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राम मंदिर मुद्दे पर विहिप- शिवसेना आमने सामने, एक-दूसरे पर कसे तीखे तंज

locationमुंबईPublished: Nov 12, 2018 03:16:35 pm

Submitted by:

Prateek

विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अध्यक्ष विष्णु कोकजे ने शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पर तंज कसा है…

file photo

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(मुंबई): राममंदिर के मुद्दे पर अब तक एक साथ होने का दावा करने वाले विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) और शिवसेना आमने सामने हो गए हैं। विहिप ने शिवसेना पर राममंदिर निर्माण का मुद्दा हथियाने का आरोप लगाया है, तो वही शिवसेना ने इसे राजनीति का नहीं, बल्कि अस्मिता का मुद्दा बताते हुए विहिप पर राम को चार साल से वनवास भेजने का आरोप लगाया है। विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अध्यक्ष विष्णु कोकजे ने शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पर तंज कसा है।

 

कोकजे ने कहा कि पहले शिवसेना मुंबई में बालासाहेब ठाकरे का स्मारक बना ले, फिर अयोध्या में राममंदिर निर्माण की सोचे। वडाला के हनुमान टेकड़ी में विश्वहिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राम मंदिर निर्माण का मुद्दा भाजपा का है। शिवसेना इसे हाईजैक करने के प्रयास में जुटी है। शिवसेना के पास अब कोई मुद्दा नहीं बचा है। इतने वर्षों तक राम मंदिर का मुद्दा भूल चुकी शिवसेना अब नींद से जागी है। हालांकि उन्होंने यह भी साफ़ किया कि इस मुद्दे को हाईजैक करने की ताकत शिवसेना में नहीं है।


सेना पहले बनाए बालासाहेब का स्मारक— विहिप

शिवसेना को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि शिवसेना का अयोध्या में क्या है, वह वहां किस मकसद से जा रही है। यहां मुंबई में बालासाहेब ठाकरे का स्मारक तो शिविसेना बना नहीं पा रही है और उधर अयोध्या में जाकर राम मंदिर का निर्माण क्या करेगी। उन्होंने सवाल किया कि शिवसेना यहां मुंबई में उत्तर भारतीयों को मारती-पीटती है और अब अयोध्या में जाकर उद्धव उद्धव उत्तर भारतीयों को क्या जवाब देंगे?

 

राम मंदिर अस्मिता का मुद्या— संजय राउत

उधर शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने भी विहिप को कड़ा जवाब देते हुए कहा कि यह मुद्दा राजनीति का नहीं है अस्मिता का मुद्दा है। वे लोग तो इतने दिनों से सोए हुए थे। हमने ही इन्हे जगाया है। बताया कि चनाव आ गया है उठ जाओ। तब जाकर ये संत और धर्म के महारथी राममंदिर के मुद्दे पर बहस करने लगे हैं। सत्ता में आने के साथ ही भाजपा को चार साल से राम की सुध नहीं आई , इतने दिनों से राम वनवास में रहने को पुनः मजबूर हैं।

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