35 साल पहले कीर्तन से शुरुआत
सुरजीत कौर ने बताया, लगभग 35 वर्ष पहले हम कुछ महिलाओं ने गुरुद्वारे में कीर्तन करना शुरू किया। सब ठीक चल रहा था। उन्हीं दिनों गुरुद्वारे में कैंसर पेशेंट के लिए काम शुरू हुआ। पहले हमने कैंसर मरीजों के स्वस्थ होने की कामना के साथ भजन किया। बाद में महसूस हुआ कि हम इनकी कुछ और मदद कर सकते हैं। हमने आपस में चंदा निकाल कर मदद के लिए हाथ बढ़ाया, जो आज भी जारी है।
अब भी चलाती हैं चरखा
भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से अपने परिवार के साथ मुंबई पहुंचीं सुरजीत अब भी महात्मा गांधी के दिखाए रास्ते पर चलती हैं। रोजाना चरखा चलाती हैं। अपना काम खुद करती हैं। खुद भोजन बनाती हैं। खूबसूरत कढ़ाई के साथ ही कीर्तन करती हैं। सैकड़ों महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और चरखा चलाना सिखा चुकी हैं।सुरजीत बहुत-सी महिलाओं को हार्मोनियम और भजन गाना भी सिखा चुकी हैं। उनके सरल शब्दों में मां के दुलार जैसा जादू है। इस ग्रुप की दूसरी मां सुरिंदर कौर बताती हैं, हमने कभी सोचा नहीं था कि हमारा काम इतना बढ़ जाएगा। हमने तो सुखमणी का पाठ करना शुरू किया था।
उन्होंने कहा, अभी हम लोगों की उम्र बढ़ रही है। यह परंपरा आगे भी चलती रहे, इसके लिए हमने कुछ नए लोगों को ग्रुप में जोड़ा है। हम कोई बड़ा काम नहीं कर रहे हैं। हर किसी को अपने जीवन का कुछ समय सेवा में लगाना चाहिए। हमारा सपना है कि हर कोई सेवा में थोड़ा समय दे। इससे दुनिया सुंदर हो उठेगी