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लोकल में लटकने की मजबूरी, छिन गई 711 की जिन्दगी

locationमुंबईPublished: Jan 11, 2019 11:56:15 pm

Submitted by:

arun Kumar

लाइफ लाइन बन रही डेथ लाइन: जान का जोखिम जानते हुए भी लटक कर

Restraint of locals, life of 711 lost

Restraint of locals, life of 711 lost

सफर को मजबूर हैं लोग
जनवरी-नवंबर, 2018 मे 1452 लोग गंभीर रूप से घायल हुए

अरुण लाल
मुंबई. लोकल ट्रेन मायानगरी मुंबई की लाइफलाइन मानी जाती है। ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझ रहे महानगर में लोकल ही वह माध्यम है, जो कमोबेश समय पर यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाती है। लाखों लोगों को दफ्तरों में दोपहर का टिफिन पहुंचाने वाले मुंबई के डिब्बावालों की कामयाबी में भी लोकल ट्रेन का बड़ा योगदान है। तमाम कोशिशों के बावजूद आबादी के बड़े बोझ से हांफ रही मुंबई की ‘लाइफलाइनÓ लोकल पर ‘डेथलाइनÓ का ठप्पा भी चस्पा होने लगा है। वह इसलिए क्योंकि महानगर में रोजाना औसतन 10 लोगों की मौत लोकल से होती है और इतने ही लोग घायल भी होते हैं। आज हम चर्चा करेंगे लोकल में लटक कर यात्रा करने की मजबूरी और इससे जुड़े जोखिम की। वैसे तो हर कोई जानता है कि लोकल में लटकना खतरनाक है। ऐसा करना भारतीय रेल के नियमों के खिलाफ भी है। इसके बावजूद लोग लोकल में लटकते हुए यात्रा करते हैं। ऐसा करना कुछ लोगों के लिए मजबूरी है तो कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ दूसरों का ध्यान खींचने के लिए लटकते हुए सफर करते हैं। पिछले साल जनवरी से दिसंबर के बीच लोकल से गिर कर 711 लोगों की मौत हो गई। इनमें 76 महिलाएं और 635 पुरुष शामिल हैं। इसी तरह जनवरी से नवंबर के बीच ट्रेन से गिर कर 1452 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनमें 1193 पुरुष और 259 महिलाएं शामिल हैं।जीआरपी से मिली जानकारी के अनुसार पिछले वर्ष वेस्टर्न रेलवे में 229 लोगों की मौत लोकल ट्रेन से गिरने की वजह से हुई। इनमें 209 पुरुष और 20 महिलाएं शामिल हैं। जनवरी से नवंबर तक कुल 622 लोग घायल हुए। इनमें 503 पुरुष और 119 महिलाएं शामिल हैं। वहीं सेंट्रल रेलवे में पिछले वर्ष 482 लोगों की मौत ट्रेन से गिरने के कारण हुई, जिनमें 426 पुरुष और 56 महिलाएं शामिल हैं। जनवरी से नवंबर तक कुल 830 लोग घयाल हुए। इनमें 690 पुरुष और 140 महिलाएं शामिल हैं।
खतरे में नहीं डालें अपनी जान

एक ट्रेन दुर्घटना में दोनों पैर गंवा चुके सामाजिक कार्यकर्ता समीर झवेरी कहते हैं कि लोकल से सफर करते हुए सजग रहना चाहिए, यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन बहुमूल्य है। रेल प्रवासी संघ के अध्यक्ष सुभाष गुप्ता कहते हैं कि रेलवे को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। प्रशासन का काम सिर्फ रेल चलाना नहीं बल्कि यात्रियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करना है। लोगों को भी समझना होगा कि अपनी जान खतरे में न डालें। न भूलें कि घर पर कोई आपका इंतजार कर रहा है।
15 डिब्बे की हो लोकल

महानगर में अधिकतर लोकल 12 डिब्बे की चलती हैं। भीड़ कम करने के लिए अब 15 डिब्बे की लोकल चलाने की योजना बनाई गई है। इस पर अमल हुआ तो लोकल ट्रेन की क्षमता 30 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। फिलहाल वेस्टर्न रेलवे में चार और सेंट्रल रेलवे में एक 15 डिब्बे वाली लोकल चलती है। सभी लोकल गाडिय़ों को 15 डिब्बे की बनाने का विचार अच्छा है, लेकिन इस पर अमल आसान नहीं है।
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