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ऐसा भी होता है: 93 साल की उम्र में  करती हैं सेवा

locationमुंबईPublished: Oct 10, 2019 10:09:57 am

Submitted by:

Arun lal Yadav

Example: सायन के 20 सदस्यों वाले समूह में शामिल हैं 50 से 93 साल की, सहारों को सहारा दे रहीं गुरुद्वारा रौली कैंप की बुजुर्ग महिलाएं, प्रेम love, सेवा और भजन के मूलमंत्र hymn of bhajan के साथ निभा रहीं अपनी सामाजिक जिम्मेदारी social responsibility कैंसर मरीजों Cancer patients के लिए दवाई के इंतजाम के साथ गरीबों को मुहैया कराती हैं कपड़े और कंबल
 

ऐसा भी होता है: 93 साल की उम्र में  करती हैं सेवा

ऐसा भी होता है: 93 साल की उम्र में  करती हैं सेवा

अरुण लाल
मुंबई. घर-परिवार में बुजुर्गों की सेवा भारतीय संस्कार है। हालांकि, आधुनिकता का लबादा ओढ़े हमारी युवा पीढ़ी में से कुछ लोग जड़ों को भूल गए हैं, जो बुढ़ापे में माता-पिता को बेसहारा छोड़ देते हैं। इन हालात में मुंबई के सायन आधारित 20 महिलाओं के समूह ने मिसाल कायम की है। 50 से 93 साल की महिलाएं इस समूह की सदस्य हैं, जो बेसहारों को सहारा प्रदान कर रही हैं।
समूह की महिलाएं अपनी झुर्रियों के साथ मुस्कुराते हुए कहतीं हैं, प्रेम करो, सेवा करो, भजन करो…और इसी मूलमंत्र के साथ गुरुद्वारा रौली कैंप स्त्री सत्संग ग्रुप निराश लोगों के जीवन में सकारात्मकता का भाव भरता है। यह महिलाएं कैंसर के मरीजों को दवाइयां उपलब्ध कराती हैं। गरीब बच्चों की स्कूल फीस भरती हैं। गरीबों को कपड़े, कंबल और बारिश के समय छाता भी मुहैया कराती हैं। इनमें सुरजीत कौर (92), जसबीर कौर (70), रमींद्र कौर (61), रेणु (65), अमरजीत कौर (60), हरप्रीत (55) और सोनी (50) प्रमुख हैं।

35 साल पहले कीर्तन से शुरुआत

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सुरजीत कौर ने बताया, लगभग 35 वर्ष पहले हम कुछ महिलाओं ने गुरुद्वारे में कीर्तन करना शुरू किया। सब ठीक चल रहा था। उन्हीं दिनों गुरुद्वारे में कैंसर पेशेंट के लिए काम शुरू हुआ। पहले हमने कैंसर मरीजों के स्वस्थ होने की कामना के साथ भजन किया। बाद में महसूस हुआ कि हम इनकी कुछ और मदद कर सकते हैं। हमने आपस में चंदा निकाल कर मदद के लिए हाथ बढ़ाया, जो आज भी जारी है।

अब भी चलाती हैं चरखा

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भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से अपने परिवार के साथ मुंबई पहुंचीं सुरजीत अब भी महात्मा गांधी के दिखाए रास्ते पर चलती हैं। रोजाना चरखा चलाती हैं। अपना काम खुद करती हैं। खुद भोजन बनाती हैं। खूबसूरत कढ़ाई के साथ ही कीर्तन करती हैं। सैकड़ों महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और चरखा चलाना सिखा चुकी हैं।
मां के दुलार जैसा जादू
सुरजीत बहुत-सी महिलाओं को हार्मोनियम और भजन गाना भी सिखा चुकी हैं। उनके सरल शब्दों में मां के दुलार जैसा जादू है। इस ग्रुप की दूसरी मां सुरिंदर कौर बताती हैं, हमने कभी सोचा नहीं था कि हमारा काम इतना बढ़ जाएगा। हमने तो सुखमणी का पाठ करना शुरू किया था।
चंदे से जुटाते हैं पैसा

ऐसा भी होता है: 93 साल की उम्र में करती हैं सेवा
कौर ने बताया, हमारे मन में एक दिन ख्याल आया कि हमें अनाथ, गरीब, बीमार और वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों के लिए कुछ करना चाहिए। हमने 100 रुपए जमा करना शुरू किया। कुछ लोग 500 और हजार भी देते हैं, जिसकी जितनी शक्ति। इसके अलावा हम लोगों के घरों में भजन-कीर्तन करते हैं। उससे मिले पैसे से भी हम लोगों की मदद करते हैं। जरूरतमंद कैंसर मरीजों को हम दवाइयां मुहैया कराते हैं।
हर किसी को करनी चाहिए सेवा
उन्होंने कहा, अभी हम लोगों की उम्र बढ़ रही है। यह परंपरा आगे भी चलती रहे, इसके लिए हमने कुछ नए लोगों को ग्रुप में जोड़ा है। हम कोई बड़ा काम नहीं कर रहे हैं। हर किसी को अपने जीवन का कुछ समय सेवा में लगाना चाहिए। हमारा सपना है कि हर कोई सेवा में थोड़ा समय दे। इससे दुनिया सुंदर हो उठेगी

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