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रहन सहन भागमभाग की जिंदगी और चकाचौंध ने मायानगरी की आबोहवा बिगाड़ी

locationमुंबईPublished: Jun 06, 2019 05:56:11 pm

Submitted by:

Binod Pandey

विश्व पर्यावरण दिवस 2019 की थीम वायु प्रदूषणÓ रखी गई है। इस बार पूरी दुनिया को वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए जागरूक किया जाएगा और साथ ही दुनिया भर में वायु प्रदूषण को रोकने के विभिन्न उपाय भी किए जाएंगे। वहीं दूसरी ओर भारत सरकार के पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मुंबई के एक फाउंडेशन के साथ मिलकर एक थीम वीडिया गीत हवा आने दे… भी तैयार किया है।

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रोहित के. तिवारी
मुंबई. जहां दुनिया भर में 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, वहीं प्रति वर्ष इसके संरक्षण के लिए एक नई थीम भी तैयार की जाती है। वहीं मुंबई में एक स्थायी जीवन जीना आसान नहीं है – उपभोक्तावादी दुनिया से पर्याप्त व्यवधान हैं। फिर भी कुछ मुंबईकर ऐसे हैं, जो न केवल अपने दैनिक जीवन में जानबूझकर स्थायी विकल्प बनाते हैं, बल्कि अपने उत्पादों का भी उत्पादन करते हैं। हालांकि विश्व पर्यावरण दिवस 2019 की थीम वायु प्रदूषणÓ रखी गई है। इस बार पूरी दुनिया को वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए जागरूक किया जाएगा और साथ ही दुनिया भर में वायु प्रदूषण को रोकने के विभिन्न उपाय भी किए जाएंगे। वहीं दूसरी ओर भारत सरकार के पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मुंबई के एक फाउंडेशन के साथ मिलकर एक थीम वीडिया गीत हवा आने दे… भी तैयार किया है। इस वीडियो के सहारे लोगों को जहां जागरूक किया जाएगा, वहीं पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए भी कदम उठाए जाएंगे।
जागरूकता फैलाना है इस खास दिन का उद्देश्य
उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में दुनिया भर में वायु प्रदूषण की स्थिति अत्यंत दैयनीय है और विकराल रूप ले चुकी है। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर के साथ ही भौगोलिक और पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हो गया है। इस पर अगर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो नतीजे बहुत गंभीर होंगे। दुनिया में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या जब विकराल रूप धारण करने लगी और संसाधनों के असंतुलित वितरण के कारण सभी देशों पर बुरा असर पडऩे लगा तो इन समस्याओं से निपटने के लिए एक वैश्विक मंच तैयार किया गया। इस दिवस को मनाने का एक मात्र उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना है।
1972 में हुआ था सबसे पहला पर्यावरण सम्मेलन
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की बात करें तो उन्होंने बताया कि अगले दो-तीन दिन तक देश भर में इससे जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। साथ ही उन्होंने भरोसा जताया कि पूरे देश में विश्व पर्यावरण दिवस पूरे जोश के साथ मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण प्रदूषण पर 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में दुनिया भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। इसमें दुनिया के 119 देशों ने भाग लिया था। सभी ने एक धरती के सिद्धांत को मान्यता देते हुए हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद 5 जून को सभी देशों में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा। भारत में 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ।
हर साल बदलते हैं इसके लक्ष्य
विदित हो कि पर्यावरण की ज्वलंत समस्याओं को देखते हुए यूएन हर साल इसके लक्ष्यों को बदलता है। लक्ष्यों के आधार पर ही विश्व पर्यावरण दिवस के साथ ही पूरे साल के लिए थीम तैयार की जाती है। इस समय पूरी दुनिया वायु प्रदूषण से जूझ रही है। लिहाजा इस साल का लक्ष्य वायु प्रदूषण को घटाने को लेकर रखा गया है। इस पर सर जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर व ठाणे निवासी यमन बनर्जी की मानें तो मातृत्व की वजह से मैंने यह निर्णय लिया है। कपड़े के बैग से मैं अब नियमित किराने के सामान को लाता और ले जाता हूं। साथ ही पुन: उपयोग करने योग्य पानी की बोतल और बाहर डिस्पोजल फेंकने से बचने के लिए अपने लिए एक स्टील का चिम्मत और कटलरी ले जाता हूं। इससे अब मेरे जीवन में बहुत अच्छे से बदलाव आ रहा है।
सैनिटरी नैपकिन बन गई जरूरत
वहीं पर्यावरण दिवस को ध्यान में रखते हुए बनर्जी की पत्नी की मानें तो मासिक धर्म में प्रयोग होने वाले नैपकिन से परिचित कराया गया, जिससे आज उनकी जरूरत सैनिटरी नैपकिन बन गई। वहीं बनर्जी बताती हैं कि मेरी रसोई के अधिकांश नाश्ते और दालें अब हमारे बैग और कंटेनरों में ही रखी जाती हैं, जो अनावश्यक पैकेजिंग को कम करती हैं और हमें स्वास्थ्यवर्धक भोजन बनाने के विकल्प में मदद मिलती है। आज हम जो भी गीला कचरा निकालते हैं, वह सब एक अलग जगह इक_ा किया जाता है।
पूजा ने 2017 से नहीं खरीदा नया कपड़ा
वहीं मुंबई की पूजा डोमाडिया की मानें तो मेरी अनुपस्थिति में मेरी सास को स्टील के डिब्बे में दूध खरीदते हुए देखना और घर से बाहर न निकलने पर गीले कचरे को उचित स्थान पर इक_ा करना, यह सब देखकर बहुत खुशी होती है। वहीं मेरे पति भी अब मुझे उपहार देते समय अधिक सचेत रहते हैं। वहीं डोमाडिया ने अगस्त 2017 से नए कपड़े नहीं खरीदे हैं और स्वैप विकल्पों की तलाश कर रही हैं। अब वे घर का बना ही शैम्पू प्रयोग करती है, जिसमें आंवला, शिकाकाई और रीठा शामिल हैं। वे बताती हैं कि आज हम टूथब्रश और पेस्ट का प्रयोग करते हैं, जबकि दातुन और नमक-हल्दी-तेल के पेस्ट से भी हमारा काम चल सकता है। ऐसे ही हम बर्तन धोने के लिए जैव-एंजाइम और लकड़ी की राख का भी प्रयोग कर सकते हैं।
दंतेवाड़ा में रहते हुए कई मुद्दों का किया सामना
राजसी कुलकर्णी दिवाकर अपने पति यतिन दिवाकर के साथ आईआईटी बॉम्बे में पीएच.डी. की छात्र हैं , इनका कहना है कि हम शहर की भीड़-भाड़ में धीमी गति से
जीवन जीने की कोशिश करते हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर हालांकि मेरे पति के स्थायी जीवन की यात्रा बहुत पहले शुरू हुई थी, लेकिन मेरी यात्रा तब शुरू हुई,
जब मैं छह साल पहले छत्तीसगढ़ गई थी। दंतेवाड़ा में रहते हुए मुझे एकल-उपयोग वाले डिस्पोजेबल पैड से संबंधित कई मुद्दों का सामना करना पड़ा। मेरे पास घर
के पीछे फेंकने के अलावा मेरे पास कोई अन्य जगह नहीं थी।
रक्तसंचार और हवा का गजब मेल
चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार, इंसानी शरीर में 90 फीसदी पौष्टिक ऊर्जा ऑक्सीजन और बाकी 10 फीसदी खानपान से मिलती है। एक इंसान के शरीर में करीब 25
ट्रिलियन लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं। करीब 20 लाख लाल रक्त कोशिकाएं प्रति सेकेंड बनती हैं। प्रत्येक लाल रक्त कोशिका में 30 करोड़ हीमोग्लोबिन अणु होते
हैं। शरीर में 1 लाल रक्त कोशिका लगभग 1200 मिलियन ऑक्सीजन के अणुओं का परिवहन करती है। इससे साबित होता है कि ऑक्सीजन की कमी और प्रदूषित हवा शरीर को किस हद तक प्रभावित कर रही है।
हर साल 25 लाख की मौत
अक्टूबर 2017 में लासेंट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट की मानें तो दुनिया भर में वायु प्रदूषण से सालाना 65 लाख लोगों की मौत हो रही है। इसमें सर्वाधिक भारत में 25 लाख से ज्यादा मौतें हो रही हैं। ये आंकड़ा एचआईवी/एड्स, टीबी और मलेरिया से रोगों से होने वाली मौतों से 3 गुना ज्यादा है।
स्वच्छ हवा और भोजन पर संकट
अभी पिछले ही महीने आए ऑस्ट्रेलिया के मैक्वेरी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन की मानें तो प्लास्टिक प्रदूषण से निकलने वाले रसायन समुद्र में मौजूद उन बैक्टीरिया को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जो हमें दस फीसदी तक ऑक्सीजन देते हैं। प्लास्टिक से उत्सिर्जत रसायनों के कारण इन सूक्ष्म जीवों का विकास अवरुद्ध हो रहा है। साथ ही इनका जीन चक्र भी प्रभावित हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, दुनियाभर के समुद्रों में हर साल करीब 80 लाख टन प्लास्टिक फेंका जाता है। यानी हर मिनट एक ट्रक प्लास्टिक कचरा समुद्र में जाता है। यह कचरा मछलियों के लिए भी घातक है। वैज्ञानिक मछलियों को भविष्य में अनाज का विकल्प मानते हैं। जाहिर है, हम स्वच्छ हवा और भोजन दोनों का संकट पैदा कर रहे हैं।
भारत में बड़े पैमाने पर जल संकट
सूखे के दौरान ग्लेशियर नदी घाटियों में पानी की आपूर्ति करने के सबसे बड़े श्रोत होते हैं। ग्लेशियरों से निकलने वाले पानी से अकेले एशिया में ही लगभग 22.10 करोड़ लोगों की मूलभूत जरूरतें पूरी होती हैं, लेकिन ग्लोबल वर्मिंग की वजह से बढ़ते तापमान के कारण पूरी दुनिया में ग्लेशियरों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक दुष्प्रभाव हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि चरम जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में सतलज नदी घाटी के ग्लेशियरों में से 55 फीसदी 2050 तक और 97 फीसदी 2090 तक तक लुप्त हो सकते हैं, जिससे भारत में बड़े पैमाने पर जल संकट की स्थिति होगी।
सच होती दिख रही स्टीफन हाकिंग की भविष्यवाणी
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचरÓ के एक अध्ययन में कहा गया है कि धरती का तापमान यदि इसी तरह बढ़ता रहा तो सन 2100 तक दुनिया के आधे हैरिटेज
ग्लेशियर पिघल जाएंगे। यही नहीं इससे हिमालय का खुम्भू ग्लेशियर भी खत्म हो सकता है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इन ग्लेशियरों को खोना किसी त्रासदी से कम नहीं होगा। उनका मानना था कि साल 2100 के अंत तक धरती पर इंसानों के लिए कई मुश्किलें खड़ी होंगी। धरती पर जीवन मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में इंसान को दूसरे ग्रहों पर कालोनियां बनाने के काम में जुट जाना चाहिए। विदित हो कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए 197 देशों ने पेरिस समझौता किया था। समझौते के तहत 2100 तक पृथ्वी की सतह का तापमान 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक नहीं बढऩे देने का संकल्प लिया गया था लेकिन अमेरिका और चीन की अड़ंगेबाजी के कारण पूरी दुनिया को ग्लोबल वर्मिंग के दुष्प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
साल दर साल बदलतीं थीम्स
वर्ष 2018 – बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन
वर्ष 2017 – कनेक्टिंग पीपुल टू नेचर – इन द सिटी एंड ऑन द लैंड, फ्रॉम द
पोल्स टू द इक्वेटर
वर्ष 2016 – नो टॉलरेंस फॉर द ट्रेड व्हिच इज इलीगल
वर्ष 2015 – वन एनवॉयरमेंट फॉर वन वल्र्ड
वर्ष 2014 – स्मॉल आईलैंड्स फॉर द इंप्रूविंग स्टेट्स एंड ऑलसो रेज योर वाइस
एंड नॉट लेवल ऑफ द सी
वर्ष 2013 – थिंक, सेव, ईट विद द स्लोगन ऑफ डिक्रीज योर फुटप्रिंट
वर्ष 2012 – ग्रीन फाइनेंस कैन इट इनक्लूड यू?
वर्ष 2011 – फॉरेंस्ट नेचर फॉर ऑल योर फैसिलिटी
वर्ष 2010 – वन फ्यूचर, वन प्लेनेट, मैनी स्पिसीज
वर्ष 2009 – कम टुगेदर टू कॉम्बेट चेंज इन द क्लाइमेट – आवर प्लेनेट नीड अस
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