महाराष्ट्र में जब भी कोई ऑथारिटी किसी पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए मैंग्रोव के पेड़ों को काटना जरूरी समझती है तो उसे हर बार हाई कोर्ट से परमिशन लेना पड़ता है। कोर्ट के आदेश केमुताबिक जिस इलाके में मैंग्रोव के पेड़ हैं, उसके आसपास करीब 50 मीटर का ‘बफर जोन’ बनाया जाना चाहिए, जिसमें किसी भी निर्माण गतिविधि या मलबे को गिराने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। एनएचएसआरसीएल ने साल 2020 में दायर याचिका में कोर्ट को भरोसा दिया था कि पहले मैंग्रोव के जितने पेड़ों को काटे जाने की योजना थी, वह उनका 5 गुना पेड़ लगाएगा।
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NGO ने किया था याचिका का विरोध: बता दें कि एनएचएसआरसीएल के भरोसा दिलाने के बावजूद ‘बॉम्बे एन्वायर्नमेंटल ऐक्शन ग्रुप’ नाम के एक एनजीओ ने यह कहते हुए उसकी याचिका का विरोध किया था कि नए लगाए गए पौधों के जिंदा रहने की दर के बारे में कोई अध्ययन नहीं हुआ है, और यह भी नहीं पता है कि पेड़ों के काटे जाने का पर्यावरण पर क्या असर पड़ेगा। एनएचएसआरसीएल ने एनजीओ द्वारा जताई गई आपत्तियों को रद्द करते हुए दावा किया था कि उसने इस प्रोजेक्ट के लिए पेड़ों की कटाई को लेकर जरूरी अप्रूवल मिल गया था और जिसकी वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई पौधे लगाकर की जाएगी। बुलेट ट्रेन से कम हो जाएगा सफर का समय: अहमदाबाद और मुंबई के बीच प्रस्तावित 508 किलोमीटर लंबे हाई स्पीड रेल कॉरिडोर से दोनों शहरों के बीच का सफर का समय 6.5 घंटे से घटकर 2.5 घंटे होने की उम्मीद है। कहा जा रहा है कि सफर के समय में आई इस कमी से पूरे इलाके के डेवलपमेंट की स्पीड तेज हो सकती है और साथ ही लोगों को भी काफी सहूलियत मिल सकती है।