भगवान शिव के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है महाराष्ट्र का त्र्यंबकेश्वर मंदिर भी है। ऐसा कहा जाता है कि त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में पापों से मुक्ति मिलती है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण पेशवा बालाजी बाजी राव ने करवाया था। आइए जानते हैं त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी रोचक बातें।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कुछ रोचक बातें: त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक के पास गोदावरी तट पर स्थित है। इस मंदिर में लोग ज्यादातर कालर्सप दोष से मुक्ती पाने के लिए विधि वत पूजा करते हैं।
इस मंदिर के भीतर तीन छोटे-छोटे शिवलिंग है जो त्रिदेव यानी कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माने जाते हैं। इस शिवलिंग के चारों तरफ एक रत्न से जड़ा हुआ मुकुट त्रिदेव के मुखोटे के रुप में स्थित है। परंपरा के मुताबिक, भक्त इस मुकुट का दर्शन सिर्फ सोमवार को शाम 4 बजे से 5 बजे के बीच किया जा सकते हैं।
मान्यता है कि बृहस्पति सिंह राशि में आते हैं तो तब भगवान शिव के इस पावन धाम पर कुंभ महापर्व होता है, जिसमें सभी तीर्थ, देवतागण यहां पर पधारते हैं। कुंभ मेले में शामिल होने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु गोदावरी में पवित्र डुबकी और भगवान त्र्यंबकेश्वर के दर्शन और पूजन के लिए पहुंचते हैं।
त्र्यबंकेश्वर मंदिर के पास तीन ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार पर्वत मौजूद हैं। ब्रह्मगिरी को शिव स्वरूप माना जाता है, नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है। वहीं गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी यां गंगा का मंदिर है।
ऐसी मान्यता है कि त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा से व्यक्ति के न सिर्फ इस जन्म के बल्कि पूर्व जन्म के पाप भी दूर हो जाते हैं और उसे सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से मिलती है पापों से मुक्ति: बता दें कि पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम घोर तपस्या करते थे। यहां मौजूद बाकी लोग गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे। एक बार सभी ऋषियों ने मिलकर धोखे से गौतम ऋषि पर गौहत्या का आरोप लगा दिया था। अन्य ऋषियों ने कहा कि गौहत्या के पाप से मुक्ति पाना है तो देवी गंगा को यहां लाना पड़ेगा। गौतम ऋषि ने पाप से प्रायश्चित करने के लिए पार्थिव शिवलिंग की स्थापना की और रोजाना सच्चे मन से उसकी पूजा करने लगे। ऋषि की सच्ची श्रृद्धा देखकर देवी पार्वती और भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें साक्षात दर्शन दिए। भगवान शिव ने गौतम ऋषि से वरदान मांगने को कहा तो गौतम ऋषि ने गंगा माता को यहां उतारने का वर मांगा। इस पर मां गंगा ने कहा कि अगर महादेव यहां निवास करेंगे तो वो यहां आएंगी। भगवान शिव ने गंगा जी की इच्छा को स्वीकार करते हुए त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। इसके बाद गंगा नदी गौतमी (गोदावरी) के रूप में वहां बहने लगीं।