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कांग्रेस-राकांपा से दूर हुए हिन्दीभाषी!

locationमुंबईPublished: May 25, 2019 07:27:43 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

खामियाजा: दोनों दलों को देखना पड़ा हार का मुंह

खामियाजा: दोनों दलों को देखना पड़ा हार का मुंह

खामियाजा: दोनों दलों को देखना पड़ा हार का मुंह

मुंबई

हिन्दी भाषियों का पहली पसंद रहीं कांग्रेस और राकांपा से मोह पिछले विधानसभा चुनाव से ही भंग होना शुरू हो गया था, लेकिन इस लोकसभा चुनाव के परिणामों ने इस पर पूरी तरह से मुहर लगा दी है। मुंबई की 36 विधानसभा में सिर्फ तीन विधानसभा क्षेेत्रोंं भायखला, धारावी और मुंबा देवी में 10 से 30 हजार वोटों की बढ़त रही, इनमें से दो विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं और भायखला मुस्लिम बहुत सीट है। मुंबई की तकरीबन सभी सीटों पर हिन्दी भाषी निर्णायक भूमिका में हैं। किसी सीट पर गुजराती, किसी पर उत्तरप्रदेश, किसी पर बिहारी और राजस्थानी भाग्य विधाता की भूमिका में रहते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव से ही बड़ी संख्या में हिंदी भाषी मतदाताओं (उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़) ने कांग्रेस और राकांपा ने दूरी बनानी शुरू दी थी। जो 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रही। पिछले लोकसभा चुनाव में इसी वजह से भाजपा-शिव सेना को 42 सीटें मिलीं और इस बार 41 सीटें मिली। एक सीट जो कम हुई वह एमआईएम के खाते में गई, वहां भी हिन्दी भाषियों ने कांग्रेस-राकांपा का साथ नहीं दिया।
मुंबई से हुआ सफाया

मुंबई में 6 संसदीय क्षेत्र हैं, जहां 36 विधानसभा चुनाव हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में सारी सीटें भाजपा-शिवसेना के खाते में जाना, इस बात को इंगित करता है कि हिन्दी भाषी कांग्रेस-राकांपा के साथ लौटने को तैयार नहींं है। अभी मुंबई से कांग्रेस पांच विधायक हैं, मगर सिर्फ दो में ही कुछ बढ़त मिली। एक मुस्लिम बहुल होने से इज्जत बच गई। मिलिंद देवड़ा के राजस्थान मूल का होने के बावजूद उनको प्रवासियों का साथ नहीं मिला। दक्षिण मुंबई से उन्होंने चुनाव लड़ा। यह सीट मारवाडी बहुल है। मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद संजय निरुपम उत्तर पश्चिम सीट से चुनाव लड़ा। इस सीट का चयन करने का प्रमुख कारण हिन्दी भाषियों की बहुलता ही था, मगर वोट उनके खाते में नहीं गए।
यह बोले विभिन्न नेता

कांग्रेस को अलविदा कह चुके पूर्व विधायक ठाकुर रमेश सिंह ने कहा कि कांग्रेस में नेतृत्व और नीति दोनों नहीं है , संगठन तो शून्य है, सिर्फ नेता हैं वो भी बयानी। भाजपा नेता आर.डी. यादव ने कहा कि हिंदीभाषियों के साथ मारपीट करने वाली मनसे के अध्यक्ष राज ठाकरे को दोनों कांग्रेस से मिलने वाली शह का खुलासा होते ही जनता ने हाथ छोड़ दिया। कांग्रेस से भाजपा में घर वापसी कर चुके प्रवीण छेड़ा व हेमेंद्र मेहता ने कहा कि मुंबई में अब कांग्रेस का उठकर आना बहुत मुश्किल है। सब अपने मन की अपने फायदे की ही करते हैं पार्टी से किसी को कुछ लेना देना नहीं होता है। उधर, कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि हिंदीभाषी जनता बहुत भावुक होती है। उन्होंने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है बल्कि भावनाओं में बह गए हैं। भाजपा सरकार के नतीजे देखकर कांग्रेस के साथ फिर लोग आ जाएंगे।
कांग्रेस छोड़ी, भाजपा में आए

हिन्दीभाषियों में बड़ा नाम पूर्व विधायक ठाकुर रमेश सिंह, राजहंस सिंह, उत्तर भारतीय संघ के अध्यक्ष आर.एन. सिंह आदि कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा के साथ आ गए हैं। वहीं, कांग्रेस की गुटबाजी ने ही पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह, पूर्व सांसद प्रिया दत्त आदि को परेशानी में डाल दिया है।

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