमा चलाने का कोई सवाल ही नहीं है।