इसके लिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार कांग्रेस नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ समीक्षा बैठक भी कर चुके हैं। इन सब के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अध्यक्ष शरद पवार ने बड़ी घोषण की है। वरिष्ठ नेता शरद पवार ने खुद को विपक्षी पार्टियों के बीच प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर कर लिया है। पवार ने पीएम बनने की रेस से खुद को बाहर करने के साथ ही स्पष्ट कहा कि वह आगामी 2024 लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या बिना चुनाव लड़े भी शरद पवार प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच सकते हैं?
एक प्रेस कांफ्रेंस में एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा, “मेरी कोशिश विपक्ष को साथ लाने की है, ऐसी ही कोशिश बिहार के सीएम नीतीश कुमार कर रहे हैं। मैं अगला चुनाव नहीं लड़ रहा हूं तो पीएम उम्मीदवार बनने का सवाल ही नहीं उठता है। मैं प्रधानमंत्री बनने की रेस में नहीं हूं। हमें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो देश के विकास के लिए काम कर सके। मैं विरोधियों को एक करने की कोशिश कर रहा हूं।“
82 वर्षीय शरद पवार को उलझी सियासी बिसात पर सही मोहरे चलकर बाजी पलटने में महारत हासिल है। जमीन से जुड़े बेहद अनुभवी नेता पवार के इस बयान के कई मायने हो सकते है। लेकिन यह बिल्कुल सच है कि पवार भले ही यह कह रहे हों कि वह प्रधानमंत्री बनने की दौड़ से बाहर हैं, लेकिन संविधान उन्हें लोकसभा चुनाव लड़े बिना भी पीएम बनने की अनुमति देता है।
चुनाव लड़े बिना NCP प्रमुख बन सकते है PM, जानें कैसे
आपको बता दें कि बिना लोकसभा चुनाव लड़े इस देश में कई नेता प्रधानमंत्री बन चुके हैं। हालांकि शरद पवार अभी राज्यसभा के सदस्य हैं। राज्यसभा के सांसद के तौर पर पवार का दूसरा कार्यकाल 3 अप्रैल 2020 को शुरू हुआ, जो 2 अप्रैल 2026 को पूरा होगा। यानी उनका राज्यसभा के सदस्य के तौर पर 3 वर्ष का कार्यकाल अभी बाकि भी है। इसका मतलब यह है कि अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सरकार न बनकर विपक्षी गठबंधन सत्ता में आती है तो शरद पवार बतौर राज्यसभा सदस्य तीन साल तक बिना किसी दिक्कत के पीएम पद पर विराजमान रह सकते है।
भारत के संविधान में प्रधानमंत्री बनने के लिए पहली शर्त यह है कि पीएम के पद पर आसीन व्यक्ति के पास लोकसभा में बहुमत होना चाहिए और पद पर नियुक्त होने के छह महीने के भीतर संसद का सदस्य बनना अनिवार्य है। इससे पहले 2004 और 2009 में डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की अगुवाई की थी। वे अपने दोनों कार्यकालों में असम से राज्यसभा के सदस्य रहे। वहीँ, 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक देश के प्रधानमंत्री रहे इंद्र कुमार गुजराल भी लोकसभा नहीं बल्कि राज्यसभा के सदस्य थे।
1 मई 1960 से राजनीति में कदम रखने वाले पवार वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहे है। इसमें कोई शक नहीं कि शरद पवार विपक्ष का एक मजबूत चेहरा है। ऐसे में अगर विपक्षी खेमे में उन्हें प्रधानमंत्री बनाने पर आम सहमति बन जाए तो उनको प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से कोई नहीं रोक सकता है, भले वह लोकसभा चुनाव लड़े या नहीं लड़े।
सभी विपक्षी दलों में अच्छी पकड़
63 साल पहले राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले शरद पवार को सियासी जगत में ‘चाणक्य’ और ‘भीष्म पितामह’ जैसी कई उपाधियां मिली हैं। महाराष्ट्र की सियासत के साथ-साथ उनकी राष्ट्रीय राजनीति में भी मजबूत पकड़ है। न केवल कांग्रेस बल्कि समाजवादी पार्टी, आरजेडी, जेडीयू, टीएमसी, भारत राष्ट्र समिति (BRS) समेत कई विपक्षी दलों से अच्छे संबंध है। इसलिए माना जा रहा है कि शरद पवार विपक्षी एकता के लिए वह हुकुम का इक्का साबित होंगे, जो बीजेपी की हर बाजी को काटने की क्षमता रखता है।
महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी (एमवीए) के ‘संकटमोचक’ पवार विपक्षी दलों के गठबंधन की डोर मजबूती से बांध सकते है. यह सब जानते है कि एमवीए में शामिल तीनों दलों- कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव गुट कई मुद्दों पर अलग-अलग राय रखते है और उनके बीच आपसी मतभेद है। लेकिन फिर भी वे राज्य के आगामी चुनाव एक साथ लड़ेंगे, क्योंकि शरद पवार को एमवीए की ‘रीढ़ की हड्डी’ कहा जाता है। एमवीए के गठन में पवार की भूमिका काफी अहम थी।
बेहद अनुभवी नेता है शरद पवार
एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने अपनी राजनीतिक यात्रा 1 मई 1960 में शुरू की थी और यह पिछले 63 वर्ष से अनवरत जारी है। मालूम हो कि शरद पवार एनसीपी पार्टी के सह-संस्थापक हैं। वर्ष 1999 में पवार ने पीए संगमा (PA Sangma) और तारिक अनवर (Tariq Anwar) के साथ मिलकर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के साथ कुछ पुराने विवाद को लेकर कांग्रेस से निकाले जाने के बाद एनसीपी पार्टी का गठन किया था।
पवार अपने राजनीतिक जीवन में चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चुने गए। उन्होंने केंद्रीय रक्षा मंत्री और कृषि मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। पवार की एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) का महाविकास आघाड़ी (एमवीए) गठजोड़ बनाने में अहम भूमिका रही है।