शिवसेना ने आगे कहा कि सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या महाराष्ट्र में की हैं। किसानों की आत्महत्याओं का ग्राफ क्यों बढ़ रहा है? इसका विचार न करते हुए मोदी सरकार बार-बार वही जुमले दोहरा रही हैं। शिवसेना ने कहा है कि जुमलों के इस जुल्म का विस्फोट साल 2019 के चुनावों में होगा।
मोदी के भाषण से किसानों में निराशा
शिवसेना ने कहा कि क्या जो गरजेगा वो बरसेगा? मराठी में ऐसी एक कहावत है। महाराष्ट्र हिंदी में इसी संदर्भ में जो गरजते हैं वो बरसते नहीं, इस तरह की कहावत इस्तेमाल की जाती है। मौजूदा सत्ताधरियों पर यह कहावत सटीक लागू होती है। इसके बावजूद सत्ताधारी होश में आने को तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को देश भर के किसानों से संवाद स्थापित किया। देश के 600 से अधिक जिलों के किसान प्रधानमंत्री का भाषण सुन रहे थे। इसके अलावा सीधे प्रसारण से भी पीएम मोदी ने करोड़ों किसानों को आश्वासन दिया। कम से कम कोई नया जुमला तो सुनने को मिलेगा, इस उम्मीद में किसान टीवी के सामने बैठे थे, लेकिन उन्हें निराशा हुई।
और भी खराब हो गई स्थिति
शिवसेना ने कहा है कि साल 2022 तक किसानों की आमदनी दुगना करेंगे, ऐसी गर्जना पीएम मोदी ने किसानों को संबोधित करते हुए की थी। इसमें नया क्या है? 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में भी बीजेपी ने किसानों को यह आश्वासन दिया था। इसी आश्वासन पर विश्वास रखकर किसानों ने काग्रेस को सत्ता से बाहर किया और बीजेपी के सांसदों की संख्या दुगनी कर उन्हें सत्ता में लाए, लेकिन देश का किसान और उसकी खेती कोमा में चली गई। यह सच्चाई है। शिवसेना ने यह भी कहा है कि किसानों को मिले आश्वासन को अब 4 साल पूरे हो चुके हैं। हकीकत में खेती और किसान जहां था, वहीं उसी तरह है। इसका जवाब प्रधानमंत्री को देना चाहिए था, लेकिन किसानों की उपज दुगनी करेंगे, इस तरह के पुराने आश्वासनओं की पुरानी कैसेट बजाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुक्त हो गए हैं।