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जिस्मफरोशी से निकाल जिंदगी से संगम करा रहीं ‘त्रिवेणी’

locationमुंबईPublished: May 11, 2019 07:26:57 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

बदनाम बस्तियों में फंसी युवतियों का बन रहीं सहारा, – 10 हजार को बचाया, 350 का कर रहीं पालन, 50 से ज्यादा की कराई शादी

बदनाम बस्तियों में फंसी युवतियों का बन रहीं सहारा, - 10 हजार को बचाया, 350 का कर रहीं पालन, 50 से ज्यादा की कराई शादी

बदनाम बस्तियों में फंसी युवतियों का बन रहीं सहारा, – 10 हजार को बचाया, 350 का कर रहीं पालन, 50 से ज्यादा की कराई शादी

अरुण लाल

मुंबई. त्रिवेणी एक नाम नहीं वरन् मजबूर युवतियों को जिस्मफरोशी के दलदल से बाहर निकालकर उनका पालन पोषण करके शिक्षित करने और उन्हें अपने पांवों पर खड़ा करने योग्य बनाने का पर्याय हैं। गंदी बस्तियों में अपना जिस्म बेचकर जीना जिनकी मजबूरी है। जिनकी जिन्दगी गुलामों से भी बदतर है। वो चाहकर भी उस जगह से निकल नहीं सकती हैं। त्रिवेणी इनके लिए मां बनीं और इन्हें अपनी बेटी माना। इसके लिए उनके पति की कुर्बानी देनी पड़ी, लेकिन बच्चियों का आश्रय नहीं उजडऩे दिया। वो बदनाम बस्तियों से आज भी युवतियों को बाहर निकालकर लाने में जुटी हैं। अब तक 50 से ज्यादा बच्चियों की वे शादी करा चुकी हैं। पिछले 10 साल में ही 10 हजार से अधिक बदनाम बस्तियों की बच्चियों को आजादी की जिन्दगी दिला दी। इस तरह की 350 बच्चियों की परवरिश आज भी अपने चार आश्रम में कर रही हैं। त्रिवेणी ने इन्हें भले ही जन्म नहीं दिया हो, लेकिन उससे भी बडी भूमिका निभा रही हैं। 55 साल की त्रिवेणी आचार्य पिछले 25 साल से सैकड़ों लड़कियों के लिए तपती धूप में एक मीठी छांव-सी हैं। जिन्होंने इन बच्चियों के जीवन के लिए अपने जीवन साथी तक को खो दिया। गुजरात के कच्छ इलाके में जन्म लेने वाली त्रिवेणी का विवाह बालकृष्ण आचार्य से हुआ। वे गुजरात छोड़ मुंबई पहुंचीं। त्रिवेणी ने पत्रकारिता शुरू की और बालकृष्ण ने शो रूम खोला।
सुनील दत्त के साथ शुरू हुआ सफर

राखी के दिन तत्कालीन सांसद एवं अभिनेता सुनील दत्त के साथ त्रिवेणी कमाठी पुरा पहुंचीं। सुनील दत्त कमाठीपुरा में देह व्यापार करने वाली लड़कियों से राखी बंधवाते थे। उस दिन कुछ लड़कियों ने त्रिवेणी से बताया कि उन्हें जबरन यहां पर रखा गया है। उनके साथ जोर-जबरदस्ती की जाती है। त्रिवेणी समझ नहीं पा रहीं थीं कि वे क्या करें। तभी एक दिन बालकृष्ण ने उनसे कहा कि उनके शो रूम में काम करने वाले एक युवक को कमाठीपुरा में कार्य करने वाली एक युवती से प्रेम हो गया है। वह उससे विवाह करना चाहता है। अगर तुम पुलिस की मदद से उसे वहां से निकाल सको तो दोनों की जिन्दगी बदल जाएगी। फिर क्या था पुलिस की एक बड़ी टीम की मदद से लड़ते-झगड़ते उस लडक़ी को निकाला गया। उस समय 15 और लड़कियां सामने आईं और कहा कि हमें भी बचाइए। उन्हें बचाया गया, पर सारी जिम्मेदारी बालकृष्ण पर आ गई। अब बालकृष्ण पूरी तरह से इस कार्य में जुट गए।
पति को खोया पर रुकी नहीं

त्रिवेणी बतातीं हैं कि उन दिनों वे इसी धुन में रहा करते थे कि कैसे किसी बच्ची को बचाया जाए। हमारा कार्य तेजी से बढ़ रहा था। लगातार धमकियां आतीं रहीं, पर बालकृष्ण नहीं माने और आखिरकार एक दिन सुनियोजित तरीके से उन्हें रास्ते से हटाने के लिए एक्सीडेंट किया गया और उन्होंने दम तोड़ दिया। त्रिवेणी बताती है उन दिनों बदनाम गलियों में कार्य करना बहुत कठिन था, पर बालकृष्ण के सहारे मैंने यह किया। लेकिन जब बालकृष्ण नहीं रहे तो मेरी दुनिया उजड़ गई। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या? बालकृष्ण ने जिन बच्चियों को बचाया था, वे सब मेरी तरफ देख रहीं थीं। मैं खुद को संभाल नहीं पा रही थी, तभी मेरे सामने बालकृष्ण के वाक्य गूंजने लगे, हम सभी को एक दिन मरना है, तो क्यों न हम लोगों के लिए कुछ करके मरें। मुझे लगा जिनके लिए उन्होंने जान दे दी मैं उन्हें बेसहारा कैसे छोड़ सकती हूं। फिर यह कार्य चलता रहा।
दस हजार को दिया नया जीवन

त्रिवेणी अचार्य ने पिछले 10 वर्ष में लगभग दस हजार युवतियों को देह व्यापार से निकाला है। इसके लिए वे अक्सर जूझती हैं, ऐसे लोगों से जिनके भीतर की इंसानियत तर चुकी है। इसके लिए उनके पास 100 इनफार्मर हैं। बिना डरे वे और उनकी की टीम सूचना मिलते ही रेड लाइट एरिया में जबरन लाई गई लड़कियों को बचाकर लाती हैं। यह कार्य किसी युद्ध की भांति कठिन होता है। बहुत सावधानी से करना होता है यह सब। वे बचाकर लाई युवतियों काऊंसलिंग करतीं हैं। उन्हें विविध ट्रेनिंग देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करतीं हैं।
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