Example: बैंक की नौकरी से रिटायर होने के बाद जरूरतमंदों needy की मदद helping कर रहे भूपेंद्र सिंह
ताजमहल से ज्यादा आकर्षक है उनके प्रेम की निशानी
अरुण लाल मुंबई. लोभ और अहंकार में डूबे लोगों के बीच हमारे समाज में ऐसे शख्स भी हैं, जो “सुंदर है दुनिया और हम इसे और सुंदर बनाएंगे” गाते हुए मानवता की सेवा में जुटे हैं। आज हम आपको मिला रहे हैं मुंबई के सायन में रहने वाले भूपेंद्र सिंह कोहली (60) से, जिन्होंने अपनी पत्नी की याद में अपनी और उनके जीवन भर की कमाई खर्च करते हुए एक फाऊंडेशन बनाया, जो लाचार लोगों की मदद करता है। उनके प्रेम की निशानी इस फाऊंडेशन के आगे पे्रम की निशानी माने जाने वाला ताजमहल भी फीका लगता है। वे पौधे लगा कर धरती की हरीतिमा बढ़ाते हैं। जरूरतमंद छात्रों की फीस जमा कर उनका भविष्य संवारने का प्रयास करते हैं। रिटायरमेंट के बाद रोजाना दो घंटे मरीजों की सेवा करते हैं। इतना ही नहीं उपेक्षित बुजुर्गों की देखभाल भी करते हैं। खास यह कि अपने नेक काम के लिए वे किसी से पैसे की मदद नहीं लेते। भूपेंद्र कहते हैं, जीवन ने हमें बहुत कुछ दिया, अब हम जीवन को लौटा रहे हैं। हमारे पूज्य गुरु नानक शायद चाहते थे कि मैं सेवा का कार्य करूं। इसीलिए उन्होंने मेरे मन के भीतर सेवा की अलख जगा दी। 1984 से मैंने रक्तदान की दिशा में कार्य करना शुरू किया। उस समय कंप्यूटर नहीं थे, तब मैंने चार हजार बोतलों का एक ब्लड बैंक तैयार किया था। मैं अनयूज दवाएं जमा कर जरूरतमंदों तक पहुंचाने का काम करता था। यह काम वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों की मदद से करता था।
ताजमहल से ज्यादा आकर्षक है बीकेके मेमोरियल फाउंडेशन
उन्होंने बताया, मेरा ट्रांसफर होता रहता था, जहां भी गया, जितना बन पड़ा किया। मेरी पत्नी नौसेना में थीं। मैं स्टेट बैंक में था। मेरी आमदनी इतनी थी कि हमें पत्नी की कमाई के पैसे छूने की जरूरत नहीं पड़ी। उनके जीवन भर की कमाई बचत के रूप में हमारे पास पड़ी रही। दो साल पहले वह दुनिया छोड़ गईं। उनके पैसे से उन्हीं के नाम पर बीकेके मेमोरियल फाउंडेशन बनाया हूं।
बिना भेदभाव मदद सिंह ने बताया, फाउंडेशन के जरिए हम लोगों को आर्थिक सहायता देते हैं। पांच लोगों की एक कमेटी है, जिनमें हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई शामिल हैं। हम सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत पर काम करते हैं। किसे कितनी मदद देनी चाहिए, यह कमेटी मेंबर तय करते हैं। गरीब छात्रों की फीस भरते हैं। गरीब परिवार की बेटियों की शादी में भी मदद करते हैं। पांच हजार से लेकर दो लाख तक की मदद करते हैं।
स्कूलों में 700 पौधे लगाए पर्यावरण के प्रति सजग सिंह ने पिछले महीने मुंबई सहित महाराष्ट्र के विभिन्न स्कूलों में 700 पौधे लगाए हैं। पौधे लगाने के साथ वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उनकी बराबर देखभाल हो। उन्होंने बताया, मैंने ज्यादातर स्कूल के बच्चों को पेड़ सौंप दिया है, उन बच्चों को एक सर्टिफिकेट भी दिया गया। इससे वे सुनिश्चित करते हैं कि पौधा जीवित रहे। आपको आश्चर्य होगा कि हमारे लगाए सारे पौधे जीवित हैं।
जब तक हूं, नहीं रुकेगा काम सच कहूं तो मैं जीवन को लेकर प्लान नहीं बनाता, जाने किस पल बुलावा आ जाए। जब तक मैं हूं तब तक यह कार्य जारी रहेगा। इसके बाद ईश्वर मालिक…बस यही चाहत है कि इंसानियत की जो राह गुरुजी ने दिखाई है, जीवन के अंतिम क्षण तक उस पर चलूं। मेरा इतना ही कहना है कि हमने जो जीवन से लिया है, उसे लौटाना चाहिए।