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पहाड़ व जंगलों के दुर्गम क्षेत्रों में संस्कार

locationमुंबईPublished: Apr 07, 2019 05:48:31 pm

Submitted by:

Devkumar Singodiya

श्री हरि सत्संग समिति : शिक्षा व स्वावलंबन का अनूठा सेवा यज्ञ

पहाड़ व जंगलों के दुर्गम क्षेत्रों में संस्कार

पहाड़ व जंगलों के दुर्गम क्षेत्रों में संस्कार

मुंबई. समाज के अंतिम पायदान पर मौजूद लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए करीब 30 साल पूर्व एक संस्था श्री हरि सत्संग समिति का गठन किया गया। शहरों व महानगरों की चमक-दमक से दूर गांवों में लोगों की जिंदगी को सरल बनाने, उन्हें मुख्य धारा से जोडऩे और विकास के पथ पर अग्रसर करना लक्ष्य किया गया। शुरुआत में कठिनाइयां हुईं, पर हौसले बुलंद हो तो इसे पार पाने में वक्त नहीं लगता, सो कारवां बढ़ता चला गया और सेवा के क्षेत्र में संस्था का नाम स्थापित हो गया। कोई दान के लिए तैयार हुआ तो कई समय दान के साथ जुट गए। कारोबार से समय निकालकर मानव सेवा के इस यज्ञ में आज हजारों लोग जुड़कर हाथ बंटा रहे हैं।
संस्था ने शहर से दूर रहने वाले वनवासियों में संस्कृति, संस्कार और चेतना के विकास में योगदान किया है। श्रीहरि सत्संग समिति, मुंबई की स्थापना वर्ष 1989 में स्वरूपचंद गोयल के नेतृत्व में हुई थी। उद्देश्य था देश दूरस्थ गांवों व वनांचलों में रह रहे गांववासियों व वनवासियों को जीवनोपयोगी नैतिक शिक्षा प्रदान कर उन्हें सम्मानपूर्ण जीवन जीने के मार्ग पर प्रशस्त करना। इस एक सूत्रीय लक्ष्य को हासिल करने के लिये एकल अभियान के अंतर्गत पांच माध्यमों से देश भर के दूरस्थ गांवों व वन्य प्रदेशों में समिति ने शैक्षणिक जागरण का अलख जगाया है।
इनमें संस्कार शिक्षा, बाल शिक्षा, आरोग्य शिक्षा, विकास शिक्षा व जागरण शिक्षा के माध्यम से वनवासियों व ग्रामवासियों को स्वावलंबी बनाने का प्रयास हो
रहा है। प्रकल्पों के जरिए बड़ी संख्या में लोग इन क्षेत्रों में जाकर आयोजन में सहभागी हो रहे हैं। इसी का नतीजा है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में परिवर्तन दिखने लगा है।

सत्संग प्रशिक्षण योजना
इस योजना अतर्गत प्रशिक्षित वनवासी घर-घर पहुंचकर सांस्कृतिक जागरण करते हैं। वे गांव-गांव जाकर हजारों वनवासियों की उपस्थिति में रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि जैसे पर्व मनाते हैं। आयोजनों से वनवासियों का मन सकारात्मक सृजन की और उन्मुख होता है। उनमें हमारी प्राचीन संस्कृति के प्रति आस्था का निर्माण होता है। इससे जागरूक होकर वे राष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान देते हैं। वनांचलों में घर-घर जाकर हमारे पूज्य देवी-देवताओं के चित्र, लाकेट, धार्मिक साहित्य का नि:शुल्क वितरण करते हैं जिनके पठन-पाठन से उनमें भी सांस्कृतिक चेतना का उदय होता है।

राम साधक योजना
इस योजना के अंतर्गत बनने वाली रामसाधक टोली में गांव के वे युवक-युवतियां शामिल होते हैं जो व्यसन मुक्ति के संकल्प के साथ अपने व नजदीक के गांवों के समग्र विकास के लिए तत्पर होते हैं। रामसाधक टोली के जरिये वे गांव-गांव में राम महोत्सव, कृष्ण जन्माष्टमी जैसे अनेक धार्मिक आयोजन करवाते हैं और गांव के प्रत्येक परिवार में प्रतिदिन एक बार हनुमान चालीसा का पाठ सुनिश्चित करते हैं।

3750 कथाकार कर रहे जागरण
संस्था ने वनवासी अंचलों में दो दशक पहले 1997 के दौरान कथाकार योजना शुरू की थी। इसके अंतर्गत वनवासी युवक-युवतियों को अयोध्या व वृन्दावन में शिक्षकों से प्रशिक्षित कर कथाकार बनाया जाता है। प्रशिक्षण के बाद कथाकार भाई-बहनें ग्रामीण अंचलों में जाकर श्रीहरि कथा का आयोजन करती हैं। इससे ग्रामीण-वनवासी समाज में विलक्षण आत्मविश्वास व स्वाभिमान जागृत होता है। अब तक समिति के माध्यम से 3,750 कथाकार देश भर में अध्यात्मिक-सांस्कृतिक जागरण कर रहे हैं। वनवासी कथाकार दत्तक योजना में सहभागी होकर एक साल के लिए एक वनवासी कथाकार को नौ महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षित वनवासी कथाकार महीने में औसतन 10-12 कथा और सत्संग का कार्यक्रम करते हैं। जहां यह कार्यक्रम होता है, वहां तुलसी के एक पौधे को रोपकर व्यसनमुक्ति संकल्प कराया जाता है। इससे वनवासी समाज को काफी लाभ हो रहा है।
व्यसनमुक्ति के इस अभियान में वनवासी ग्राम दत्तक योजना के अंतर्गत पांच हजार रुपए में एक साल के लिए एक गांव दत्तक लिया जाता है, जहां संस्कार केंद्र में गांव के स्त्री-पुरुष व बच्चे प्रतिदिन, साप्ताहिक या पाक्षिक अवधि में एकत्रित होकर संस्कृति व जीवनमूल्यों का ज्ञान अर्जित
करते हैं।
संस्कार शिक्षा के माध्यम से इस योजना से वनबंधुओं का उत्थान व व्यसन मुक्ति की संकल्पपूर्ति सफलतापूर्वक चल रही है। इस समय पूरे देश में 44 हजार गांवों में संस्कार केंद्र काम कर रहे हैं। यह संस्कार केन्द्र्र असम, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश व कर्नाटक के वन क्षेत्रों में स्थित हैं।

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