सिग्नल से जुड़ी समस्या
झवेरी ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2016-17 में सिग्नल विफलताओं की संख्या 1541 थी, जो पिछले साले के मुकाबले कम थी। लेकिन, वित्त वर्ष 2018-19 में यह फिर से 12 प्रतिशत बढ़ गया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारे पास उच्च दर्जे की प्रौद्योगिकी और रखरखाव सुविधा है। बावजूद इसके इंजन फेल होने और ट्रैक फ्रैक्चर जैसी घटनाएं रोकने में हम विफल हुए हैं।
बार-बार बिगड़ते हैं इंजन
उन्होंने बताया कि सफर के दौरान इंजन बिगडऩे की घटनाएं भी बढ़ गई हंै। इसका मतलब है कि इंजन के रखरखाव और मरम्मत पर बराबर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। पिछले वित्तीय साल (2018-19) के दौरान 2016-17 के मुकाबले 60 प्रतिशत इंजन ज्यादा फेल हुए। 2016-17 के दौरान 512 बार लोकोमोटिव से जुड़ी विफलताएं सामने आई थीं।
बीच रास्ते इंजन खराब होने पर होती है ज्यादा परेशानी
झवेरी ने बताया कि रनिंग लाइन पर इंजन फेल होने से यात्रियों को ज्यादा परेशानी होती है। इससे न केवल प्रभावित ट्रेन के यात्री फंसे रहते हैं बल्कि उसके पीछे आ रहीं ट्रेनों के यात्री भी जगह-जगह इंतजार के लिए मजबूर हो जाते हैं। कई बार मार्ग को क्लीयर करने के लिए ट्रेन दूसरी लाइन से गंतव्य के लिए रवाना की जाती हैं।
मरम्मत पर ध्यान नहीं
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इंजन फेल होने का मुख्य कारण इंजन की सही मरम्मत न होना होता है। इंजन फेल होने के बाद अगर उसकी मरम्मत करने वालों की जवाबदेही तय की जाए तो इसमें कमी आएगी। आंकड़े बताते हैं कि ट्रेन इंजन के मरम्मत पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।